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दिन पर दिन क्यों कम होता जा रहा हैं विवाह का महत्व

विवाह भारतीय समाज में परम्परा के रूप एक महत्वपूर्ण और पवित्र हिस्सा रहा है। बल्कि ये कहिये कि विवाह एक जन्म का नहीं बल्कि सात जन्मों का पवित्र बंधन भी माना जाता रहा है। विवाह एक नवयुवक एवं एक नवयुवती के साथ रहने जीने आगे बढ़ने का रिश्ता नहीं बल्कि यह दो परिवारों के बीच बहुमूल्य सम्बन्ध भी स्थापित करता चला आ रहा हैं। किन्तु आज की भागती दौडती जिन्दगी की तेज रफ्तार में यह रिश्ता बेहद कमजोर होता जा रहा है। यदि आंकड़ों पर नजर डाले तो इसके टूटने की संख्या पश्चिम के देशों मुकाबले कुछ कम रह गयी हैं। ये भी कह सकते है कि आज के आधुनिक समय में विवाह का महत्व दिन पर दिन कम होता जा रहा हैं।

यदि गंभीरता से इस विषय पर चर्चा की जाये तो यह एक ऐसी समस्या का बनती जा रही है जो आने वाले समय में समाज और परिवारों की तबाही का बड़ा कारण बनेगी। आज हो ये रहा है कि इस आधुनिक सदी में एक तो नौजवान युवक-युवती विवाह के लिए आसानी से तैयार नहीं हो रहे और जो हो रहे है उनमें से अधिकांश के जल्द ही तलाक के मामले कोर्ट में खड़े मिल रहे हैं। जहाँ तेजी से बदलते समय में आज कई चीजें बदली वहां कुछ सामाजिक प्रतिष्ठा के रूप भी बदल गये हैं। मसलन कुछ समय पहले तक लडकें-लड़कियां मां-बाप की इच्छा के अनुसार विवाह करके घर गृहस्थी बसाकर संतुष्ट हो जाया करते थे लेकिन आज ऐसा बहुत कम देखनें को मिल रहा हैं। बदलते इस दौर की बात करें तो स्वतंत्रता के साथ लड़कियों को अपने न सिर्फ पंख मिले, बल्कि उन पंखों को फैलाने के लिए आसमान भी मिला। ऐसे में शादी करके घर बसाने के कथन में बदलाव आ गया। अब सामाजिक रूप से स्थापित होने का मतलब शादी करके बच्चे पैदा करना नहीं रह गया, बल्कि एक अच्छी नौकरी,व्यवसाय या आर्थिक संपन्नता से हो गया हैं।

इसी विषय को यदि पलटकर लड़कों के मामले में देखें तो अधिकांश लड़के भी इससे बचने की कोशिश करते हुए लिव इन रिलेशनशिप जैसे रिश्तों को प्राथमिकता दे रहे है। दिन पर दिन दहेज के बढ़ते झूठे सच्चें मुकदमों ने कानून का किसी एक पक्ष में ज्यादा झुकना और दूसरे पक्ष को इसके खतरनाक नुकसान झेलने देना भी शादी का चलन घटने का बड़ा कारण है। ऐसा कतई नहीं है कि विवाह की संस्था खोखली हो गयी है और समाज को इससे किनारा करने की जरूरत है। नहीं बल्कि यह जो कमी हो रही है आज इसमें सुधार करने की जरूरत हैं। आज जब किसी युवा से शादी के बारे में चर्चा की जाती है तो वह नकारत्मक भाव प्रकट करते हैं यानि वह इस पवित्र संस्था को एक गुलामी जिन्दगी बताकर इससे बचने का प्रयास करेंगे।

आज से 10 वर्ष पहले हुई शादी और पिछले दो से तीन वर्षों में हुई शादियों में काफी अंतर देखने को मिलता है मसलन दस वर्ष माता-पिता और परिवारों की सहमति से हुई शादियाँ जिनमें लड़का-लड़की, दो परिवार, रिश्तेदारों के साथ जितने सैकड़ों-हजार परिवार शामिल होते थे सभी एक तरह से इसके साक्षी बन जाते थे। ऐसे में जब कभी इस रिश्ते में कुछ समस्या उत्पन्न होती थी तो पूरा परिवार और समाज इसे बचाने की कोशिश में जुट जाता था। किन्तु प्रेम विवाह या कुछ समय में एक दूसरे से आकर्षित होकर की गयी शादियाँ जल्द टूट रही हैं।

सामाजिक प्रतिष्ठा का भय जो हमेशा रिश्ता बचाने में मदद करता था आज वह पूरी तरह से गायब होता जा रहा हैं। अगर अभी वर्तमान समय की बात किया जाए, तो अगर सामने वाला लड़का हो या लड़की अगर किसी से प्रेम कर लेता है, फिर वह विवाह के बंधन मे बंधने के बाद जरा सी बात पर रिश्ता तोड़ देते हैं। पिछले दिनों में ऐसे कई रिश्ते देखें एक लड़की के तलाक का कारण सिर्फ इतना था कि शादी के बाद लड़के ने उसके मुंह पर थप्पड़ मार दिया था। लड़की ने यह बात बर्दास्त नहीं की और तलाक की अर्जी डाल दी।

एक दूसरे लड़के ने अपनी पत्नी से सिर्फ इस बात से तलाक लिया कि वह देर रात तक सोशल मीडिया फेसबुक आदि पर अपने मित्रों से चेट किया करती थी। यानि आजकल के लोगों की धारणा संकीर्ण विचारधारा जैसी हो गई है, क्योंकि उन्हें प्यार क्या होता है? विवाह क्या होता है? और इसकी पवित्रता क्या होती है? उनके बारे में यह अभी तक अनभिज्ञ है। पहले के समय और आज के समय में यही अंतर है कि पहले के लोग विवाह को एक पवित्र रिश्ता मानकर हर सुख- दुख,उतार- चढ़ाव मैं साथ चल कर अपने रिश्ते को एक मंजिल तक पहुंचाते थे। परंतु आजकल के विवाह में अगर थोड़ा भी एक दूसरे को रोक- टोक किया या एक दूसरे की आवश्यकताओं की पूर्ति ना कर पाए तो फिर यह रिश्ता ज्यादा दिनों तक नहीं चल पाता, और तलाक की नौबत आ जाती है। इसीलिए  आजकल की युवा पीढ़ी द्वारा विवाह को मजाक बनाया गया है, एहसास और रिश्ता अब पूर्ण रूप से खतम हो गया है।

 विनय आर्य

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