जय-जय सद्गुण-सदन साधु सद्धर्म सुधारक।
जय जय विमल विवेक विबुध वर वेद-विचारक।।
जय धर्म-धुरन्धर धीर धर, आर्य जाति के ध्रुव धवल।
जय दयानन्द ऋषिवर प्रवर, देशभक्ति-सर शुचि कमल।।
जय अति अनुपम अमल उच्च उद्देश्य उजागर।
संयम सुकृत सनेह शील साहस के सागर।।
आत्मत्याग-अनुराग-योग मूरति मन-भावन।
भवभय-भीषण भूरि भ्रान्ति भ्रम-भेद-नसावन।।
जय प्रतिभापूर्ण पयोधि प्रिय, पुण्य-प्रभा-विकसित करन।
जय दयानन्द ऋषिवर प्रवर दुःखियन-दुःख दारूण-हरन।।
जय गुरु गौरवरूप शुद्ध सत्यार्थ-प्रकाशक।
ब्रह्मचर्य व्रत-वीर दम्भ दाहक के नाशक।
पूरण-प्रकट-प्रताप-प्राण दे प्रण के पालक।
मुनिवर जीवनमुक्त विपुल विघ्नों के घालक।।
जय भारत भूषण विमल मति, सदय-हृदय दूषण-दलन।
जय दयानन्द ऋषिवर प्रवर छल, बल, दल, मोटे खलन।।
जय निर्भय निष्कपट निरन्तर नुत निष्कामी।
दृढ़व्रत प्रतिपल, शूरवीर सच्चे नर नामी।।
जय दयानन्द ऋषिवर प्रवर, जयति जयति जय जयति जय।।
जय! जय!! जय!!! पौरुषी पुरुष प्रभुवर के प्यारे।
दे देकर उपदेश देश के क्लेश निवारे।।
वैदिक बोध विशुद्ध विश्व भर को बतलाया।
प्रतिभा का पीयूष प्रेम से हमें पिलाया।।
चहुं ओर, चारु निज चरित से, छिटकाई कीरति किरण।
जय दयानन्द ऋषिवर, प्रवर सादर वन्दौं तव चरण।।