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पुस्तक मेले में सत्यार्थ प्रकाश का प्रचार जरुरी क्यों

क्या आप नये साल में कुछ नये संकल्प लेने की तलाश कर रहे है, तो सभी अच्छे संकल्पों के बीच  एक संकल्प और ले सकते हैं। वह संकल्प जो आज से सैंकड़ों वर्ष पहले महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए लिया था। वह संकल्प जिसे बाद में स्वामी श्रद्धानंद, पं. रामप्रसाद बिस्मिल, वीर अशफाक उल्ला, श्यामजी कृष्णवर्मा, लाला लाजपतराय, भाई परमानंद, वीर सावरकर पंडित लेखराम न जाने और कितनी महान विभूतियों ने धारण कर इस राष्ट्र और मानव जाति की रक्षा की।

कुछ लोग सोच रहे होंगे कि आज तो देश स्वतंत्र और हम शक्ति सम्पन्न है अब ऐसे संकल्पों की क्या जरूरत है। तो उन्हें यह भी पता होगा आज भले ही बाहरी शत्रुओं को हम रोकने में सक्षम हों, किन्तु अंदर ही अंदर कुसंस्कारों की दीमक धीरे-धीरे हमारी आने वाली नस्ल को चट कर रही हैं। इसे बचाने के लिए हमें इस संकल्प की अत्यंत जरुरत हैं और वह जरूरत हर घर में सत्यार्थ प्रकाश से बेहतर क्या हो सकती है।

क्योंकि केवल कुसंस्कार ही नहीं आज हमारी नई पीढ़ी के ऊपर भाषाई, मजहबी, पश्चिमी संस्कृति से लेकर अन्य पंथों के लोग हमारे युवक-युवतियों को बरगलाने का कार्य कर रहे हैं। प्रेमजाल, भ्रमजाल, अंधविश्वास का जाल या फिर सिनेमा के माध्यम से विचारों का ऐसा जाल फेंक रहे हैं कि जिसमें हमारा युवा उलझता जा रहा हैं। विडम्बना देखिये! इस बात का पता सबको है लेकिन अधिकांश तो ये सोचकर संतोष व्यक्त कर रहे कि हमारे बच्चें अभी सही हैं, किन्तु अनेकों इस संतोष में रहते-रहते अपनी औलादों को अपने हाथों से खो भी चुके हैं।

ये एक ऐसी त्रासदी है जिसका हर रोज कोई न कोई एक शिकार हो रहा है। आर्य समाज इस सामाजिक, धार्मिक त्रासदी से भविष्य में पड़ने वाले प्रभाव का समझ रहा है। इससे बचाने के लिए ही आर्य समाज प्रतिवर्ष विश्व पुस्तक मेले में जाकर युवाओं को 50 रूपये की कीमत का सत्यार्थ प्रकाश 10 रूपये में उपलब्ध कराता है। वह सत्यार्थ प्रकाश जिसने भारत से अंधविश्वास, सती प्रथा को खत्म किया, जिसनें नारी शिक्षा पर जोर दिया, विधवा विवाह शुरू कर उन्हें नया जीवन दिया। यदि सत्यार्थ प्रकाश न होता तो क्या देश में एक विधवा नारी इंदिरा गाँधी देश की प्रधानमंत्री बन पाती? ब्रिटिश साम्राज्य की जड़ें खोखली कर देने वाले इस अमर ग्रन्थ ने इस देश को संजीवनी दी।

आज एक बार फिर देश उसी माहौल में जाता दिख रहा हैं। वर्तमान की चकाचोंध दिखाकर नई पीढ़ी को भ्रष्ट करने की कोशिश जारी है, उन्हें पुराणों के गपोडे सुनाकर कहा जा रहा है तुम्हारा धर्म तो झूठ और अवैज्ञानिक है। उन्हें बताया जा रहा है मांस का भक्षण करो, ये तो तुम्हारें वेदों में भी लिखा हैं। अब घर में न वेद हैं न सत्यार्थ प्रकाश, वह युवा विश्वास कर लेता है और कुमार्ग पर निकल पड़ता हैं। क्योंकि आधुनिक दिखने की होड़ में हम अपने बेटी-बेटे उनके कोमल मन पर वैदिक सभ्यता की छाप छोड़ने में पीछे रह गये और विधर्मी अपना जाल लगातार फैला रहे हैं।

