टोपी सिलकर गुजारा करता था औरंगजेब. अकबर एक महान उदार राजा था. शेरशाह सूरी ने रोड बनवाई थी, किसी मुग़ल ने ताजमहल तो किसी ने लालकिला बनवाया. कुछ ऐसी ही कहानियाँ हम बचपन से पढतें आ रहे है. यदि यह सब सच है तो फिर लाखों हिन्दुओं और अपने सगे भाई दाराशिकोह की गर्दन धड से अलग करने वाला मुगल बादशाह कौन था? आजकल इसी इतिहास को लेकर राजनैतिक हलको में जो शोर है और ये शोर इतिहास की उन लाखों निर्दोषों की चीख पुकार पर हावी है जिसे जबरन धर्म परिवर्तन कराने वाले मुगल शासक औरंगजेब ने इतिहास की उदार टोपी पहनाकर दबा दिया था.
अगस्त 1947 जब अंग्रेजों की दासता से जकड़े भारत ने आजादी की पहली खुली साँस ली तो हमें मुगलों की धर्मनिरपेक्षता और उदारता के पाठ पढनें को मिले. किन्तु अब महाराष्ट्र राज्य शिक्षा बोर्ड ने इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में से मुगलों को गायब करना शुरू कर दिया है. इस शिक्षण वर्ष में बोर्ड ने सातवीं और नौवीं क्लास के लिए इतिहास की संशोधित टेक्स्टबुक्स प्रकाशित किया है, जिसमें शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य पर मुख्य रूप से जोर दिया गया है. सातवीं क्लास की पुस्तकों में से उन चैप्टर्स को हटा दिया गया है जिसमें मुगलों और मुगल शासन से पहले भारत के मुस्लिम शासकों जैसे रजिया सुल्ताना और मुहम्मद बिन तुगलक के बारे में उल्लेख था.
अच्छा जो लोग आज भी औरंगजेब के नाम का गुणगान करते हैं उनसे पूछिए कि दाराशिकोह ने ऐसा कौन सा गुनाह किया कि उसके नाम को आप भुलाना चाहते है और औरंगजेब ने क्या ऐसा काम किया कि उसके नाम का गुणगान करना चाहते हैं?
आखिर जिन पुस्तकों में वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप, चांद बीबी और रानी दुर्गावती ने देश की अस्मिता और संस्कृति बचाने के लिए इन लुटेरों के खिलाफ संघर्ष किया. जहाँ उनका संघर्ष उल्लेखनीय होना चाहिए था वहां अकबर को उदार और सहिष्णु शासक के तौर पर दिखाया गया था जो शिक्षा एवं कला का संरक्षक था. अकबर का उल्लेख एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर किया गया उनको दीन-ए-इलाही जैसे धर्म का संस्थापक भी बताया गया गया. फिर जोधाबाई से जबरन शादी करने वाला कौन था?
दूसरा सवाल आतंकी संगठन आईएसआईएसआई के बारे में जब हम पढ़ते हैं कि वह अल्पनसंख्यतक यजीदी महिलाओं को यौन गुलाम बना रहा है तो हमें आश्चेर्य होता है. लेकिन आपको जानकर आश्चार्य होगा कि दिल्ली सल्तनत के सुल्तानों व मुगल बादशाहों ने भी बहुसंख्यजक हिंदू महिलाओं को बड़े पैमाने पर यौन दास यानी सेक्स सेलेव बनाया था. इसमें मुगल बादशाह शाहजहां का हरम सबसे अधिक बदनाम रहा, जिसके कारण दिल्ली का रेड लाइट एरिया जी.बी.रोड बसा इतिहासकार वी.स्मिथ ने लिखा है, शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके पिता जहाँगीर से विरासत में मिली थी. उसने बाप की सम्पत्ति को और बढ़ाया. उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छाँट की तथा बुढ़ियाओं को भगा कर और अन्य हिन्दू परिवारों से बलात लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा.
हम भी कहते है इतिहास से मुग़ल नहीं मिटने चाहिए बल्कि इस झूठी उदारता की जगह वो सच लिखा जाना चाहिए जिसके छल-बल से इन्होने यहाँ राज किया. ताकि आने वाली नस्लों को पता चले कि इनकी मजहबी सनक के कारण भारतीय समुदाय हमारे पूर्वजो का कितना मान मर्दन हुआ. हत्याएं बलात धर्मपरिवर्तन का सभी सच लिखा जाना चाहिए ताकि आने वाली नस्लें यदि इतिहास का कोई पन्ना निचोड़े तो उसमें से दर्द, आंसू और खून निकल आये.
