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जय हो वीर हकीकत राय

जय हो वीर हकीकत राय। सब जग तुमको शीश नवाय।। जय हो…

सत्रहसौ सोलह का दिन था, पुत्र पिता से पूर्ण अभिन्न था।

स्याल कोट भी देखकर सियाय।। जय हो…

वीर साहसी बालक न्यारा, व्रत पालक, बहु ज्ञानी प्यारा।

कोई न जग में उसके सिवाय।। जय हो…

मुहम्मद शाह का शासन काल था, असुरक्षित हिंदू का भाल था।

छोटी उम्र में कर दिया ब्याह।। जय हो…

पिता ने दाखिल किया मदरसा, सीखने अरबी, फारसी भाषा।

बड़ा हो अफसर नाम कमाए।। जय हो…

देख बुह्, कौशल, चतुराई, दया मौलवी ने बरसाई।

चिड़ गए सारे मुस्लिम भाई।। जय हो…

मारा पीटा और धमकाया, साजिश रचकर उसे फसाया।

ले गए काजी पास लिवाय।। जय हो…काजी

बोला-इस्लाम धर्म को करो कबूल, या फिर जीवन जाना भूल।

जल्लाद से आरी दू° चलवाय।। जय हो…

वीर बालक बोला- जीना मरना प्रभु की इच्छा, धर्म, पूर्वजों का ही अच्छा।

हसकर दे दिया शीश चढ़ाय।। जय हो…

वसंत पंचमी का दिन प्यारा, अमर हुआ बलिदान तुम्हारा।

विमल यशस्वी गान सुनाय।। जय हो….

तेरह वर्ष की उम्र में जिसने किया बलिदान,
वीर बालक का करें जय जय जय गुणगान

-विमलेश बंसल ‘आर्या’

– 329 द्वितीय तल, संत नगर, पूर्वी कैलाश, नई दिल्ली-110065

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