Categories

Posts

नान्य: पन्था अर्थात इसके भिन्न अन्य कोई मार्ग नहीं है।

डॉ विवेक आर्य

कल मुझे एक अलग अनुभव देखने को मिला। मेरे क्लिनिक पर एक मेरा परिचित अपने बच्चे को दिखाने आया। मैंने बीमारी के लक्षण देखकर उन्हें दवाई दे दी। वह चला गया। मैं भी किसी कार्य विशेष से क्लिनिक से निकल गया। थोड़ी दूर एक मस्जिद के बाहर मुझे वह खड़ा मिला। मैंने उससे उत्सुकता वश पूछ लिया। आप हिन्दू हो और मस्जिद के दरवाजे पर क्या कर रहे हो। वह बोला दवा आपने दे दी। दुआ मौलवी जी से लेने आये है। बच्चा बीमार है। दोनों के बिना आराम नहीं होता।

मेरे मन में उसका कथन कई देर तक उथल पुथल करता रहा। मैं यही सोचता रहा कि हिन्दू समाज की ऐसी हालत क्यों हुई?

इसका मूल कारण था वेद पथ का त्याग करना। हिन्दू समाज के धर्माचार्यों, महंतों, मठाधीशों, कथावाचकों आदि ने वेद सन्देश की अनदेखी कर जो असत्य मार्ग अपनाया।  यह उसी का परिणाम है। कुछ उदहारण देकर समझाता हूँ।

हिन्दू समाज के मठाधीशों ने वेद विदित निराकार ईश्वर की पूजा छोड़कर मूर्तियों की पूजा करनी सिखाई। परिणाम क्या निकला। हिन्दुओं की संतानें उन्हीं मूर्तियों की पूजा छोड़।  आज मुसलमानों की कब्रों पर जाकर सर पटकती है। अगर निराकार ईश्वर की पूजा करते तो ऐसा कभी नहीं होता।

हिन्दू समाज के मठाधीशों ने वेद विदित सच्चिदानन्दस्वरुप ईश्वर को छोड़कर मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम एवं योगिराज श्री कृष्ण (दोनों महापुरुष स्वयं वेदों के ज्ञाता और निराकार ईश्वर के उपासक थे। ) की पूजा करनी सिखाई। परिणाम क्या निकला। हिन्दुओं की संतानें आज श्री राम और श्री कृष्ण को छोड़कर  शिरडी के साईं बाबा उर्फ़ चाँद मियां की भिन्न भिन्न मूर्तियां बनाकर उन्हें पूज रही है। अगर निराकार ईश्वर की पूजा करते तो ऐसा कभी नहीं होता।

हिन्दू समाज के मठाधीशों ने वेदों के ज्ञान को छोड़कर वेद विरुद्ध काल्पनिक पुराणों में जनता को उलझा दिया। परिणाम क्या निकला। हिन्दुओं की संतानें वेद विदित महान गायत्री मंत्र को छोड़कर ॐ साईं राम जैसे काल्पनिक मन्त्रों में उलझ कर रह गई।

अगर ईश्वरीय ज्ञान वेद के ज्ञान को प्रचारित करते तो ऐसा कभी नहीं होता।

यजुर्वेद में एक मंत्र है –

वेदाहमेतं पुरुषं महान्तं. आदित्यवर्णं तमसो परस्तात् । तमेव विदित्वा मृत्युमत्येति. नान्य: पन्था विद्यतेऽयनाय ॥ यजु० ३१।१८

नान्य: पन्था का अर्थ है इसके भिन्न अन्य कोई मार्ग नहीं है। अपनी अपनी दुकान चलाने , अपना धंधा चमकाने, अपने भेड़ों के समान शिष्यों की संख्या बढ़ाने के लिए जितने भी प्रपंच जो लोग कर रहे है।  वे नान्य: पन्था के वेद के सन्देश के विपरीत चल रहे है। वे हिन्दुओं का भला तो क्या ही करेंगे। थोड़े डूबे को और गहरे अवश्य डुबों देंगे।

 

वेद का सन्देश अपनाओ!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *