Categories

Posts

तो क्या भारत धर्मनिरपेक्ष देश है?

सलीम चोरी करता हुआ पकड़ा गया. शरियत कानून के अनुसार उसके दोनों हाथ काटे जायेंगे. इरफान रेप केस में आरोपी है उसे सजा के रूप में तब तक पत्थर मारे जायेंगे जब तक वो मर ना जाये. और शरियत अनुसार नफीसा भी अपना वोट नहीं डाल सकती है. “क्या सच में ऐसा है?” पर भारतीय सविंधान तो इसकी इजाजत नहीं देता. भारतीय सविंधान तो अपनी पत्नी को तीन बार तलाक बोलने की और चार शादी करने की भी इजाजत नहीं देता. फिर क्यों होती है? वो तो मुस्लिमों का अपना पर्सनल ला बोर्ड है दारुल उलूम व मौलवी जानते है कि शरियत का मतलब महिलाओ का शोषण करना, मजहब के बहाने कई शादिया कर अपनी वासनाओं की पूर्ती कर बच्चे पैदा करना है हलाला जैसी बर्बरतापूर्ण और अमानवीय प्रथा को जिन्दा रखने के लिए इस्लाम का झूठा सहारा लेते है वरना शरियत के अनुसार तो हज यात्रा पर मिलने वाली छूट भी हराम है.

उपरोक्त बातों पर यदि गौर करें तो क्या भारत धर्मनिरपेक्ष देश है? यदि है तो फिर धार्मिक कानून क्यों? यदि किसी के लिए धार्मिक कानून है तो फिर आधे अधूरे क्यों? भारत का अपना लोकतंत्र है सविंधान है तो फिर वो पूर्ण रूप से सबके लिए सामान रूप से लागू क्यों नहीं है? अगर आप भारत में मुसलमान हैं तो आपको स्वतंत्रता की आप अपने कानून की आड़ में एक महिला का खूब शोषण कर सकते है, उससे शादी करो बच्चे पैदा करो फिर घर से बाहर फेंक दो. आपका कानून है सविंधान थोड़े ही रोकेगा. ज्यादा से ज्यादा चार-पांच मुल्ला मौलवी आयेंगे 1400 साल पहले महिला के लिए बने कानून के द्वारा आप बरी हो जायेंगे. न गुजरा भत्ता देना न उसे सम्पत्ति में अधिकार. फिर अगले रोज शादी कर लो कोई रोकने वाला नहीं है. हाँ यदि रोकने की कोशिश किसी ने की तो आपके मौलाना दूसरी जंग छेड़ देने का ऐलान कर देंगे. क्योंकि इसे उनका गुजारा चल रहा है.

2001 की जनगणना के मुताबिक, देश में मुस्लिम आबादी 13.4 फीसदी थी और दिसंबर, 2011 के एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक, जेल में मुसलमानों की संख्या करीब 21 फीसदी है. जिनका निपटारा भारतीय संविधान के अनुसार होना है. इनमें चोरी जैसे छोटे अपराध से लेकर बलात्कार, हत्या कुकर्म जैसे जघन्य आरोपी भी शामिल है. अब इसमें सवाल यह है शरियत का हवाला देने वाले लोग क्या इन अपराधों पर फैसला शरियत द्वारा देना चाहेंगे? यदि हाँ तो सुनिए अफगानिस्तान में बलात्कारी गुनाह करने के चार दिनों के अंदर उसे ढूंढ कर सिर में गोली मार के मौत दी जाती है. तो फिर बुलंदशहर एन.एच 91 पर माँ बेटी को बंधक बनाकर रेप करने वाले सभी मुस्लिम आरोपी अभी तक जिन्दा क्यों है? क्या मुस्लिम पर्सनल ला इसका जबाब देगा! सऊदी अरब जिसे इस्लाम का वेटिकन कहा जाता है यहां किसी महिला को बेआबरू करने पर मौत की सजा दी जाती है गुनाहार को तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक की वो मर ना जाए। और यह जुर्म की मौत आसान नहीं क्योंकि गुनाहगार पूरी पीड़ा और यातना से भी गुजरना पड़ता है. क्या मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड दिल्ली में निर्भया गेंगरेप के आरोपी मोहम्मद अफरोज को पकड़कर यह सजा दे सकता है?
कुरआन के अनुसार सच्चे मुसलमान के लिए हज यात्रा केवल अपनी कमाई से प्राप्त धन से ही हलाल मानी जाती है. किन्तु भारत सरकार हर वर्ष इसमें एक बड़ी राशि मुस्लिमों के लिए देती है. सुप्रीम कोर्ट ने हज-सब्सिडी को गैर-इस्लामिक बताते हुए समाप्त करने के निर्देश दिऐ है. जबकि पाकिस्तान को इस्लामिक देश मानने वाले लोगों को नहीं पता होगा कि पाकिस्तान ने भी हज सब्सिडी गैर इस्लामिक मानकर उसे उसे बंद कर दिया पाकिस्तान ही क्या किसी भी मुस्लिम देश में हज यात्रियों के लिए सरकारी सब्सिडी नहीं है पर दारुल उलूम और पर्सनल ला बोर्ड ने मुफ्त की सब्सिडी पर अब तक कोई फतवा क्यों नहीं दिया यह शरियत की हिदायतों के खिलाफ है फिर भी मजे कर रहे हो क्यों इससे इस्लाम को खतरा नहीं होता? या सिर्फ महिलाओं के बराबरी के अधिकारों की मांग पर ही खतरा होता है!
मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत आने वाले तलाक-ए-बिदात (ट्रिपल तलाक के जरिए रिश्ता तोड़ना), निकाह हलाला (तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने पर रोक) और बहुविवाह प्रथा गैरकानूनी हैं और भारतीय संविधान के खिलाफ हैं. सब जानते है अतीत में स्त्रियों ने बहुत अपमान झेला और उनका प्रयोग केवल काम-वासना के लिए किया जाता था उनको हर ह़क और अधिकार से वंचित रखा जाता था. क्या आज भी एक पुरातन परम्परा को जो अमानवीय है उसको धर्म के नाम से जोड़कर जिन्दा रखना जरूरी है? मुस्लिम समुदाय को समझना होगा कि प्रतिबन्ध किसी निकाह पर नहीं लगाया जा रहा है रोक लगेगी बस एक पत्नी के रहते दूसरी पत्नी रखने पर. रोक तलाक पर नहीं है बस उसका तरीका मौखिक होने बजाय संवेधानिक होगा. इसमें चाहे आपकी पत्नी हो या बहन-बेटी ही क्यों न हो. जो मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आज इन कुप्रथाओं पर इस्लाम के नाम पर जोर दे रहा है उसे समझना होगा कुप्रथा से कोई सम्प्रदाय मजबूत नहीं होता. यदि होता है तो फिर शरियत के नाम पर उन्हें पूर्णरूप से लागू करिये काटिए चोरो के हाथ मारिये पत्थरों से उन मुस्लिम पुरुषों को सविंधान की आड़ में रेप जैसे जघन्य अपराधों में लिप्त पाए जाते है. यदि नहीं तो इन महिलाओं की जिन्दा सांसे काले कफ़न में बंद करके अब और शोषण मत कीजिये. सोचकर देखिये कुप्रथाओं के नाम पर एक महिला के साथ आज जो हो रहा है क्या वो सही हो रहा है? लेख राजीव चौधरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *