Categories

Posts

तीन तलाक आखिर इसमें बदला क्या हैं?

उर्दू के मशहुर शायर गालिब ने कहा है, “यह कोई न समझे कि मैं अपनी उदासी के गम में मरता हूँ. जो दुख मुझको है उसका बयान तो मालूम है, मगर इशारा उस बयान की तरफ करता हूँ’’ जमात उलेमा ए हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने तीन तलाक पर कोर्ट के फैसले के बावजूद कहा है कि “एक साथ तीन तलाक़” या तलाक़-ए-बिद्दत को वैध मानना जारी रहेगा. मदनी ने कहा कि अगर आप सजा देना चाहें तो दें, लेकिन इस तरह से तलाक़ मान्य होगा. मदनी ने कहा है, “हम इस फैसले से सहमत नहीं हैं. हम समझते हैं कि अपना धर्म मानने के मौलिक अधिकार पर भी ये हमला है. निकाह, हलाला और बहुपत्नी प्रथा का बार-बार जिक्र करना इस बात का संकेत है कि अभी और भी हस्तक्षेप के लिए और भी मुद्दे निशाने पर होंगे.”

पिछले दिनों तीन तलाक को लेकर राजनितिक, सामाजिक और धार्मिक क्षेत्रों में जो स्वतन्त्रता दिवस मनाया जा रहा है वो एक मायने में सही और कई मायनों में गुमराह सा करने वाला है. देश के मीडिया समूह और राजनेताओं ने इस खबर को मुस्लिम महिला की आजादी बताकर जिस तरीके से परोसा उसमें लोगों द्वारा अपनी-अपनी धार्मिक और राजनैतिक हेसियत के अनुसार खूब चटकारे लिए जा रहे है. मुस्लिम महिलाओं को लेकर उपजी इस संवेदना के पीछे कुछ ना कुछ तो जरुर रहा होगा सिवाय एक मदनी के कोई दूसरा स्वर नहीं फूटा?

इस पुरे मामले को समझे तो हुआ यूँ कि बीते साल दो बच्चों की मां 35 वर्षीय मुस्लिम महिला शायरा बानो जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचती है तो तीन तलाक़ के ख़िलाफ अभियान एक बार फिर जिंदा हो उठता है.

शायरा बानो ने साल 2016 की फरवरी में अपनी याचिका दायर की थी. उसने कहा था कि जब वह अपना इलाज कराने के लिए उत्तराखंड में अपनी मां के घर गईं तो उन्हें तलाक़नामा मिला. शायरा बानो ने इलाहाबाद में रहने वाले अपने पति और दो बच्चों से मिलने की कई बार गुहार लगाई लेकिन उन्हें हर बार दरकिनार कर दिया गया. और, उन्हें अपने बच्चों से भी मिलने नहीं दिया गया. इसके बाद शायरा बानो ने सर्वोच्च न्यायालय में अपनी याचिका में इस प्रथा को पूरी तरह प्रतिबंधित करने की मांग उठाई. जबकि शायरा ने ये भी कहा है कि हलाला और कई पत्नियां रखने की प्रथा को भी गैर क़ानूनी ठहराया जाए.

सुप्रीम कोर्ट में शायरा बानो की इस अपील के बाद देश के मीडिया से लेकर धार्मिक जगत में इस भयंकर कुप्रथा के किले को भेदने के लिए सबने अपने तमामतर साधन अपनाये, कोई मौखिक रूप से तो किसी ने न्यायिक रूप से इसमें मुस्लिम महिलाओं की आवाज उठाई

तमाम उठापटक और बहस के बाद आखिर २२ अगस्त को फैसला आया जिसमें सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की खंडपीठ ने ३-२ के बहुमत से यह फैसला सुनाया कि एक साथ तीन तलाक असंवैधानिक है. तीन में से दो जजों ने कहा है कि ये असंवैधानिक है. तीसरे जज ने ये कहा है कि चूंकि इस्लाम को मानने वाले इसको खुद गलत मानते हैं और कुरान शरीफ में इसका जिक्र नहीं है इसलिए मैं इसको मान लेता हूं कि ये गलत प्रथा है और इसको ख़त्म किया जाना चाहिए.

मीडिया ने इतना सुनते ही अखबारों की सुर्खियाँ बना डाला कि तीन तलाक खत्म और मुस्लिम महिला आजाद, जबकि इस मजहबी कानून को यदि भावनात्मक लिहाज से ना देखते हुए न्यायिक प्रक्रिया से देखे तो इसमें कोर्ट वही बात दोराही ही जिसे मुल्ला मौलवियों का एक बड़ा धडा टेलीविजन की बहस से लेकर हर एक सामाजिक धार्मिक मंच पर दोराहा रहा था. मुसलमानों में कोई ऐसा तबका नहीं है जिसने ये कहा हो कि ये प्रथा गुनाह नहीं है. मुसलमानों के हर तबके ने सुप्रीम कोर्ट को ये कहा था कि तीन तलाक़ एक वक्त पर देना गुनाह है. जब मुस्लिम समुदाय यह ख़ुद मान रहा है कि यह एक गुनाह है और सुप्रीम कोर्ट ने इसको बुनियाद बना कर फैसला दिया है. तो इसे मुस्लिम महिलाओं की स्वतन्त्रता आदि से जोड़कर क्यों देखा जाये? शायद इसके रणनैतिक कारण हो सकते है. मौखिक रूप तलाक था अब भी है और तब तक रहेगा जब तक देश में समान नागरिक आचारसंहिता लागू नहीं हो जाती.

तलाक़…तलाक़…तलाक़… एक साथ कहने से अब शादी नहीं टूटेगी. अब महिलाओं को क्या नया अधिकार मिला है? दरअसल यह फैसला बहुत ही संतुलित है. इसमें सबसे महत्वपूर्ण ये है मौखिक तलाक देने का हक अभी भी मुस्लिम समाज के पास सुरक्षित है. बस जरा सा अंतर यह आया कि एक साथ एक समय में कहे तीन तलाक अब मान्य नहीं होंगे लेकिन यह सन्देश कितनी मुस्लिम महिलाओं के पास पहुंचेगा? जबकि ऐसे मामले देश की 20 करोड़ मुस्लिम आबादी में गिने चुने ही आते है.

इसे कुछ इस तरीके से भी समझ सकते है कि तीन तलाक़ एक वक्त में देने से तलाक़ नहीं होगा. लेकिन दो और तरीके हैं तलाक़ के. एक है तलाक़-ए-अहसन और दूसरा तलाक़-ए-हसन. तलाक-ए-अहसन में तीन महीने के अंतराल में तलाक़ दिया जाता है. तलाक-ए-हसन में तीन महीनों के दौरान बारी-बारी से तलाक दिया जाता है. इन दोनों के तहत पति-पत्नी के बीच समझोते की गुंजाइश बनी रहती है. हां अब एक वक्त में तीन तलाक़ से तलाक़ नहीं होगा लेकिन ये दो इस्लामी रास्ते अभी भी तलाक़ देने के लिए खुले हैं और इसमें भारतीय न्यायालय कोई दखल नहीं दे सकता. जो लोग आज इस 1400 साल पुरानी तीन तलाक की प्रथा पर सुप्रीम कोर्ट का हथोडा समझ रहे है उन्हें यह भी समझना होगा कि आखिर इसमें बदला क्या?

लेख- राजीव चौधरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *