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कब तक इंतजार करे भाई मंदिर में जाने दो|

तमिलनाडु के तटवर्ती जिले नागापट्टिनम में कुछ दलितों के धर्मांतरण को लेकर ख़बरें सामने आ रही हैं| स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक इन दलितों को कथित तौर पर एक मंदिर के उत्सव में भाग नहीं लेने दिया गया, जिसके बाद 200 लोगों ने धर्मांतरण की धमकी दी है| तमिलनाडु में आख़िरी बार धर्मांतरण 1980 के दशक में हुआ था| तब थिरूनेलवली के मीनाक्षीपुरम गांव में करीब 800 दलितों ने धर्मांतरण कर इस्लाम धर्म अपना लिया था| सवाल ये नहीं है धर्मांतरण क्यों हुआ भारत में धर्मांतरण का खेल 3 हजार वर्षो से जारी है सवाल ये है इन हिन्दू धर्म के तथाकथित ठेकेदारों को मंदिरों के महंतो को शर्म कब और कितने वर्षो में आएगी? कब भगवान इन लोगों के कब्जे से मुक्त होंगे कब ये लोग मंदिरों से मेवे मिस्ठान की जगह सामजिक समरसता का प्रसाद वितरण करेंगे? अभी कुछ रोज पहले एक पुस्तक पढ़ रहा था संसार का अंतिम हिन्दू पुस्तक में एक प्रसंग है कि जब अंतिम हिन्दू ईश्वर के सामने पहुंचा तो उसने शिकायत करते हुए कहा “हे पिता! मेरी जाति ने तेरे लिए विशाल मंदिर बनाये| तेरी सोने की मूर्ति स्थापित की| करोड़ों रूपये के सोने चांदी से तुझे ढक दिया रात दिन जागरण, धर्म ग्रंथो के अखंड पाठ किये पर तूने मेरी जाति को 1200 वर्षो तक गुलाम रखा और अंत में मेरी जाति का नामो निशान ही इस धरती से मिटा दिया|
ईश्वर उस अंतिम हिन्दू का आरोप सुनकर मंद-मंद मुस्कुराते रहे| फिर बोले – पुत्र मैं अपने भक्तो की रक्षा उनके शत्रुओं से कर सकता हूँ यदि वो अपने स्वार्थ में बंटकर अपना अनहित स्वयं करने लगे तो मैं क्या करू? ‘सुनो! मैंने तुम्हे संसार का सबसे उत्तम भूभाग दिया उसकी रक्षा को उत्तर में विशाल हिमालय पर्वत और तीन दिशा में विशाल सागर दिया| ज्ञान विज्ञानं और नीति की बातें|मैंने तुम्हें वेदों के रूप में अति कल्याणकारी वाणी दी और तुम्हें सावधान किया कि हे पुत्रों मेरी ये वाणीं समस्त समाज के लिए है ना कि किसी जाति विशेष के लिए किन्तु तुमने जातियों में बंटकर उच्च और नीचा वर्ग बना डाला| मेरे दिए ज्ञान से अन्य लोगों को दूर किया नारी को अशिक्षित किया जब संतान का पहला गुरु ही अशिक्षित होगा तो संतान कहाँ से ज्ञानवान होगी? इसी मूढ़ता का परिणाम है कि तुम बारह सौ वर्षो तक गुलाम रहे क्या कोई अन्य समाज इतने सालों तक गुलाम रहा? फिर भी स्वभाववश मुझे दया आई| मैंने बाल्मीकि व्यास गौतम बुद्ध जैसे लोग भेजे किन्तु तुमने क्या दिया देवदसियों के नाम पर अबोध बालिकाये वेश्यावृति के नाम पर उतार दी तीर्थस्थान व्यभिचार और नशे के अड्डे बना डाले अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए मेरे नाम पर मंदिर बनाकर अपना पेट भरने लगे अर्थात मेरे मालिक खुद बन बैठे| तुम कहते हो तुमने मुझपर गहने चढ़ाएं ये