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चलते चलते काठमांडू दर्शन

यदि धार्मिक धरोहर सहेजने की बात की जाये तो नेपाल भारत से कुछ अंक ज्यादा ले जायेगा. कारण हमने जहाँ मुगल और ब्रिटिश साम्राज्य सभ्यता को अपना इतिहास समझ उसे बचाकर रखा वहीं नेपाल ने अभी पुरानत हिंदुत्व सभ्यता सहेजने का काम किया. हिन्दू ही नहीं नेपाल ने बोद्ध मत का भी काफी रख रखाव किया. किन्तु उसे धार्मिक जीवन शैली तक ही सिमित रखा पर सनातन परम्परा को अभी तक सामाजिक राजनैतिक जीवन शैली में कायम रखे हुए है. मतलब कि जैसे साप्ताहिक अवकाश रविवार की बजाय शनिवार को होता है. गाड़ियों पर देवनागरी हिंदी भाषा के शब्द और अंको में नम्बर लिखे मिलेंगे. यहाँ अभी भी अंग्रेजी कलेंडर के बजाय सनातन हिन्दू आर्य कलेंडर ही प्रयोग होता है. आम जीवन में हिंदू धर्म का प्रभाव अब भी कायम है. संघीय लोकतांत्रिक गणतंत्र के राष्ट्रपति से लेकर सड़कों पर मौजूद पुलिसकर्मियों तक- राज्य के अधिकारियों को अपनी हिंदू पहचान प्रदर्शित करने में कोई हिचक नहीं होती. ज्यादातर सार्वजनिक अवकाश हिंदू त्यौहारों दशहरा, दिवाली और रामनवमी पर होते हैं. सरकारी विभाग नियमित रूप से कई मंदिरों और पारंपरिक अनुष्ठानों के लिए बजट जारी करते हैं. काठमांडू की सड़कों पर आपको कोई लघुशंका करता नहीं मिलेगा इसके लिए यहाँ प्रसासनिक स्तर पर भारी दंड का प्रावधान है.
अंतर्राष्ट्रीय आर्य महासम्मेलन काठमांडू सफलता के वैदिक नाद के साथ संम्पन्न हो चूका था देश-विदेश से आये हजारों की संख्या में आर्य लोग अपने घरों की ओर लौटने लगे थे. सम्मलेन की खुमारी इस तरह लोगों के मन मस्तिक्ष पर हावी थी कि अभी तक लोग वैदिक भजन गुनगुनाते मिल जाते थे. आर्य समाज का शुभ वैदिक कार्यक्रम भली प्रकार सम्पन्न होने से हमारे मन भी पुष्प की भांति प्रफुलित खिले थे. तो हमने काठमांडू घुमने का मन बनाया. सर्वप्रथम ये सोचा की जाया कहाँ जाये? फिर भी बिना किसी से पूछे निकल पड़े काठमांडू की तंग गलियों से होकर एक अनजान शहर में कुछ जाना पहचाना खोजने. थोड़ी दूर चलने के बाद काठमांडू स्थित बसंतपुर दरबार स्क्वेयर में हम लोग पहुँच चुके थे यहाँ की मुख्य पहचान यहाँ का काष्ठ मंडप जिसके बारे मेँ कहा जाता है कि आज से लगभग 5 हजार साल पहले महाभारत काल में काष्ठ मंडप का निर्माण श्री कृष्ण के लिए किया गया था. इस का निर्माण एक ही वृक्ष की लकडी से हुआ था और इसमेँ एक भी कील का इस्तेमाल नहीँ हुआ था. यहाँ पर पंच महायज्ञ का प्रतिदिन आयोजन होता है. लोग आते-जाते मंदिर के बाहर लोहे से बने गोलाकार हवनकुंड में आहुति देते रहते देखे जा सकते है. पक्षियों को दाना डालते है ब्राह्मणों को भोज कराते है. मंदिर तो पूरी तरह जमींदोज हो चूका है किन्तु हवन अभी प्रतिदिन चलता रहता है वैसे बसंतपुर के के करीब 80 फीसदी मंदिर तबाह हो गए. जमींदोज हुए मंदिरों में काष्ठ मंडप मंदिर, पंचतले मंदिर, दसावतार मंदिर और कृष्ण मंदिर शामिल हैं. जो बचे है उन्हें लकड़ी की बल्लियों के सहारे खड़ा रखा गया है.
