इतिहास साक्षी है कि एक युग था जब समस्त विश्व वेदानुयायी था और आर्यो का सार्वभौम अखण्ड चक्रवर्ती साम्राज्य था. वेदानुयायी होने से संसार भर के मानवों के जीवन भी अति मर्यादित थे और मर्यादित जीवन होने से संसार में सर्वत्र सुख-शान्ति का साम्राज्य था.
इस परिवर्तनशील संसार में सदा किसकी बनी रही है? आर्यों के आलस्य से जब वेद विद्या लुप्त होने लगी तो संसार गहरे अंधकार में निमग्न हो गया. भाषा का पतन हुआ, सभ्यताओं का पतन वैदिक संस्कृति और संस्कारों का पतन हुआ तो मनुष्य अपने आचरण से भी पतित हो गया और अनार्यों का संसार में बोलबाला हो गया. परिणामस्वरूप सत्य का विचार जाता रहा और मानवता कराह उठी.
तब महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने सपना देखा कि यदि सम्पूर्ण विश्व आर्य बन जाए तो पुनरू मानव का कल्याण स्वतरू हो जाएगा. तत्पश्चात दुनियां की सारी बुराइयां मिट जाएगी और अच्छाई का एक नया सवेरा उदय जो समस्त मानव जाति का मार्गदर्शन करेगा. किन्तु आज जब हम विश्व के आर्य बनने की बात कहते हैं तो यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि विश्व को आर्य बनाने के लिए हम किन साधनो का प्रयोग करें वैदिक ज्ञान की इस धारा का मार्ग क्या हो? हमारा मार्ग दर्शन का माध्यम क्या हो आदि आदि
इसलिए हम आज वर्तमान को लेकर बात करें तो बेहतर होगा कि भविष्य में किस तरह एकजुटता से कार्य करें अब हमारे सामने सबसे बड़ा विकल्प भी और प्रकल्प भी यही है. इस संदर्भ में चर्चा यही से शुरू की जाये तो आर्य समाज की स्थापना के कारण और उसके उद्देश्य से हम सब भलीभांति अवगत है. आर्य समाज ने अनेकों बुराइयों, अंधविश्वासों और कुप्रथाओं के विरुद्ध बिगुल बजाया इतिहास इसका गवाह हैं कि आर्य समाज उसमें सफल भी रहा. परन्तु आज समस्या नई-नई सामने है तो पुराने समाधानों से उनका कैसा निराकरण करें?
इसे कुछ इस तरह समझिये कि शतरंज की चालो का जवाब कुश्ती से नही दिया जा सकता, आज वैचारिक शह-मात का खेल है जो मीडिया, इलेक्ट्रोनिक मीडिया और इंटरनेट के माध्यम से खेला जा रहा है. विचार करना होगा कि साप्ताहिक सत्संग जरुरी है पर हमारा युवा तो इंटरनेट पर चिपका है तो हम उन तक कैसे पहुंचे?
सोचिये युवाओं को विचारधाराओं में किस तरह लपेटा जा रहा है. उन्हें विचारधाराओ के नाम पर जहर पिलाया जा रहा है जो समाज के स्वास्थ पर प्रभाव डालकर उसे बर्बाद कर रहा है, पाश्चात्य संस्कृति की तरह खाओ-पियो मौज उडाओ, कौन देखता है जैसे विचारों से भरमाया जा रहा है. हमारी संस्कृति और संस्कारों पर सामाजिक आतंक की छाया है. युवाओं को सिखाया जा रहा है लिव इन रिलेशनशिप में रहो क्या जरुरत है शादी की, आईपीसी की धारा-377 के हटा दी गयी, समलैंगिकता को अपराध से बाहर कर दिया गया. अप्राकृतिक रूप से यौन संबंध को बढ़ावा दिया जा रहा है,
माध्यम पोर्न वीडियो परोसने का हो या अश्लीलता से भरे नाटक परोसे जा रहे हैं. आधुनिकता के नाम पर रिश्तों नातों की मर्यादा को तोड़ना सिखाया जा रहा है. सोशल मीडिया हो या यूट्यूब ऐसे न जाने आज कितने प्लेटफार्म है जिनके माध्यम से हमारे धर्म और संस्कृति पर निरंतर हमले जारी है एक किस्म से कहें तो हम यज्ञ करते रह गये और विधर्मी हमारी संस्कृति को शमशान तक ले गये.
यही सब सोच-समझकर पिछले कुछ समय पहले महाशय धर्मपाल जी के सामने यह विचार रखा गया कि इससे पहले आर्य समाज पुस्तकों, पत्र पत्रिकाओं में सीमित रह जाये हमें अपने युवाओं और दुनिया तक अगर पहुंचना उसे विधर्मी विचारों से बचाना है, तो वैचारिक की चाल का जवाब अपने विचारों से देना पड़ेगा. हमें आर्य समाज का मीडिया सेन्टर खड़ा करना पड़ेगा.
महाशय जी अपना आशीर्वाद दिया और कार्य शुरू हो गया जो आज लगभग पूर्ण रूप से तैयार है. हालाँकि इस कार्य में हमें विलम्ब हुआ किन्तु अपनी रफ्तार बढ़ाकर अभी भी वैदिक संस्कृति की पावन माला को टूटने से बचाया जा सकता है. क्योंकि वेद के जिस आदेश का अनुपालन करने में प्राचीन वैदिक ऋषियों ने अपने सम्पूर्ण जीवनों को खपा दिया था और फिर भी उनकी यह लालसा सदा बनी रहती थी कि पुनरू मानव की योनि में जन्म लेकर वेद के इस आदेश का पालन किया जाए. हमें उसे बचाने का कार्य करना हैं. हमें वेद बचाने है, वैदिक संस्कृति बचानी है. आर्यत्व बचाना है स्वामी जी के देखें सपने को साकार करना है. आज महाशय जी जो आर्य मीडिया के रूप में हमें एक हथियार प्रदान किया है उससे वैदिक संस्कृति को बढ़ाना है ताकि युवाओं तक हम उस वेद ज्ञान को ले जा सकें जिसकी उन्हें इस बदलते दौर में सबसे बड़ी जरूरत है…
महामंत्री -विनय आर्य