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अतिथि अब मत आना रे ….

चौबीस साल के जेरेमी क्लेर्क अपनी गर्लफ्रेंड मेरी ड्रोज के साथ 30 सितंबर को भारत आए थे. यहाँ की सभ्यता, संस्कृति को आत्मसात करने, जरुर उन्हें अतिथि देवो भवः के नारे ने लुभाया होगा, पैसे बचाकर आखिर वो भारत घुमने आये. लेकिन वह  नहीं जानते होंगे कि नये भारत में  पुराने नारे अब सामाजिक जीवन में कहीं नहीं टिकते. खबर अनुसार स्विट्जरलैंड के इस जोड़े की फतेहपुर सीकरी में कुछ स्थानीय युवकों ने पत्थरों और डंडों से पिटाई की. आगरा में एक दिन गुजारने के बाद अगले दिन जब वह फतेहपुर सीकरी पहुंचे तो वहां रेलवे स्टेशन के पास कुछ युवकों ने पीछा करना शुरू कर दिया. पहले तो उन्होंने टिप्पकणियां कीं, जोकि उनकी समझ में नहीं आईं. उसके बाद उन्होंने इस जोड़े को जबरन रोक लिया ताकि मेरी के साथ वे सेल्फी ले सकें.

जेरेमी बता रहा था कि हमने इसका विरोध किया लेकिन वे नहीं माने और हमारा पीछा करते रहे. हमारी फोटो खींचते रहे और मेरी के करीब आने की कोशिश करते रहे. हमें उनकी बातचीत से बस इतना समझ में आया कि वे हमारा नाम पूछ रहे थे और ठहरने की जगह के बारे में पूछ रहे थे. वे हमको प्रताडि़त करते रहे और कहीं और चलने की बात कहने लगे. हमने जब मना कर दिया तो उन्होंने हमला कर दिया हमें बिल्कुल समझ में नहीं आया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया? वे हमारा कोई सामान भी नहीं ले गए? इस विदेशी जोड़े ने बताया कि वे जख्मी होकर जमीन पर गिर गए और राहगीर अपने मोबाइल फोन से उनका वीडियो बनाने लगे.

भारत की असली बीमारी समझिये! उन गुंडों को सेल्फी चाहिए थी ताकि वो उन फोटोज को अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर डालकर लाइक बटोर सके और विडम्बना देखिये! दुसरे भी उन्हें बचाने, उनकी मदद करने के बजाय वीडियो बनाने लगे. क्या यही अतुल्य भारत की ताजी तस्वीर है?

कितने लोग जानते है विदेशों में भारतीय दूतावास भारत में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए काफी सकारात्मक प्रयास करते है. ताकि पर्यटक भारत में आये. देश की आय में इजाफा हो? हम अच्छी तरह से जानते हैं कि भारत एक विकासशील देश है और यहाँ की अर्थ व्यवस्था में पर्यटन व्यवसाय का बहुत अधिक महत्व है. लेकिन इस सबके विपरीत भारत में एक तबका भारत की जो छवि पेश कर रहा है वो आलोचना के साथ शर्म से सिर झुका देने वाली है. हर वर्ष ऐसे कहीं न कहीं ऐसे वाकये होते रहते है. सोचिये जब ये लोग प्रताड़ित, घायल होकर अपने देश पहुँचते होंगे तो भारत के बारे में कैसे विचार रखते होंगे? यही कि मेहमान को देवता बताने वाले खुद राक्षस क्यों?

2013 में की वो घटना अभी भी सबके जेहन में ताजा होगी जब मध्य प्रदेश में ओरछा से आगरा की तरफ आते हुए एक स्विस दम्पति पर हमला हुआ था हमलावरों ने पति को बांधकर और उसी के सामने उसकी 39 साल की पत्नी से बलात्कार किया था. उसी वर्ष दिल्ली में दक्षिण कोरिया की एक महिला से बलात्कार हुआ और गुड़गांव में चीनी महिला हवस का शिकार बनी. जबकि इन घटनाओं से कुछ ही दिन पहले आगरा के एक होटल में रह रही ब्रितानी महिला को अपनी आबरू बचाने के लिए होटल की बालकनी से छलांग लगानी पड़ी थी. उसी दौरान कोलंबिया से भारत घूमने आई एक महिला ने कहा था कि यहां के पुरुषों की समस्या ये है कि वे बहुत घूरते हैं. “शायद उनकी मानसिकता ऐसी है कि लाइफ में जितनी महिलाएं देखने को मिल जाए उतना अच्छा है. अपनी घरवाली से शायद उनका मन नहीं भरता, तो वे बाहरी महिलाओं पर बुरी नजर डालते हैं.”

मामला यही नहीं रुकता और इससे समझ या अशिक्षा की कमी कहकर पल्ला भी नहीं झाडा जा सकता क्योंकि 2009 में मुंबई में कॉलेज के छात्रों ने पार्टी में मिली एक अमेरिकी युवती से सामूहिक बलात्कार किया था. और इससे पहले 2008 में गोवा में हुई 15 साल की ब्रिटिश किशोरी स्कारलेट की बलात्कार के बाद हत्या से कौन अंजान होगा? यानि यहां सैलानियों को अगर कोई परेशानी है, तो वो सिर्फ यहाँ के लोगों की सोच और स्वभाव से हैं.

जहाँ पर्यटन जैसे उधोग से हम देश की कमाई  में चार चाँद लग सकते हैं वहां लोग पर्यटकों से बुरे आचरण, वासना की पूर्ति, छेड़छाड़, फब्तियां कसकर देश के सम्मान का बेडा गर्क करने में लगे है. कहते है भारत की संस्कृति व सभ्यता संपूर्ण विश्व में सराही जाती है. यहाँ का अध्यात्मिक वातावरण, योग, संस्कारित जीवन शैली, रहन सहन में संयुक्त परिवार, लोगों को आकर्षित करता रहा है. इसके बाद चाहें वो अहिंसा का नारा हो या फिर वसुधैव कुटुम्बकम. देश की सांस्कृतिक कलाएँ हो अथवा नैतिक मूल्य विभिन्न देशों के लोग इसकी ओर आकर्षित रहते हैं. इसी तरह अतिथि देवो भवः हमारे देश के उन सशक्त विचारों में से है जो हमारे देश के नैतिक मूल्यों को और भी मजबूत बनाता है. हालाँकि अब यह नारा बदल देना चाहिए और लिख देना चाहिए अतिथि अब मत आना रे. क्योंकि यदि इस तरह के आचरण पर अंकुश लगाने की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती, विदेशी सैलानियों का स्वागत करने वाले लोगों की मानसिकता नहीं बदल सकते तो इस नारे को बदनाम भी नहीं करना चाहिए ना?

 लेख-राजीव चौधरी

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