इसके अलावा काठमांडू दरबार स्क्वायर मेँ एक मंदिर ऐसा भी है जोकि हिंदू और जैन दोनो धर्म के मानने वालोँ के लिए है और ये तीन मंजिला है. इस मंदिर का शिल्प वास्तव मेँ अदभुत है. यहाँ पर एक मंदिर शिव पार्वती मंदिर के नाम से भी है और यह भी यहाँ का प्रसिद्ध मंदिर है. इसके अलावा यहाँ पर कुमारी महल भी है जहाँ पर जीवित कुमारी रहती है. यह एक मठ की तरह है. एक लड़की को जीवित देवी माना जाता है और वह वह वहाँ तब तक रहती है जब तक की वह अपनी एक कुमारी अवस्था को खत्म कर सामान्य जीवन मेँ नहीँ लौट जाती. ऐसा माना जाता है कि जब देवी अपनी सामान्य अवस्था में लौट आती है तो भी उसे विवाह आदि या किसी पुरुष से दूर ही रखा जाता है. हम भी कुंवारी देवी के दर्शन के लिए इस महल मेँ चले गये यहाँ आकर पता चला कि देवी बहुत अलग अलग समय पर दर्शन देती है. अभी जो उनके दर्शन का समय था उसमेँ कुछ समय बाकि था. एक बार को तो मन हुआ कि छोड़ो लेकिन उसके बाद फिर भी अशोक जी के कहने पर खड़े रहे थोड़ी देर बाद और विदेशी लोग भी आने लगे और करीब 5 मिनट बाद तो वहाँ पर काफी भीड़ हो गई. मंदिर प्रसाशन की ओर से सबको शांत रहने की सलाह दी सब खामोश हो गये अब बस केवल खिडकियों पर बैठे कबूतरों की घुटरघू सुनाई दे रही थी. हमारे सामने ही एक खिड़की लगी हुई थी जिसमेँ बताया गया था कि यहाँ से देवी दर्शन देंगी. अब अचानक खिड़की से एक वृद्ध स्त्री जो कभी पहले वहां देवी रही होगी उसके इशारे पर देवी ने दर्शन दिए. देवी ने किसी भी भक्त की तरफ देखा तक नहीँ सामने देखती रही. भक्तो ने उनको प्रणाम किया किसी को भी ज्यादा जोर से बोलने और फोटो खींचने की मनाही थी. एक मिनट बाद ही देवी वापस अंदर चली गई.
जीवित देवी यानि कुमारी कोई 10 या 12 साल की एक बच्ची थी जिसका श्रंगार प्राचीन नेपाली ढंग से किया गया था. काजल आँखों से शुरू होकर कानों तक लगा था. अब हमें सिर्फ यह पता करना बाकि था कि जीवित देवी का चयन किस आधार पर होता है. पहले तो हम लोगों ने मंदिर प्रसाशन से पता किया लेकिन उन्होंने इस बारे में कम समय का हवाला देकर बताने से स्पष्ट इंकार कर दिया किन्तु अन्य लोगों से जो जानकारी जुटाई वो इस प्रकार थी कि नेपाल में कुमारी के चयन के मापदंड सख्त हैं. कई तरह की परीक्षाओं पर खरा उतरने के बाद दो वर्ष की उम्र में सजनी शाक्य को श्कुमारीश् चुना गया था और उनसे उम्मीद थी कि रजस्वला होने से पहले (यानी मासिकधर्म शुरु होने से पहले) तक वह उत्सवों में हिस्सा लेगी और भक्तों को आर्शीर्वाद देती रहेंगीं.शारीरिक विशेषताओं के साथ बहुत सारी अनिवार्यताओं पर खरा उतरना जरूरी होता है. तब कहीं वह कुमारी बन पाती हैं सोलहवीँ सदी मेँ राजाओं ने जब इस जगह को बनवाया तो तेलजू मंदिर के तहखाने के अन्दर एक लड़की चली गयी तहखाने के अन्दर घुप अँधेरा था और लड़की बिना डरे उसमें अन्दर थी तो पुजारियों ने उसे जीवित देवी का दर्जा दिया. इसके बाद परम्परा चलती आ रही है कि जो लड़की तेलजू मंदिर के तहखाने में बिना डरे रह लेती है उसे ही जीवित कुमारी मान लिया जाता है और उसे बाद में कुमारी देवी के मंदिर में भेज दिया जाता है. ज्ञात रहे नेपाल में राजशाही के दौरान राजा बनने की शपथ से लेकर हर अति महत्वपूर्ण काम बिना कुमारी देवी के आर्शीवाद के नही होते थे.
