किसी शहर में एक आदमी रहता था। उसके तीन मित्र थे। पहले मित्र के लिए वह अपनी जान भी देने के लिए तैयार था। दूसरे मित्र के विषय में उसका मानना था की यह कभी न कभी मौके पर काम आ ही जायेगा।तीसरे मित्र की और वह कभी कभी ही ध्यान देता था। एक बार उस पर मुसीबत आ पड़ी, उस पर गंभीर मुकदमा दायर हो गया जिससे बचने की उसकी कोई आशा न थी। वह भागा भागा अपने सबसे प्रिय मित्र के समीप गया। उसने अपने मित्र को अपनी सारी राम-कहानी कह सुनाई। सबसे प्रिय मित्र ने कहा- मित्र, आपकी मेरी अटूट मित्रता तो है। परन्तु यह मामला आपके घर का निजी मामला है। इसलिए मैं इसमें आपका कोई साथ नहीं दे सकता। निराश होकर वह आदमी दूसरे मित्र के समीप गया और उसे भी अपनी व्यथा कह सुनाई। दूसरा मित्र बोला। मैं आपका साथ तो दूंगा मगर अदालत के बाहर तक। भीतर जाने के पश्चात तो मुकदमा आपको अकेले ही लड़ना पड़ेगा। दोनों की बात से निराश होकर वह आदमी अपने तीसरे मित्र के समीप गया.जिस पर वह कभी कभी ही ध्यान देता था। उसे भी अपनी व्यथा कह सुनाई। तीसरे मित्र तत्काल उसके साथ हो गया। वह अदालत भी गया और उसका मुकदमा भी लड़ा।
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