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समझिये ये भी तो धर्म पर ही हमला है

क्या ऋषि मुनियों की पावन भारत भूमि अब तथाकथित बाबाओं के अय्याशी के अड्डे बनकर रह जाएगी?  सवाल सिर्फ मेरा नहीं बल्कि करोड़ों लोगों का है, कि आखिर क्यों ऋषि-मुनियों की भूमि पर संत के वेश में अय्याश घूम रहे है? ऋषि कणाद से लेकर स्वामी दयानन्द तक जब जमीन पर चले तो धर्म चला पर आज जब बाबाओं के टोले चलते हैं तो धर्म नहीं चलता, कुछ और चलता है। मसलन जब-जब ऋषि मुनि चले तो धर्म चला, अब बाबा चलते हैं तो धर्म नहीं अधर्म चलता है, यकीन न हो तो पिछले कुछ सालों से हर महीने हर वर्ष अखबारों से लेकर मीडिया की सुर्खियाँ में किसी न किसी विवादित बाबा की खबर उठाकर देख लें। इस बार राम-रहीम के बाद लोगों को विश्वास हो रहा था कि शायद अब कोई कथित बाबा ऐसा न करें लेकिन गुजरता दिसम्बर का अंत एक और ढोंगी बाबा की पोल खोल गया। खबर हैं देश की राजधानी स्थित रोहिणी के विजय विहार इलाके में आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पर पुलिस और महिला आयोग की टीम द्वारा छापा मार कर करीब 40 लड़कियों को मुक्त कराया गया है। जिनमें नाबालिग लड़कियां भी शामिल हैं। आश्रम की आड़ में अय्याशी का अड्डा चलाने वाला बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित अभी भी पुलिस की पहुंच से बाहर है।

बेशक तमाशबीन लोगों के लिए भले ही यह कोई चटपटी खबर रही हो लेकिन धर्म के नाम चलने वाला यह अय्याशी का धंधा हमें धर्म की हानि के रूप में दिखाई दे रहा है क्योंकि यह सब हो तो धर्म के नाम पर ही रहा था? कहा जा रहा है कि आध्यात्मिक विश्वविद्यालय के नाम से आश्रम चलाने वाला बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित खुद को कृष्ण बताता था। हद तो यह है कि वह हमेशा महिला शिष्यों के बीच ही रहा करता था। इसका कारण यह है कि उसने 16000 महिलाओं के साथ सम्बंध बनाने का लक्ष्य रखा था। वह लड़कियों को गोपियां बनाकर उन्हें सम्बंध बनाने के लिए आकर्षित करता था। शर्म और ग्लानी का विषय यह भी है कि आखिर किस तरह योगिराज श्रीकृष्ण जी महाराज के नाम पर अपनी दैहिक लालसा पूरी कर रहा था।

सवाल यह भी है कृष्ण का चरित्र उन लोगों को कैसे समझाए जिन्होंने झूठ के पुलिन्दे पुराणों के अश्लील वर्णन, मीरा की दुःखद गाथा और सूरदास की चौपाई से कृष्ण को जाना है? क्योंकि सूरदास का कृष्ण मक्खन चोर है और पुराणों का कृष्ण गोपियाँ रखता था, कपड़े चुराता था, बस यही झूठ सुनकर लोग बड़े होते हैं और इसे ही सत्य समझ लेते हैं जबकि महाभारत के असली कृष्ण युद्ध कला, नीति, दर्शन, योग और धर्म के ज्ञाता थे।

आसाराम और रामपाल के बाद इसी वर्ष अगस्त माह में खुद को इच्छाधारी बाबा बताने वाले स्वामी भीमानंद को प्रवचन की आड़ में सैक्स रैकेट चलाने और 30 लाख की एक ठगी के मामले में गिरफ्तार किया था तो लोगों की यही प्रतिक्रिया सामने आयी थी कि बाबाओं का क्या यही रूप होता है? इसके बाद स्वामी ओम को भी अगस्त में ही पुलिस ने गिरफ्तार किया तो राधे मां भी इसी वर्ष काफी विवादो में रहीं। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख गुरमीत राम रहीम से विवादित तो शायद ही कोई और बाबा रहा हो, जिसके कारण कई लोगों को जान गवानी पड़ी और सरकारी सम्पत्ति समेत सार्वजनिक जन-धन हानि भी हुई लेकिन इसके बाद भी तब से अब तक न बाबाओं की संख्या कम हुई न भक्तों की?

भक्तों की संख्या क्यों कम होगी आम हो खास मनुष्य को तो चमत्कार चाहिए। नौकरी चाहिए, व्यापार चाहिए, किसी को संतान चाहिए तो किसी को बीमारी से छुटकारा, जो हाथ से गया उसके लिए बाबा और जो पास में हैं वह बचा रहे उसके लिए भी बाबाओं से मन्त्र चाहिए, इस कारण सुलफे की चिलम फूंकने वाले बाबाओं से लेकर ए.सी. रूम में बड़ी-बड़ी गद्दियों पर बैठने वाले बाबाओं की चांदी कट रही है। बस बाबाओं की शरण में जाओं फिर कोई दिक्कत नहीं आएगी। इस दुनिया का निर्माण करने वाले पूरे ब्रह्माण्ड को रचने वाला ईश्वर तो इनके आगे कुछ भी नहीं शायद यही सोच बना दी गयी है? अंधश्रद्धा की पराकाष्ठा देखिये! अपनी नौजवान बेटियों को इनके हवाले करने तक में लोग नहीं हिचकते, दस रुपये के स्टाम्प पेपर पर लिखकर मासूम बच्चियों को आश्रमों को दान कर रहे है। इसके बाद वे जो जी चाहे वह करें। दरअसल ये कथित बाबा जो भी कर रहे लोग होने दे रहे हैं धर्म के नाम पर अंधश्रद्धा की जो ड्रग्स ये लोगों को दे रहे, वे बेहिचक ले रहे है। बदनाम धर्म और संस्कृति होती है पर होने दे इसकी चिंता न बाबाओं को हैं न भक्तों को!

कहते हैं रक्षा किया हुआ धर्म ही धर्म की रक्षा करता है जो धर्म की रक्षा करता है निःसंदेह धर्म उसकी रक्षा करता है। पर आज लोग धर्म छोड़कर बाबाओं की रक्षा कर रहे हैं। बाबा भक्तों की फौज खड़ी कर रहें हैं राजनितिक लोगों से भक्तों का सौदा वोटों में कर रहे हैं बस इन बाबाओं को हमेशा एक बेचैनी रहती है कहीं फिर कोई आदि गुरु शंकराचार्य न पैदा हो जाये! कोई स्वामी दयानन्द फिर खड़ा न हो जाये नहीं, तो इनका जमाया हुआ अखाड़ा फिर उखड़ जायेगा इसलिए ये तथाकथित बाबा स्वयं भगवान बन रहे हैं। आस्था को मोहरा बनाकर अपनी तस्वीर की पूजा करा रहे हैं। आश्चर्य इस बात का भी है कि सिर्फ अनपढ़ ही नहीं बल्कि पढ़ें लिखे लोग भी आसानी से इनके इस टॉप ब्रांडेड अन्धविश्वास को स्वीकार कर रहे हैं। कोई बुरे समय में किसी पड़ोसी का भला करे या न करे, पर इन मुफ्त खोरों तथाकथित संतों, बाबाओं, साधुओं, ज्योतिषियों की जीविका का साधन अवश्य बन जाते हैं। जब तक लोग अपनी बुद्धि से तर्क से सत्य स्वीकार नहीं करेंगे तब तक धर्म की आड़ में तांत्रिकों, पाखंडी बाबाओं का पनपना जारी रहेगा। आज बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित पकडे़ गये ये अंतिम नहीं हैं क्योंकि अन्धविश्वास अभी भी जिन्दा है शायद कल तक किसी की इज्जत और किसी का धन चूसने वाला या फिर संस्कृति को दागदार करने के लिए कोई दूसरा बाबा खड़ा कर दे? सोचना सभी को कि धर्म को इन हमलावरों से से भी बचाना होगा.

-राजीव चौधरी

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