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देश में क्यों बढ़ रही है आत्महत्या

बड़ा आसान है न खुद को मिटाना खुद पर तेल छिड़ककर आग लगा लो, छत से कूद जाओ या फिर पंखे में रस्सी डालकर लटक जाओ, इतना नहीं हो सकता तो ट्रेन की पटरी पर चले जाओ, ब्लेड से नस काट लो. बंदूक कनपटी पर सटाकर गोली मार लो और भी न जाने कितने तरीके हैं जीवन ख़त्म करने के. घर में जरा सी बात हुई या अपनी पसंद का काम न हुआ तो चलो आत्महत्या कर लो, पत्नी नाराज है या पति से कहासुनी हो गयी चलो आत्महत्या कर लो जैसे जिन्दगी, जिन्दगी न होकर कोई मजाक हो हर बात में आत्महत्या ये आज के भारत की कहानी हो गयी.

कई रोज पहले घटना ही ले लो बांदा जिले की बबेरू कोतवाली के पतवन गांव में 22 फरवरी की रात 28 साल के विकास ने आत्महत्या कर ली. विकास की शादी 21 फरवरी को हुई थी. विकास का शव तो पोस्टमॉर्टम के लिए चला गया लेकिन सवाल घर और समाज में जरुर चीख रहे है कि आखिर ऐसा क्या कारण हुआ जो पहले दिन शादी के सात फेरों पर सात जन्मों के बंधन और रिश्ते को निभाने की शपथ लेकर उठे विकास ने अगली ही रात खुद को मिटा डाला.

वैसे देखें तो हर रोज अखबारों और न्यूज चैनलों में ऐसी खबरें आम होती हैं कि शादी का प्रस्ताव ठुकराए जाने से आहत एक प्रेमी ने खुदकुशी कर ली, शादी के बाद महिला ने आग लगाकर आत्महत्या कर ली या शादी के बाद युवक ने जहर खाकर जान दी और प्रेम प्रसंग के चलते नवविवाहिता ने पंखे से लटककर जान दी 23 मई 2018 की बात है साउथ द्वारका में शादी के पंद्रह दिन बाद ही आपसी झगड़े में पत्नी ने चुन्नी से फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी झगड़े की वजह मामूली कहासुनी थी. 18 जुलाई 2018 को तमिल फिल्म इंडस्ट्री की जानी मानी एक्ट्रेस प्रियंका ने फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी प्रियंका ने अपने सुसाइड नोट में घरेलू कलह इसकी वजह लिखी थी

पिछले वर्ष जारी इस रिपोर्ट दावा किया गया है कि भारत में आत्महत्या करने वालों में किसान नहीं बल्कि सबसे ज्यादा युवा हैं. आत्महत्याओं के मामलों को ठीक से जान लेने का यह बिलकुल सही समय है. हमारे देश में हर साल करीब एक लाख लोग आत्महत्या करते हैं. 1994 में जहां 89195 आत्महत्याओं के मामले रिकार्ड किए गए, वो 2004 में 113697 हो गए और 10 साल बाद यानि 2014 में कुल 131666 मामले सामने आए. नेशनल हेल्थ प्रोफाइल की इस रिपोर्ट के अनुसार आत्महत्या की घटनाओं में 15 साल में 23 प्रतिशत का इजाफा हुआ. साल 2015 में एक लाख 33 हजार से ज्यादा लोगों ने आत्महत्या की जबकि 2000 में ये आंकड़ा एक लाख आठ हजार के करीब था.

आत्महत्या करने वालों में 33 प्रतिशत की उम्र 30 से 45 साल के बीच थी, जबकि आत्महत्या करने वाले करीब 32 प्रतिशत लोगों की उम्र 18 साल से 30 साल के बीच थी.

अब सवाल ये उठता है कि आखिर क्या कारण कि जीवन से इतनी बड़ी संख्या में लोग भाग क्यों रहे है. परिस्थितियों से जूझने का जज्बा समाप्त हो गया या रिश्तों की जिम्मेदारी से भाग रहे है. या फिर अपरिपक्वता के कारण आज का युवा आत्महत्या को ही एक बेहतर विकल्प समझने लगा है. विवाह के उपरांत हुई आत्महत्याओं में अनेकों कारण ये पाए जाते कि लड़की या लड़के के विवाह से पहले प्रेम सम्बन्ध होते है पर विवाह परिवारजनों की इच्छा से होता है पारिवारिक दबाव में हुई शादियाँ भी कई बार आत्महत्या का कारण बन जाती है.

इसके अलावा आधुनिक जीवनशैली और दौड़-भाग भरी जिंदगी के कारण बढ़ता तनाव, पारिवारिक उलझनें आर्थिक कारण जैसी अनेकों परेशानी कई बार सामने आ जाती है. पहले बड़े परिवारों में ऐसी परेशानियों का मिलकर सामना किया जाता था लेकिन आज परिवार छोटे हो गये कई बार तनाव के समय मानसिक सहारा नहीं मिल पाता तो इससे बचने के लिए जेहन में आत्महत्या का ख्याल आता है. उन्हें ये एहसास होने लगता है कि अब बस बहुत हो गया, और खुद को खत्म कर लेते हैं.

इसका एक बहुत ही आसान उदाहरण हम विद्यार्थियों में पाते हैं. जब कड़ी मेहनत के बाद भी वे परीक्षा में फेल या फिर उनके नंबर काफी कम आते हैं तो उन्हें यह एक बड़ी गलती लगने लगती है. तब उन्हें पल-पल अपनी गलती का डर सताता है बाद में यही डर बढ़ता हुआ उन्हें आत्महत्या की ओर ले जाता है. जबकि उन्हें समझना होगा कि गलती  सुधारी जा सकती है, लेकिन एक बार उनकी जिंदगी खत्म हुई तो वह वापस नहीं आएगी.

अपमान एक ऐसा शब्द है जिसे कई लोग बेहद गंभीरता से लेते है उनका अंतर्मन टूट जाता है. वह काफी उदास हो जाते हैं, उन्हें दुनिया के सामने जाने से भी शर्म आने लगती है इस कारण से भी यह कदम उठा लेते है.

भावनाओं के चलते आत्महत्या का फैसला लेते हैं, शारीरिक शोषण की तरह ही किसी की भावनाओं के साथ खिलवाड़ करना, आत्महत्या का एक बड़ा कारण बन जाता है. इसके अलावा पिछले दिनों एक बच्चे ने इस कारण खुदकुशी की  क्योंकि उसके माता-पिता उसे समय नहीं देते थे. एक दूसरी घटना में एक मां और बेटी ने आत्महत्या इस वजह कर ली क्योंकि शहर के एक दबंग ने बेटी को उठाने की धमकी दी थी. और भी न जाने कितने ऐसे कारण जो हम सबके सामने एक सवाल छोड़ जाते हैं. कहते हैं आत्महत्या करने वाले बेहद दुखी और लाचार होते हैं जिसका दर्द सिर्फ उसे करने वाला ही जानता है, पर क्या आत्महत्या उस दर्द को खत्म कर देती है. लेकिन ये सच नहीं है असल में वो आत्महत्या दर्द किसी और को दे देती है. गुस्सा, मजबूरी, नासमझी या फिर सोच समझकर की गई आत्महत्या का हश्र सिर्फ दुख ही होता है जो मरने वालों के अपनों को हमेशा के लिए मिल जाता है. जाहिर है, मौजूदा व्यवस्था में विरोध की सामूहिक अभिव्यक्तियों के दायरे जितने संकुचित होते जाएंगे, अपराध और आत्महत्याओं में उतनी ही बढ़ोतरी की आशंका बनी रहेगी…

विनय आर्य

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