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न सांप मरा न लाठी टूटी!!

देश के राजनेताओं के लिए भले ही आज गुजरात के गधे प्रासंगिक हो पर मेरे लिए आज दिल्ली के सांप प्रासंगिक है. वो सांप जो आस्तीन में रहकर बार-बार डस रहे है. विश्व शोधकर्ताओं को यकीन है कि बेहद गहराई में रह रहे छोटे छोटे जीवों का अध्ययन करके वो धरती से परे जीवन की संभावनाओं का पता लगाने में कामयाब हो सकते हैं. उनकी रुचि यह जानने में है कि यहां जीवन कैसे बच सकता है और कैसे आगे बढ़ सकता है. हो सकता है उन शोधकर्ताओं की इन जीवों में रूचि हो किन्तु मेरी रूचि फिलहाल यह जानने में है कि देश कैसे बचे और आगे बढ़ सकता है. देश के अन्दर ही अन्दर पलते सांपो को कैसे खत्म किया जाये! इन देश के दुश्मनों से कैसे बचा जाये ताकि इस देश की अखंडता बनी रहे.

सुना है पिछले साल जेएनयू से निकले भारत माता के टुकड़े करने वाले, लेकर रहेंगे आजादी वाले सांप कल रामजस कॉलेज में पहुँच गये जहाँ उन पर लाठी डंडो से वार किया गया. हालाँकि समय पर पुलिस और मीडिया पहुँच गयी जिसके बाद न सांप मरा न लाठी टूटी…

पिछले महीने की ही तो खबर थी कि गुरुग्राम सेक्टर 17 ए में बंदरों का आतंक बढ़ता जा रहा है, गुप्तकाशी के एक गांव में लंबे समय से गुलदार का आतंक बना हुआ है और कश्मीर में आतंकियों से हर रोज मुठभेड़ हो रही है. खैर पुरे मामले से फिर एक तश्वीर साफ हो गयी कि भले ही किसी देश के शिक्षण संस्थाओं से उस देश का अच्छा भविष्य निकलता हो किन्तु भारत को आजाद हुए 70 साल हो गये पर अभी भी यहाँ के स्कूलों से आजादी के परवाने ही निकल रहे है. पता नहीं अब इन्हें कौनसी आजादी चाहिए? बन्दर वाली या आदमखोर गुलदार वाली!

यदि कोई मुझसे पूछे कि देश आजाद होने के बाद क्या मिला तो मेरा खुशी से जवाब होगा कि लोकतंत्र और दुःख के साथ यह कहूँगा आजादी मिली पर इतनी नहीं मिली जितना कश्मीरियों को मिली! संविधान का पन्ना-पन्ना पढ़ उलट-पलट लीजिये यदि कश्मीर शेष भारत से ज्यादा आजाद न हुआ तो उनकी आजादी हमसे पांच ग्राम भी कम हुई तो मेरे कान मदारी के जमूरे की तरह एठ देना. हमें तो सिर्फ वोट डालने की आजादी है जनाब उन्हें तो घूम-घूमकर पत्थर मारने की भी आजादी है. हमें शायद इतनी आजादी नहीं कि हम श्रीनगर लालचैक पर तिरंगा फहराये पर उन्हें देखिये साहब वो तो दिल्ली में भी राष्ट्र के दुश्मनों के झंडे लेकर खड़े हो जाते है.

जिस आजादी की बात आज कुछ कश्मीरी कर रहे है कभी मजहब के नाम पर हमसे एक दिन पहले उसी आजादी के साथ हमारा एक पड़ोसी मुल्क भी आजाद हुआ था, कहते थे एक ऐसा मुल्क बनायेंगे जिसमे सब को अधिकार हो जो सिर्फ मुसलमानों की बेहतरी के लिए होगा लेकिन अंदाज़ा ही नहीं था कि इस हरे झंडे के तले मुसलमान से ज़्यादा सुन्नी, शिया, वहाबी, देवबंदी, बरेलवी और तालिबानी फले फूलेंगे. अब हाल देख लीजिये पहले कॉलेज स्कूल फिर, बाजार, मस्जिद, मदरसा और अब दगराह. जिस दहशत से आज वो मुल्क गुजर रहा है यह सब अब उस मुल्क का हिस्सा बन गया है. इस्लाम और जेहाद के नाम पर दहशत की जो फसल खुद की मिट्टी में सींची थी उसे अब हाफिज सईद, तालिबानी जैसे लोग काट रहे हैं. आधा मुल्क मजहबी भाषा लाधने के चक्कर में गंवा दिया बाकि का हद से ज्यादा मजहबी उन्माद पी जायेगा.

यहाँ कह रहे है आजाद होकर कश्मीर को स्विटजरलैंड बनायेंगे, कैसे बनेगा स्विटजरलैंड? ये मजहबी उन्माद सिर्फ सीरिया बना सकता है, इराक, यमन, सोमलिया बना सकता है, स्विटजरलैंड नहीं! क्योंकि 56 देश है इसी मानसिकता से ग्रस्त न कहीं लोकतंत्र न कोई स्विट्जरलैंड? कुछ लोग कहेंगे मुझे शब्दों के इस तरह हमले नहीं करने चाहिए पर शायद ये तो वह तर्क है जो सच्चाई का आईना दिखा रहे है हमले वो है जो हर रोज देश के सैनिको को झेलने पड़ते है. एक बार शांति और सोहार्द बनाकर देखो कश्मीर भारत का स्विटजरलैंड ही है.

जो लोग टुकड़े करने वाले इस तरह के नारों को अभिव्यक्ति की आजादी कहते है चाहें उमर खालिद हो या कोई अन्य दल का नेता वो एक बार पाकिस्तान जाये और गुलाम कश्मीर की आजादी के लिए लाहौर चौक पर पाकिस्तान तेरे टुकड़े होंगे इंसाअल्लाह जैसे नारे लगाकर जिन्दा जेएनयू तक आ जाये तो हम मान भी जाये कि यहाँ गुलामी है.

सवाल यह नहीं कि आज आइसा और एबीवीपी दोनों संगठनों में कौन राष्ट्र भक्त है और कौन देशद्रोही! सवाल यह है कि आज हमारे स्कूल-कालेज शिक्षा के संस्थान राष्ट्र की उन्नति के प्रतीक बन रहे बन रहे है या राजनीति और देश बंटवारे के अड्डे?  बरहाल अब यहाँ से आगे की राजनीति यह होगी कि यदि पुलिस उमर खालिद या किसी अन्य को गिरफ्तार करेगी तो विपक्ष कूद पड़ेगा यदि कोई कारवाही नही हुई तो तो भी विपक्ष कूद पड़ेगा. जो नेता आज ये सोचते है कि देश की जनता को हर रोज इस तरह की ओछी राजनीति कर गधा बनाया जा सकता है तो मेरा उनसे यही कहन है कि भाई अब गधे बड़े हो गये!

राजीव चौधरी

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