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कोख के राक्षस

मेरे अंदर का इंसान, भयभीत है, कुछ जिंदा है और जितना जिन्दा है वो बेहद शर्मिंदा है. खबर ही ऐसी है जिसे पढ़कर हर कोई सकते में आ जाये. महाराष्ट्र के कोल्हापुर में 27 साल का एक बेटा अपनी ही मां का दिल निकालकर चटनी के साथ खा गया. आरोपी वारदात के वक्त आरोपी बेटा सुनील शराब के नशे में चूर था. शराब के नशे में घर आए सुनील का अपनी मां से झगड़ा हो गया था. जिस पर उसने अपनी माँ पर ताबड़तोड़ चाकू से वार किये, घटना स्थल पर एक प्लेट में चटनी और मिर्च लगा मां का दिल पड़ा था. हालाँकि मौके पर पहुंची पुलिस ने आरोपी को हिरासत में ले लिया. लेकिन तब तक कोख से जन्मा राक्षस, मानवीय इतिहास की सबसे क्रूर घटना को अंजाम दे गया.

सालो पहले एक गीत सुना था “माँ का दिल” जिसमें एक बेटा अपनी प्रेमिका का दिल जीतने  के लिए चाकू से अपनी माँ का दिल निकालकर ले जाता है फिर रास्ते में उसे ठोकर लगती है और वो माँ का दिल कहता है बेटा चोट तो नहीं लगी. इस माँ के दिल ने क्या कहा होगा? यह गीत ऐसा है कि कठोर से कठोर दिल वाला भी सुनकर भावुक हो जाये, इस गीत को सुनकर में हमेशा सोचता रहा कि शायद ऐसा कुछ हमारे वास्तविक जीवन, और समाज में नहीं होता होगा और यह एक काल्पनिक गीत है लेकिन यह घटना पढ़कर लगा कि कोख से राक्षस अभी भी पैदा हो रहे है. और ममता पर खंजरो से वार कर रहे है.

हालाँकि मानवीय संवेदनाओं का शीघ्रपतन आजकल इतनी जल्दी-जल्दी हो रहा है कि इस खबर के लिए देश के पास बिलकुल समय नहीं था. हो भी कहाँ से! यहाँ तो हर कोई गुमशुदा है हर किसी ने सोशल मीडिया पर अपने-अपने रिश्तों के काल्पनिक जंगल उगा लिए और उसमें भटक रहे है. सामाजिक रिश्तों की बली दी जा रही है. एक इंसान के रूप में पैदा होने वाले लोग यदि इस तरह की घटनाओं पर मूक बने रहे तो क्या यह इंसानियत के नाम पर कलंक नहीं है?

कुछ इसी तरह की एक दूसरी घटना थोड़े दिन पहले मुम्बई से प्रकाशित हुई थी. जिसे मीडिया ने काफी प्रसारित भी किया था. पहली घटना में माँ की ममता का क्रूर कत्ल हुआ तो दूसरी में सवेंदना का. हुआ यूँ कि एक शख्स डेढ़ साल बाद जब अमेरिका से मुम्बई स्थित अपने घर लौटा तो उसने देखा कि उसका फ्लैट अंदर से बंद है. उसकी मां उस घर में अकेली रह रहीं थी. जब बार-बार घंटी बजाने पर भी दरवाजा नहीं खोला, तो दरवाजा तोड़कर वो अंदर घुसा. उसने देखा कि फ्लैट के अंदर उसकी मां की जगह बिस्तर पर उसका कंकाल पड़ा है. उसके पिता की मौत चार साल पहले ही हो चुकी थी. आख़िरी बार डेढ़ साल पहले उसने मां से बात की तो उन्होंने कहा था कि वो अकेले नहीं रह सकतीं. वो बहुत डिप्रेशन में है. वो वृद्धाश्रम चली जाएगी. बावजूद इसके बेटे पर इसका कोई असर नहीं हुआ. अप्रेल 2016 में फोन पर हुई उस आख़िरी बातचीत के बाद लड़के की कभी मां से बात नहीं हुई. तकरीबन डेढ़ साल बाद जब आज वो घर आया तो उसे मां की जगह उसका कंकाल मिला.

यहाँ बात किसी अन्य पारिवारिक रिश्तें की नहीं बात सिर्फ एक मां की थी. वो मां जिसे गर्भावस्था में किसी ख़ास सूरत में अगर डॉक्टर ये भी बता दे कि आप उस पॉजिशन में मत सोइएगा, वरना बच्चे को तकलीफ होगी, तो वो सारी रात करवट नहीं बदलती. यदि उसका बच्चा रात में डर जाये तो वो पूरी रात नहीं सोती पता नहीं ये बेटा डेढ़ साल तक उसके बिना कैसे सोया होगा? एक कविता की चंद पंक्ति है कि माँ रोते हुए बच्चे का खुशनुमा पालना है, माँ मरूथल में नदी या मीठा सा झरना है, माँ संवेदना है, भावना है अहसास है, माँ जीवन के फूलों में खुशबू का वास है, माँ लोरी है, गीत है, प्यारी सी थाप है, माँ पूजा की थाली है, मंत्रों का जाप है, माँ आँखों का सिसकता हुआ किनारा है, अरे माँ तो बहती ममता की धारा है,

आखिर समाज आज किस चीज के लिए अपने रिश्तों, अपनी संवेदना का कत्ल कर रहा है क्या यह हमारी बदनसीबी नहीं है कि अपनी संवेदना का गला अपने हाथों घोट देते हैं, अधिकाँश लोग इन घटनाओं को पढ़कर देखकर से आहत होकर पत्थर बनना ही पसंद करते हैं, कि एक राक्षस ने माँ का दिल निकालकर चटनी से खा लिया और दुसरे ने डेढ़ साल तक माँ से बात करना जरूरी नहीं समझा. ना उसे माँ की चिंता रही होगी. अडोस-पडोस में भी किसी ने गवारा नहीं समझा कि पूछ ले इस फ्लेट में एक बुढिया रहती थी जो कई दिन से कई महीनों से दिखाई नहीं दी इस पूरे शहर मे, पूरी रिश्तेदारी में एक भी ऐसा इंसान नहीं था जिसने उस महिला से सम्पर्क करने की कोशिश की हो और बात न होने पर वो घबराया हो? शायद आज किसी के पास फुरसत नहीं है सब अपनी-अपनी जिन्दगी में व्यस्त है लेकिन फ्लैट में कंकाल जरूर बुजुर्ग औरत का मिला है, प्लेट में दिल एक माँ का चटनी में सना मिला है, मगर मौत शायद पूरे समाज की हुई है. और इसी समाज का हिस्सा होने पर हमें थोडा शर्मिंदा होना जरूरी बनता है की हम कहाँ जा रहे है?

विनय आर्य

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