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आजादी के नाम पर आतंक

2010 के बाद एक बार फिर घाटी में हालात खराब है| कश्मीरी युवा भले ही इसके लिए प्रशासन को दोषी मानकर पुलिस व् सेना के जवानों पर हमला कर रहे हो| किन्तु अपने अंतर्मन में झांक कर देखे तो इसके लिए खुद कश्मीरी ही जिम्मेदार है| जब हर एक मुद्दे पर कश्मीर के लोगों द्वारा थानों, चोकियों समेत सेना के जवानों को निशाना बनाया जा रहा हो तो कश्मीरी किस आधार पर यह अपेक्षा कर रहे है कि प्रशासन बुत बनकर संयम का परिचय दे? पिछले कुछ अरसे से सोशल मीडिया पर छाए हुए हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी के मुठभेड़ में मारे जाने के खिलाफ आयोजित विरोध प्रदर्शन के हिंसक मोड़ लेने की वजह से अभी तक पुलिसकर्मियों समेत 20 से ज्यादा लोग मर चुके है अब हो सकता है इस हिंसक स्थिति से निकलने के लिए खुद आम कश्मीरी सोच रहा हो कि या तो बारिश आ जाये या किसी तरह अल्लाह ही इन लोगों के दिमाग से यह मजहबी जूनून निकाल दे| परन्तु इतना सब कुछ होने के बाद भी अलगाववादियों के लगातार बंद के आहवान और विपक्ष के नेता उमर अब्दुल्ला हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी की मौत पर अपनी रोटियां सेकने से बाज नहीं आ रहे है|
बुरहान वानी मारा गया लेकिन राजनीति के साथ प्रश्न जिन्दा हो गये| आखिर घाटी के लोगों को आजादी किससे चाहिए? अपने देश से या फिर घाटी को रक्त रंजित करने के लिए आजादी चाहिए ? सबने सुना किस तरह कश्मीर का कंधार कहे जाने वाले वानी के पैतृक स्थल त्राल में मस्जिदों के स्पीकर्स पर आजादी के गीत गाए जा रहे है ‘खुदा के दीन के लिए, ये सरफरोश चल पड़े, ये दुश्मनों की गर्दनें उड़ाने आज चल पड़े किसी में इतना दम कहां कि इनके आगे डट सके’ जिन्हें सुनाकर लोगों को भावनाओं में बांधकर एक दुसरे के साथ जोड़ा जा रहा था| जो लोग अभी तक यह कह रहे थे कि आतंकवादी किसी धर्म का नहीं होता सबने देखा किस तरह एक दस लाख के इनामी आतंकी के जनाजे में हजारों मुस्लिम जमा हो रहे थे| जहाँ अभी तक यही समझा जा रहा था कि कश्मीरी समुदाय कश्मीर की आजादी के लिए लड़ रहा है किन्तु जिस तरह बुरहान की माँ ने रोते हुए कहा कि ‘मेरा दूसरा बेटा भी इस्लाम की राह पर शहीद हुआ है, मुझसे ज्यादा खुशनसीब कौन सी मां होगी.’‘वो कश्मीर में इस्लामी निजाम कायम करने के लिए लड़ रहा था, और वो काफिरों से लड़ते हुए मारा गया| इससे स्पष्ट होता है कि कश्मीरी समुदाय को ना अपने लिए शिक्षा की जरूरत ना विकास और मौलिक सुख सुविधाओं की उसे तो बस जरूरत है तो सिर्फ कश्मीर को इस्लामिक गणराज्य बनाने की| पर क्या कभी इन युवाओं ने शांति के साथ सोचा है कि मजहब के नाम पर अलग होने वाला देश पाकिस्तान आज कितना खुशहाल है? एक बार जाकर खुद देख ले हद से अधिक दीन की राह पर चलकर आज पाकिस्तान समेत सीरिया, अफगानिस्तान, ट्युनिसिया, सोमालिया आदि देश तबाही के खंडहरों में बैठे है| इस प्रश्न के प्रकाश में आज कश्मीरी अपनी समस्या देख ले और सोचे यदि कश्मीर में बड़ी संख्या में धर्मपरिवर्तन ना हुआ होता और आज वहां बड़ी संख्या में बोद्ध, सिख और हिन्दू हुए होते तो क्या यह हाल हुआ होता? हाँ ऐसा तो हो सकता था कि देश के अन्य राज्यों की तरह कुछ जगह गरीबी, बेरोजगारी तो हुई होती किन्तु रक्त से सना कश्मीर ना होता| देशी विदेशी पर्यटन भी खूब होता जिससे बड़ी संख्या कश्मीरी लोगों को रोजगार के अवसर मिलते|
अस्सी के दशक में चरमपन्थी मानसिकता रखने वाले लोगों ने 87 के चुनाव के बाद धांधली का आरोप लगाकर हथियार उठाकर आजादी की मांग कर डाली इस अभूतपूर्व गुस्से की लहर को पाकिस्तान से भरपूर मदद मिली किन्तु इस आजादी की मांग के पत्ते 1990 में उस समय खुल गये जब कश्मीरी मुस्लिम कश्मीरी पंडितों पर आजादी का नारा लेकर हमला कर बैठा था| यदि यह लड़ाई कश्मीर की आजादी के लिए होती या भारत वहां कुछ अत्याचार कर रहा होता तो इस जंग में हिन्दू, मुस्लिम, सिख बोद्ध मिलकर हिस्सा लेते जैसे भारत की स्वतन्त्रता संग्राम में सबने मिलकर लिया था| यधपि आजादी के नाम पर कश्मीर को मजहब की भट्टी में झोकने वाले इन जेहादियों के फन उसी समय की तत्कालीन सरकारों को ने कुचल दिए होते तो आज यह स्थिति जन्म ना लेती| कहते है जब राजनीति में धर्म घुस जाता है तो उसके पास किसी समस्या का समाधान नहीं रहता| असल में हमारी समस्या कश्मीर नहीं है हमारी समस्या वो लोग है जो धर्म के नाम पर इन लोगों के हाथ में बंदूके थमा रहे है| एक बार हुर्रियत के नेता बिलाल गनी लोन ने स्वीकार किया था कि यहाँ की कायर जमाते पाकिस्तान के हाथों बिक चुकी है| जब पाकिस्तान कश्मीर में पैसा फेंकना बंद कर देगा कश्मीरी पत्थर फेंकना बंद कर देगा|
कश्मीर के अलगाववादियों के आन्दोलन को भी सब जानते है किस तरह वो पाक प्रायोजित है| अब राज्य और केंद्र की सरकार को समझना होगा पाकिस्तान के कहो या इन अलगाववादियों के रहते जब तक ये लोग इनका समर्थन करेंगे वहां धार्मिक संकट बरकरार रहेगा| आखिर कब तक प्रशासन वहां के आतंक की मूल जड़ को ना पकड़कर कुछ चेहरे पकड़ते रहेंगे? सब जानते है मनोविज्ञानिक बिमारियों का इलाज शरीर की चीर फाड़ से नहीं होता| अब भारत को एक सशक्त राष्ट्र की तरह व्यवहार पेश करना होगा| हमेशा नरमी के रुख को भी सामने वाला कायरता समझता है| हर रोज कश्मीरी कट्टरपंथी कानून व्यवस्था को चुनोती देते है सेना कारवाही करती है तो मुल्ला मौलवी और मीडिया का एक बड़ा हिस्सा इस बात का रोना रोता है कि कश्मीर में हालात खराब है| आखिर किसने पैदा किये यह खराब हालात? उमर अब्दुल्ला ने जिस तरह कहा कि बुरहान वानी बन्दुक उठाने वाला ना पहला कश्मीरी है ना अंतिम| तो उसे समझना चाहिए सेना के पास भी आतंकियों से निपटने के लिए कोई पहली या अंतिम गोली नहीं है| यदि राष्ट्र रक्षा के लिए युद्ध जरूरी है तो युद्ध जरुर होगा| आज भारत को आतंक से निपटने के लिए कहीं चीन से तो कहीं इजराइल से सीखना होगा| हमेशा कमजोरी के व्यवहार से भी किसी समस्या का समाधान नहीं होता| अब सरकार को इसका हल सोचना होगा किस तरह इन्हें जबाब दिया जाये क्योकि इस समय कश्मीरी युवाओं के पास ना तर्क ना इस स्थिति के लिए उपयुक्त प्रश्न उनके पास यदि कुछ है तो अलगाववादियों का समर्थन पाकिस्तान के हथियार, हिंसा, तोड़फोड़ और दहशत|

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