गहने ही तुम्हारे पतन का कारण बने जिसकी लालसा में मोहम्मद बिन कासिम 13 हजार 500 मन सोना लुट ले गया गजनवी सोमनाथ को लूटकर ले गया| अलाहुदीन खिलजी दक्खिन के मंदिरों से 60 हजार टन सोना चांदी लुट ले गया| तुम मनुष्य को जाति में बांटकर उनका अपमान करने वाले मेरा सम्मान क्या जानों? मैंने तो मनुष्य बनाया था तुम जाति बनाकर गुलामी ले बैठे फिर भी मुझे दया आई मैंने महाराणा प्रताप, वीर शिवाजी गुरु गोविन्द सिंह जैसे वीर योद्धा और भगतसिंह, चंद्रशेखर, जैसे क्रन्तिकारी पाखंड के जाल से बाहर आने के लिए पुन: वेदों को समझाने के स्वामी स्वामी दयानंद सरस्वती को भेजा तुम्हें बताया वसुंधरा वीर भोग्या का सिद्धांत| पर तुमने उससे भी मुंह फेरा और अहिंसा के नाम पर कायरता का वरण किया, जातिगत भेदभाव किये| लगातार 1200 वर्ष के अनुभव से कांच के ना जुड़ने वाले स्वभाव को क्यों नहीं समझ पाए? ऐसे मुर्ख और स्वार्थी समाज को नष्ट होना ही था|
इस पुरे प्रसंग को पढने के बाद लगा लोग किस और जा रहे है! जा रहे है या धर्म के ठेकेदार और सत्ता के लालची नेता जातिओं में बांटकर लोगों की गठरी बनाकर ले जा रहे है? सवाल यह नहीं कि आज 6 दलितों ने इस्लाम स्वीकार किया क्यों किया बस दुःख इस बात का है कि इन्होने जातिवाद से त्रस्त होकर धर्मपरिवर्तन किया| अभी कई रोज पहले न्यूज़ चैनल देख रहा था उसमें एक खबर देखने को मिली उनकी हेड लाइन थी कि गुजरात में हिन्दुओं का दलितों पर हमला! पढ़कर बड़ा अजीब लगा क्या दलित हिन्दू नहीं है? क्या जातिगत बंटवारे के इस खेल में मीडिया भी शामिल हो चूका है? क्या सरकारों के पिछले 69 सालों के प्रयास बेकार गये? क्या आज मीडिया हमारी जातियां और धर्म घोषित करेगा? इसलिए आज हमारा प्रश्न जातियों-उपजातियों के ठेकेदारों भगवानों के मालिकों, जिन्होंने उसे मंदिरों में कैद कर रखा है उनसे है, हमारा प्रश्न उनसें है जो नेता जातियों के नाम पर 69 साल से सत्ता की रोटी तोड़ रहे है| जब देश समाज एकजुट नहीं रहेगा तो आप किस पर राज करेंगे? सवाल उन धर्म के ठेकेदारों से है मन्दिरों के पुजारियों से है कि यदि आज कोई गरीब दलित प्रसाद लेकर आता है आप उसे भगा देते हो! कल वो ही दलित धर्म बदलकर हथोडा लेकर मंदिर को तोड़ने आये तो तुम क्या करोंगे? हो सकता है सोमनाथ के मंदिर की तरह भाग जान बचकर भागो! यदि भागे तो तुम्हारें इस भगवान् का क्या होगा? जिसके तुम ठेकेदार बने बैठे हो! अपनी इस ऊँच नीच की मानसिकता से अभी भी आजाद हो जाओ ईश्वर समस्त मनुष्य और जीव जंतुओं का पालनहार है उसे मनुष्य समुदाय के लिए आजाद करो! हो सके तो अपनी आजीविका का कोई और साधन तलाशों| पर जातिवाद की मानसिकता से भगवान को मुक्त करो! या अब समय निर्धारित करो कब भगवान स्वतंत्र होंगे? उसके द्वार सबके लिए खुलेंगे आखिर कब तक इंतजार करे भाई अब तो इन लोगों को मंदिर में जाने दो|

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