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क्या इन्सान फिर अतीत बन जायेगा ?

धरती की शक्ल समय बीतने के साथ इतनी ज्यादा बदलती रही है कि कोई बाहरी प्रेक्षक अगर इन बदलावों को फास्ट फॉरवर्ड करके देखे तो उसे लगेगा कि एक से आकार वाले कई अलग-अलग ग्रह उसकी आंखों के सामने से गुजर रहे हैं. दुनिया की सूरत कितनी तेजी से बदली पता ही नहीं चला लगता है एक तश्वीर में कोई कलाकार बार-बार रंग भर रहा है.

असल में हम आप जो भी चीज देख रहे हैं, उसका अतीत बन जाना तय है. पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व भी इसमें शामिल है. एक दिन ये भी अतीत बन जाएगा. लेकिन कब?

पिछले दिनों ऐसे कई लोगों से मिलना हुआ जिन्होंने कोरोना के कारण हुई लाखों मौतों पर चिंता जाहिर करते हुए इसे दुनिया का अंत बता डाला.

लेकिन हर एक बताने वाले के चेहरे पर एक अजीब सी शांति दिखी जैसे उसको इससे कुछ नहीं होगा. फिर मुझे युधिष्ठिर और यक्ष संवाद का वो प्रश्न याद आता है जब यक्ष ने युधिष्ठिर से पूछा था कि ष्संसार का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है..?

युधिष्ठिर ने बिना पल गवांये प्रतिउत्तर में बताया था कि ष्संसार में रोजाना हजारों लोग मरते है लेकिन फिर हर एक जीवित इन्सान आशा में जीता है कि उसका कुछ नहीं बिगड़ने वाला..

लेकिन आज जब कोरोना से महामारी देखी, इंसानों को घरों में कैद और एक दूसरे से दूर भागते देखा तो लगा शायद युधिष्ठिर गलत साबित हो रहा है क्योंकि इन्सान मौत से डरकर छिप गया है..

दरअसल लोग भले ही अभी विश्वास न करें लेकिन जीवाश्मों के अध्ययन के अनुसार पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व को करीब 3.5 अरब साल हो चुके हैं. इतने समय में पृथ्वी ने कई तरह की आपदाएँ झेली हैं दृ युद्ध झेले महामारी से लेकर आपसी टकराव भी देखें इसके अलावा अंतरिक्ष की चट्टानों का टकराना, प्राणियों में बड़े पैमाने पर जहर का फैलना, जला कर सब कुछ राख कर देने वाली रेडिएशन देखी..

जाहिर है यदि जीवन को ऐसा भीषण ख़तरा पैदा हो तब भी पृथ्वी से पूरी तरह से जीवन का अस्तित्व ख़त्म अभी नहीं हो पाएगा.

क्या इसके बाद पृथ्वी बंजर भूमि में तब्दील हो जाएगी या कब तक रहेगा पृथ्वी पर जीवन? पृथ्वी पर जीवन के अस्तित्व से जुड़ी संभावनाओं और आशंकाओं पर पिछले दिनों बीबीसी पर एक रिपोर्ट पढ़ी थी..

लिखा था संभव है कि पृथ्वी पर जीवन ज्वालामुखियों के विस्फोट से 25 करोड़ साल में खत्म हो जाएगा. ऐसा होने पर पृथ्वी पर मौजूद 85 फीसदी जीव नष्ट हो जाएंगे जबकि 95 फीसदी समुद्री जीवों का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा.

इस दौरान ज्वालामुखी से जो लावा निकलेगा, वो ब्रिटेन के आकार से आठ गुना बड़ा होगा. लेकिन जीवन अपने आप गायब नहीं होगा.

ये सामान्य जानकारी है कि पृथ्वी पर से डायनासोर प्रजाति का बड़े ग्रहों के टकराने के कारण अंत हुआ था. अगर एक भारी-भरकम ग्रह के टकराने से विशालकाय डायनासोर लुप्त हो सकते हैं तो फिर एक दूसरी टक्कर से पृथ्वी पर जीवन भी नष्ट हो सकता है.

इस विषय पर 2003 में हॉलीवुड में द कोर नाम से फिल्म बन चुकी है. इस फिल्म की कहानी है- पृथ्वी का केंद्र रोटेट करना बंद कर देता है, तब अमरीकी सरकार पृथ्वी के केंद्र तक ड्रिलिंग करके रोटेशन को सही करने की कोशिश करती है. एक्टिव कोर नहीं होने से पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र ख़त्म हो जाएगा और इससे पृथ्वी का पूरा जीवन ख़तरे में आ सकता है.

लेकिन अब लगता है यह रिपोर्ट निराधार निकली क्योंकि जो हमलावर है उसका अस्तित्व विशालकाय नहीं है बल्कि बेहद सूक्ष्म है जो इन्सान को बाहर से नहीं अन्दर से तोड़ रहा है खोखला करके खा रहा है. सिर्फ इन्सान ही नहीं बड़ी शक्ति सेना और अर्थव्यवस्था गटक रहा है. इन्सान बाहरी शक्ति से लड़ सकता है उस पर मिसाइल दाग सकता है लेकिन अन्दर डालने के लिए एक छोटी कुछ एमजी की दवा के लिए मारा मारा फिर रहा है.

हो सकता है एक बार फिर इन्सान अपने इस सूक्ष्म शत्रु को हरा दे, उसका वजूद समाप्त कर दे लेकिन इस शत्रु ने इन्सान को यह अहसास तो करा दिया कि वो कितना लाचार है और उसकी बनाई टेक्नोलॉजी उसके द्वारा विकसित सभ्यता कभी भी समाप्त हो सकती है. लेकिन इन्सान ने अभी तक बहुत महामारी देखी है इस बार भी आशा है कि इन्सान फिर जीत जायेगा ?

राजीव चौधरी

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