ऋषिवर के पीछे हुए, श्रद्धानन्द महान।
युगों-युगों तक कर रहा, जग उनका गुणगान।।1।।
जीवन में जो कुछ किया,श्रद्धा उसका मूल।
उत्तरार्द्ध उत्कर्ष कर, की न पुनः भूल।।2।।
सेवा-व्रत जो है कठिन, ले उसका संकल्प।
जीवन-भर उस पर चले, सोचा नहीं विकल्प।।3।।
दलितों का उद्धार कर, दिया उन्हें नव प्राण।
भटके जन को शुह् कर, विधवाओं का त्राण।।4।।
धर्मान्तर जो कर गये, उन्हें बनाया आर्य।
जीवन का यह था मिशन, सारा जग हो आर्य।।5।।
गुरुकुल शिक्षा के लिए, किया सभी कुछ दान।
निर्भय वेद-प्रचार कर, किया आत्म बलिदान।।6।।
पद छोड़े क्षण नहीं लगा, मारी उनको लात।
हिन्दी हिन्दू के लिए, किया समर्पित गात।।7।।
नारी शिक्षा के लिए, किये प्रयत्न हजार।
मात सुमाता बन सके, वेद पढ़े सुविचार।।8।।
जामा मस्जिद से किया, मंत्रों का उच्चार।
वेद-ज्ञान सब के लिए, भेद-भाव बेकार।।9।।
दान-वृत्ति भी थी प्रबल, लोभ न मन अभिमान।
वेद विहित जीवन जिया,श्रद्धानन्द महान्।।10।।
जीवन का उद्धार कर, श्रद्धानन्द समान।
सत्संगति पारस मिले, जीवन बने महान्।।11।।