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अब आगे क्या?

रामरहीम डेरे के एक अनुमान से पंजाब और हरियाणा में 20 लाख से अधिक समर्थक होंगे। इन समर्थकों में सबसे बड़ी संख्या मज़हबी कहलाने वाले सिखों और अनुचित हिन्दुओं की हैं। पंजाब भूभाग के मज़हबी सिख और अनुसूचित कहलाने वाले हिन्दू मुख्य रूप ऐसे डेरों में चेले क्यों बनते हैं। यह जानना अत्यंत आवश्यक है। इन डेरों में जाने का मुख्य कारण-

१. सिख और हिन्दू समाज में जातिवाद-  जातिवाद के चलते सिख गुरुद्वारों और हिन्दू मंदिरों में जाति विशेष का दबदबा रहता हैं। इस कारण से समाज का एक बड़ा वर्ग हिन्दू समाज की मुख्य धारा से कटकर इन डेरों का मानसिक गुलाम बनता हैं। जहाँ इन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि वे जातिवाद से दूर है। यह एक कैंसर के मरीज को पेरासिटामोल की गोली देने के समान है।  जहाँ उसकी मूल समस्या का कोई समाधान नहीं होता। अपितु उसे दर्दनिवारक दवा देकर केवल शांत किया जाता हैं।

२. दूसरा कारण आध्यात्मिक ज्ञान की कमी- सिख गुरुओं ने मुग़लों के अत्याचारों के साथ साथ हिन्दू समाज में प्रचलित अंधविश्वासों के विरुद्ध भी जनजागरण का अभियान चलाया था। 19वीं शताब्दी में समाज के आध्यात्मिक जनजागरण की कमान आर्यसमाज ने संभाली। पिछले 2-3 दशकों से आर्यसमाज के शिथिल हो जाने के कारण आध्यात्मिक रूप से अतृप्त जनता डेरों के चक्करों में पड़ गई। आर्यसमाज को फिर से वेदों के ज्ञान को जनता में प्रचारित करना चाहिए। जिससे जनता भ्रमित होने से बचे।

3. तीसरा कारण पंजाब में नशे का प्रचलन- वीरों की धरती पंजाब में विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में नशे की लत से एक पूरी युवा पीढ़ी बर्बाद हो गई है।  जिन जिन घरों में कोई नशेड़ी होता है, वह घर का सामान तक बेच कर नशा करता हैं।  सभी डेरे वाले नशे के विरुद्ध व्यापक अभियान चलाते हैं। जिसके प्रभाव से अनेक युवा नशा छोड़ने का संकल्प ले लेते है। उनके नशा छोड़ने से उनका परिवार उस डेरे का अनुयायी बन जाता हैं। पिछले 2-3 दशकों में इस कारण से भी डेरों में जाने वाली संख्या में वृद्धि हुई है।

4. सेल्फ मार्केटिंग- राम रहीम सरीखे डेरे वाले रक्त दान शिविर, बिना दहेज़ के विवाह करवाकर, फिल्में बनाकर, शिक्षण संस्थान खोलकर, हस्पताल आदि खोलकर अपने आपको सेवा करने वाली सामाजिक संस्था के रूप में प्रदर्शित करते हैं। बहुत लोग उनके साथ सेवा कार्य करने के लिए जुड़ जाते हैं।

राम रहीम का डेरा तो अब इतिहास बन जायेगा। अब आगे क्या होगा?

अगर हिन्दू समाज ऐसे ही निष्क्रिय रहा। तो राम रहीम का स्थान कुछ ही वर्षों में कोई अन्य डेरा ले लेगा। पाखंड की एक नहीं अनेक दुकाने ऐसे ही खुलती जाएगी। मगर खतरा अभी टला नहीं है। इस पर किसी का ध्यान नहीं गया है। वह है पंजाब में फैल रहे ईसाई करण का खतरा । अनुसूचित जातियों में पंजाब में पिछले कुछ वर्षों में चर्च की गतिविधियां बहुत बढ़ी हैं। ऐसे में इस भीड़ को लपकने का चर्च पूरा प्रयास करेगा। इस कार्य के लिए वह साम-दाम, दंड-भेद की किसी भी सीमा तक जा सकता हैं। वर्तमान में भी बहुत सारे हिन्दुओं के नाम के आगे मसीह लगा हुआ आप देख सकते है। चर्च के प्रचार का मुख्य कारण धन, नौकरी, शिक्षा या ईलाज की सुविधा, शादी का प्रलोभन, नशे आदि से छुड़ाना और जातिवाद हैं। चर्च और नये ढेरों को रोकने के लिए हिन्दू समाज को रणनीति बनानी होगी। जातिवाद का निराकरण, नशा छुडाने के लिए सुविधा केंद्र, परिवर्तित हुए ईसाईयों की शुद्धि या घर वापसी, शिक्षा का प्रचार, आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा वैदिक संस्कृति का प्रचार, भ्रातृत्व की भावना का प्रचार आदि आवश्यक हैं। इस कार्य में आर्यसमाज और संघ को बड़ी भूमिका निभानी पड़ेगी। आशा में हिन्दू समाज के प्रहरी इस लेख से प्रेरणा लेकर पुरुषार्थ करेंगे।     डॉ विवेक आर्य

 

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