काठमांडू का प्राचीन नाम काष्टमंडप था. एक ही वृक्ष की से मंडप निर्माण होने के कारण इस स्थान का नाम का काष्ठ मंडप पड़ा. कालांतर में अपभ्रंश के रुप में काठमांडू जाना जाता है. इसके बाद अगले दिन हम लोग रॉयल पेलेश देखने की इच्छा लिए निकल पड़े तो पता चला यह सिर्फ सुबह 11 बजे से सांय तीन बजे तक खुलता है. हम थोडा लेट थे तो इसके बाद हम पशुपति नाथ मंदिर देखने पहुंचे. नेपाल की पहचान पशुपति नाथ के कारण ही है, अधिकतर हिन्दू तीर्थयात्री पशुपतिनाथ के ही दर्शन करने नेपाल पहुंचते हैं. यहाँ पहुंचने पर भी आम भारतीय मंदिरों जैसा दृष्य दिखाई दिया. भभूत लपेटे साधू महात्मा. मंदिर के अन्दर कीर्तन आरती गाते लोग वही माला, मोती, पूजन सामग्री की दुकानें सजी हुई थी. नेपाल की अधिकतर दुकानों में मालिक नहीं मालकिनें ही दिखाई दी. मंदिर परिसर में कैमरे का प्रयोग वर्जित है. लगभग बड़े मंदिरों में कैमरे का प्रयोग वर्जित कर दिया जाता है. सुरक्षा कारण बता कर इसका व्यावसायिक लाभ उठाया जाता है तथा मंदिर समिति द्वारा चित्र बेचे जाते हैं.
मंदिर के मुख्यद्वार में प्रवेश करने पर पीतल निर्मित विशाल नंदी बैल दिखाई देता है. किसी भी धातू निर्मित इतना बड़ा नंदी मैने अन्य किसी स्थान पर नही देखा. लगभग 7 फुट के अधिष्ठान पर सजग नंदी स्थापित है. मंदिर पगौड़ा शैली में काष्ठ निर्मित है. मंदिर के शीर्ष पटल पर राजाज्ञा लगी हुई है तथा राजाओं के चित्रों के साथ द्वारा किए गए निर्माण की तारीखें भी लिखी हुई हैं. मंदिर के शीर्ष एवं दरवाजों पर सुंदर कलाकृतियों का निर्माण हुआ है. लकड़ियों पर भी बेलबूटों के साथ मानवाकृतियों की खुदाई की हुई है. मंदिर के पूर्व की तरफ के परकोटे से झांकने पर बागमति नदी दिखाई देती है.नेपाल के निवासी धार्मिक कर्मकांड एवं पिंडदान इत्यादि इसी नदी के किनारे पर कराते दिखाई दिए. जिस समय हम पहुंचे एक दाह संस्कार हो रहा था तो थोड़ी दुरी पर दूसरे की तेयारी चल रही थी. नदी के किनारे मुक्ति घाट, आर्य घाट बना हुआ है, यहाँ अंतिम संस्कार क्रिया होती है। इसके साथ मृतक संस्कार करवाने के लिए कई घाट बने हुए हैं. जिसका निर्माण पुराने समय के शासकों ने कराया है. पशुपति नाथ के दर्शन करने में ही अँधेरा हो गया हमारा कारवां चल पड़ा अगले पड़ाव की ओर …..
राजीव चौधरी

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