आर.सी. मजूमदार, अपनी पुस्तक हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल में लिखते है कि कश्मीर से लौटते समय 1632 में शाहजहाँ को बताया गया कि अनेकों मुस्लिम बनायी गयी महिलायें फिर से हिन्दू हो गईं हैं और उन्होंने हिन्दू परिवारों में शादी कर ली है. शहंशाह के आदेश पर इन सभी हिन्दुओं को बन्दी बना लिया गया. उन सभी पर इतना आर्थिक दण्ड थोपा गया कि उनमें से कोई भुगतान नहीं कर सका. तब इस्लाम स्वीकार कर लेने और मृत्यु में से एक को चुन लेने का विकल्प दिया गया. जिन्होनें धर्मान्तरण स्वीकार नहीं किया, उन सभी पुरूषों का सर काट दिया गया. लगभग चार हजार पाँच सौं महिलाओं को बलात मुसलमान बना लिया गया और उन्हें सिपहसालारों, अफसरों और शहंशाह के नजदीकी लोगों और रिश्तेदारों के हरम में भेज दिया गया.
साल 1526 से लेकर 1857 तक हिन्दुस्तान की सरजमीन पर मुगलों की हुकूमत रही है. शाहजहाँ को प्रेम की मिसाल के रूप पेश किया जाता रहा है और किया भी क्यों न जाए , आठ हजार औरतों को अपने हरम में रखने वाला अगर किसी एक में ज्यादा रुचि दिखाए तो वो उसका प्यार ही कहा जाएगा. आप यह जानकर हैरान हो जायेंगे कि मुमताज का नाम मुमताज महल था ही नहीं बल्कि उसका असली नाम “अर्जुमंद-बानो-बेगम” था. और तो और जिस शाहजहाँ और मुमताज के प्यार की इतनी डींगे हांकी जाती है वो शाहजहाँ की ना तो पहली पत्नी थी ना ही आखिरी शाहजहाँ से शादी करते समय मुमताज कोई कुंवारी लड़की नहीं थी बल्कि वो भी शादीशुदा थी और उसका पति शाहजहाँ की सेना में सूबेदार था जिसका नाम “शेर अफगान खान” था. शाहजहाँ ने शेर अफगान खान की हत्या कर मुमताज से शादी की थी.
दरअसल इरफान हबीब जैसे इतिहासकारों का मुगल उदारता का इतिहास लेखन इस भारतीय चेतना में एक रत्ती भर परिवर्तन इसलिए नहीं कर पायी है कि पीढ़ी दर पीढ़ी उसके अत्याचारों को हिन्दुस्तान की जनता न भुला पायी है और ना भुला पायेगी. मुगल मौखिख इतिहास में रहेंगे, मुगलों को इतिहास में रहना भी चाहिए ताकि हमें पता रहे कि महाराणा प्रताप से लेकर वीर शिवाजी तक कैसे इन धोखेबाज लोगों से लड़े! लेकिन इस तरह नहीं जिस तरह उसे परोसा जा रहा है बल्कि उस सच के साथ जो कुकृत्य उन्होंने भारतीय जनमानस के साथ किये ताकि आने वाली पीढ़ियों को पता चले कि क्रूरता की क्या सीमा होती है, क्रूरता का क्या रूप होता है, क्रूरता का क्या रंग होता है?
इन धर्माध लोगों ने किस तरह हिन्दू समाज का पतन किया, औरंगजेब ने अपने शासनकाल में बहुत लोगों की हत्याऐं की, बहुत लोगों को निर्ममता से प्रताड़ित किया, बहुत सारे मंदिरों को तोड़ा. इतिहास गवाह है कि मुगल किस तरह के शासक थे, किस तरह यहाँ खून की होली खेलकर अपना राज्य स्थापित किया. एक कम्युनल शासक थे, मजहबी शासक थे, और आज के समय में जो आइएसआइएस या तालिबान जो कर रही है, वो उस समय में करते थे सत्रहवीं शताब्दी में, तो इसीलिए वो विलेन थे. ना कि भारतीय जन समुदाय के हीरो…राजीव चौधरी