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ईश्वर कहाँ रहता हैं..?

आमतौर पर एक ऐसी धारणा बना ली गयी है कि ईश्वर कहीं आकाश में रहता होगा और वही से बैठकर संचालन करता रहा होगा. वो कोई सफेद सी दाढ़ी वाला बुजुर्ग सा दिखने वाला होगा. एक आम हिन्दू सोचता है वह स्वर्ग में रहता होगा, उसका महल दिव्य रौशनी से नहाया हुआ होता होगा. एक मुस्लिम सोचता है नहीं खुदा का घर तो जन्नत में है वह वहीं बैठकर उनकी नमाज अजान का शबाब लिख रहा होगा.

इन्ही कल्पनाओं के जंजाल में वर्षो से इन्सान भ्रमित है, उसे धर्म के नाम पर सिर्फ भ्रम बेचा जा रहा है उसे स्वर्ग-नरक की कल्पना बेचीं जा रही है, उसे ईश्वर के ठिकानों के चित्र बेचें जा रहे है उन चित्रों से लगता है जैसे बादलों के बीच उसका घर होगा. हालाँकि यह एक अनसुलझा रहस्य है जिसे लोग अपनी कल्पना अनुसार सुलझा लेते है. पर ये रहस्य इतना अनसुलझा क्यों है क्या वास्तव में ईश्वर का घर इन्हीं इंसानी कल्पनाओं के आस-पास होगा? मसलन जैसी इन्सान की कल्पना वैसा ईश्वर का घर.?

क्या ऐसा नहीं लगता संसार की करीब-करीब समस्त जातियों ने ईश्वर के रहने के ठिकाने अपनी-अपनी कल्पना से पैदा किये.? असल में यह सब ढंग पिछले 3 हजार सालों के दौरान पैदा हुए इससे पहले ईश्वर था पर चित्र नहीं थे. मस्जिद नहीं थी, मूर्तियाँ नहीं थी. ईश्वर की स्तुति थी लेकिन घंटे घडियाल न थे. अजान न थी. अराधानाओं का शोर नहीं था तब इन्सान मौन अवस्था में ध्यान में जाकर अन्तस् में गहरे उतरता, ध्यान में जाकर उससे मिलन के आनंद का अनुभव करता…

इस रहस्य को सुलझाने के लिए हमें सबसे पहले ईश्वर को समझना होगा कि कैसे यह विशाल ब्रह्मांड अपने आप, चल रहा है-बिना किसी एक्सीडेंट के, कोई पुलिस वाला तक नहीं है, अरबों-खरबों चमकते तारे हैं सब चलायमान है. पृथ्वी अपनी धुरी पर करोड़ों वर्ष से एक ही चाल पर घूम रही हैं. मौसम अपने समय पर बदल रहे है. विशाल सागर अपनी लहरों से लगातार किनारें छुं रहे है. क्या आपको लगता है इतना बड़ा ब्रह्मांड कैसे बिना किसी नियंता के चल रहा है?

सभी चीजें अच्छे ढंग से चल रही हैं.. यह सब अनादि काल से चला आ रहा है. न कोई हिसाब-किताब रखता है, न कोई सूरज से कहता है कि समय हो गया. कोई अलार्म घड़ी नहीं है, जो सूर्य से कहे कि चलो बाहर निकलो अब उदय हो जाओ. किन्तु सब बिलकुल ठीक-ठाक चल रहा है. करोड़ों आकाशगंगाएं और ग्रह-नक्षत्र घूम रहे हैं, कौन जाने अँधेरे उजाले में कहां वे आपस में टकरा जाएं! कोई उनकी देखभाल नहीं कर रहा, न लाल-हरी बत्ती, न ट्रेफिक सिग्नल है, न कोई अदालत है और न कानून की धारा न कोई पचड़ा लेकिन सब कुछ व्यवस्थित रूप से चल रहा है.

इसलिए जब तक कोई एक जीवंत देह की तरह स्वसंचालित न हो. तो कैसे कोई बाहरी नियंता अनादि काल से अनंतकाल तक इसकी व्यवस्था आसमान में बैठकर सम्भाल सकता हैं? वह बोर हो जाएगा, आखिर इस सारे झमेले का मतलब क्या है? कोई उसे सेलरी तो देता नहीं है. सोचता होगा मुझे क्या मिलता है?

इसमें वास्तविकता क्या है कि कोई ब्रह्माण्ड से बाहर कोई दूसरी शक्ति इसे चला रही है. जरा सोचिये क्या इंजन गाड़ी से अलग हो सकता है? कि इंजन कहीं ओर रखा है और गाड़ी चल रही है.? शायद नहीं गाड़ी तभी चलेगी जब इंजन उसके अन्दर हो. तो क्या इतने बड़े ब्रह्माण्ड की रचना कही बाहर बैठकर हो सकती है.या इसको चलाने के लिए बाहर से इसकी व्यवस्था हो सकती हैं.? जैसे देह के अन्दर रहकर आत्मा शरीर को संचालित करती है तो जरुर वो नीति नियंता इसी ब्रह्माण्ड के अन्दर ही होगा इसलिए यजुर्वेद में कहा गया है कि जो कण-कण में विद्यमान है, जो निराकार है, जो सर्वव्यापक है, जो अनादि है, जो अनंत, अजन्मा है वही परमात्मा है. यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय के अन्त में मंत्र का सार है कि हे मनुष्यों! जो में यहां हूँ, वहीं सूर्य आदि लोकों में हूँ, सर्वत्र परिपूर्ण आकाश के तुल्य व्यापक मुझ से भिन्न कोई बडा नहीं है’ मैं ही सबसे बडा हूँ, मैं ही सबसे सूक्षम, मैं यहाँ भी हूँ वहां भी हूँ, अत: इससे साफ समझा जा सकता है कि ईश्वर का कोई निर्धारित ठिकाना नहीं है वह आलौकिक दिव्य शक्ति सर्वत्र विधमान है….राजीव चौधरी

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