आखिर कितने घरों में सत्य का आइना दिखाने वाली तर्कों की कसोटी पर खरी उतरने वाली विश्व की एक मात्र पुस्तक सत्यार्थ प्रकाश है? आखिर हम इन छोटी-छोटी अल्प मूल्य की पुस्तकें भी अपने घर क्यों नहीं रख पाए? क्या अगली पीढ़ी को संस्कारवान बनाने का कार्य हमारा नहीं है? मैं उन्हें साधु संत बनाने की नहीं कह रहा, बस इतना कि राष्ट्र, धर्म, समाज और परिवार के प्रति जागरूक होकर एक बेहतर समाज का निर्माण करे।

हालाँकि ऐसा नहीं है सब लोग धर्म से विमुख हैं बस यह सोचते है क्या होगा वेद पढने से, क्या हासिल होगा सत्यार्थ प्रकाश पढने से? ये सब पुरानी बातें हैं, आज आधुनिक जमाना है ये सब चीजें कोई मायने नहीं रखती आदि-आदि सवालों से अपने मन को बहला लेते हैं। आखिर यह बात अगली पीढ़ी को कौन बतायेगा कि हमारा जन्म क्यों हुआ? दो जून का भोजन सैर-सपाटा तो जानवर भी कर लेते हैं। या फिर सिर्फ इसलिए कि हम बस मोबाईल पर गेम खेले, अपने परिवार तक सिमित रहें? जिस महान सभ्यता में वेदों की भूमि में हमारा जन्म हुआ क्या हम पर उसका उत्तरदायित्व नहीं है कि इसका स्वरूप बिना बिगाड़े हम अगली पीढ़ी के हाथ में सौपने का कार्य करें?

सभी जानते हैं हर वर्ष दिल्ली पुस्तक मेले में देश-विदेश से हजारों की संख्या में प्रकाशन, धार्मिक संस्थाएं, पुस्तकों के माध्यम से अपनी संस्कृति का प्रचार करने यहाँ आते हैं, नि:शुल्क कुरान और बाइबिल यह बांटी जाती हैं। चुपचाप धर्मांतरण के जाल यहाँ बिछाये जाते हैं। अब तो सब समझ गये होंगे कि आर्य समाज का पुस्तक मेले में जाना कोई व्यापारिक प्रयोजन नहीं है और आपका संकल्प लेना निरर्थक नहीं। बल्कि आर्य समाज अपनी महान वैदिक सभ्यता का पहरेदार बनकर जाता है 50 रूपये की कीमत का सत्यार्थ प्रकाश दानी महानुभाओं के सहयोग से 10 रूपये में उपलब्ध कराया जाता है। क्योंकि स्वामी जी ने कहा था एक धर्म, एक भाव और एक लक्ष्य बनाए बिना भारत का पूर्ण हित और उन्नति असंभव है। ठीक यही बात आज हमारे बच्चों पर भी लागू होती है कि उन्हें अपने धर्म, अपने राष्ट्र अपने परिवार का ज्ञान हुए बिना उनकी भी उन्नति संभव नहीं है। याद रखिये, अपने धर्म, अपनी संस्कृति अपनी भूमि की रक्षा हमें खुद करनी होती है, चाहे हमला हथियारों से हो या विचारों से। यदि हमला हथियारों से है तो हमारी सेना सक्षम हैं उन्हें जवाब देने के लिए किन्तु जब हमला विचारों से होगा तब आप सक्षम हैं शायद नहीं इसलिए आइयें पुस्तक मेले में कम से कम इस बार एक संकल्प लीजिये कि ज्यादा नहीं तो घर में एक सत्यार्थ प्रकाश तो जरुर रखेंगे…लेख-राजीव चौधरी

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