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नारी नरक का द्वार है तो पुरुष?

26 जनवरी को देश ने 70 वां गणतंत्र दिवस मनाया। राजपथ पर सीमा सुरक्षा बल की महिला टीम ‘‘सीमा भवानी’’ ने मोटरसाईकिल पर हैरतअंगेज कारनामे दिखा कर पूरी दुनिया का ध्यान महिलाओं की ताकत की ओर खींचा। लेकिन इसी दौरान यौन शोषण के आरोपों से घिरे फर्जी बाबा वीरेंद्र देव दीक्षित को लेकर कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल और सी. हरीशंकर की पीठ ने आश्रम के अधिवक्ता से आश्रम में औरतों और लड़कियों को बंधक बना कर रखने पर स्पष्टीकरण मांगा तो उनके वकील ने बाबा का बचाव करते हुए ‘‘नारी को नरक का द्वार’’ बताया हालाँकि न्यायाधीश महोदय ने उन्हें तुरन्त अदालत कक्ष से बाहर निकल जाने का आदेश दिया और भाषा पर नियंत्रण रखने की भी हिदायत दी। न्यायाधीश महोदय ने बाबा के वकील को भी यह कहा कि यह न्यायालय कक्ष है। यह आपका आध्यात्मिक कक्ष नहीं है कि जो आप नारी को नरक का द्वार बता रहे हो।

यह निश्चित ही दुःखद और अभद्र टिप्पणी थी जो दुनिया की आधी आबादी को अपमानित करती है। साथ ही प्रश्न यह है कि क्या वाकई आध्यात्म की दृष्टि से नारी को नरक का द्वार माना जाता है? क्या एक चौपाई या एक कथन को परम सत्य मान लिया गया और वैदिक काल से लेकर वेदों तक नारी की महिमा को उच्चारित करने वाले कथनों को मिटाने का कार्य हुआ? जबकि वेदों पर दृदृष्टिपात करने से स्पष्ट हो जाता है कि वेदों के मन्त्रश्दृष्टा जिस प्रकार अनेक ऋषि हैं, वैसे ही लोपमुद्रा, कात्यायनी, मदालसा जैसी अनेक ऋषिकाएँ भी हैं। ऋषि केवल पुरुष ही नहीं हुए हैं, वरन् अनेक नारियाँ भी हुई हैं। फिर एक को स्वर्ग और दूसरे को नरक का द्वार बताने का औचित्य क्या है? शायद ऐसा बताने वाले जरुर वेदों से अनभिज्ञ और मानसिक दृष्टि से दीन-हीन ही रहे होंगे।

दया, करुणा, सेवा-सहानुभूति, स्नेह, वात्सल्य, उदारता, भक्ति-भावना, वीरता आदि गुणों में नर की अपेक्षा नारी को सभी विचारवानों ने बढ़ा-चढ़ा माना है। इसलिये धार्मिक, आध्यात्मिक और ईश्वर प्राप्ति सम्बन्धी कार्यों में नारी का सर्वत्र स्वागत किया गया और उसे उसकी महत्ता के अनुकूल प्रतिष्ठा दी गयी है। मुझे नहीं पता तुलसीदास या किसी अन्य पौराणिक विद्वान की क्या मानसिक समस्या रही होगी कि उन्होंने किसी जगह नारी की महत्ता को कम आँका लेकिन क्या किसी एक के द्वारा, किसी एक की महत्ता, अस्वीकार देने से वह महत्वहीन हो जाता है? ईश्वर ने नारियों के अन्तःकरण में भी उसी प्रकार वेद-ज्ञान प्रकाशित किया, जैसे कि पुरुषों के अंतःकरण में। क्योंकि प्रभु के लिये दोनों ही सन्तान समान हैं। महान दयालु, न्यायकारी और निष्पक्ष प्रभु अपनी ही सन्तान में नर-नारी का भेद-भाव कैसे कर सकते हैं?

शतपथ ब्राह्मण में याज्ञवल्क्य ऋषि की धर्मपत्नी मैत्रेयी को ब्रह्मवादिनी कहा गया है, भारद्वाज की पुत्री श्रुतावती जो ब्रह्मचारिणि थी। कुमारी के साथ-साथ ब्रह्मचारिणि शब्द लगाने का तात्पर्य यह है कि वह अविवाहित और वेदाध्ययन करने वाली थी। महात्मा शाण्डिल्य की पुत्री ‘श्रीमती’ थी, जिसने व्रतों को धारण किया। वेदाध्ययन में निरन्तर प्रवृत्त थी। अत्यन्त कठिन तप करके वह देव ब्राह्मणों से अधिक पूजित हुई। इस प्रकार की नैष्ठिक ब्रह्मचारिणि ब्रह्मवादिनी नारियाँ अनेकों थीं। बाद में पाखण्ड काल आया और स्त्रियों के शास्त्राध्ययन पर रोक लगाई गयी, सोचिये यदि उस समय ऐसे ही प्रतिबन्ध रहे होते, तो याज्ञवल्क्य और शंकराचार्य से टक्कर लेने वाली गार्गी और भारती आदि स्त्रियाँ किस प्रकार हो सकती थीं? प्राचीनकाल में अध्ययन की सभी नर-नारियों को समान सुविधा थी। वैदिक काल में कोई भी धार्मिक कार्य नारी की उपस्थिति के बगैर शुरू नहीं होता था। उक्त काल में यज्ञ और धार्मिक प्रार्थना में यज्ञकर्ता या प्रार्थनाकर्ता की पत्नी का होना आवश्यक माना जाता था। नारियों को धर्म और राजनीति में भी पुरुष के समान ही समानता हासिल थी। वे स्वयं वर चुनती थीं, वे वेद पढ़ती थीं और पढ़ाती भी थीं. मैत्रेयी, गार्गी जैसी नारियां इसका उदाहरण हैं। यही नहीं नारियां युद्ध कला में भी पारंगत होकर राजपाट भी संभालती थीं। यदि नारी इतना कुछ करती थी तो स्वयं सोचिये कथित बाबा के अधिवक्ता की सोच कैसी होगी!

हाँ नारी के कुछ पल जरुर अँधेरे में बीते लेकिन इसके बाद 18वीं सदी में महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने नारी शिक्षा का बीड़ा उठाते हुए कहा कि जब तक नारी शिक्षित नहीं होगी वह न अपने अस्तित्व को समझ सकती न अपने महत्व को। अतः जो शिक्षा तालों में बंद थी ऋषि दयानन्द ने पौराणिक समाज से टकराकर कन्याओं के लिए सुलभ कराया जिसका नतीजा आज दिख रहा है। आज भारतीय महिलाएं विश्व पटल पर भारत देश का नाम ऊँचा कर रही हैं। विभिन्न अन्तर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भारत को विभिन्न पदक दिलाये हैं। झूलन गोस्वामी से लेकर मिताली राज ने क्रिकेट में, रियो ओलम्पिक में पदक जीतने वाली पीवी संधू, साक्षी मलिक और दीपा कर्माकर से लेकर व्यापार जगत में अरुंधति भट्टाचार्य, चेयरमैन, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया, चंद्रा कोचर आईसीआईसीआई बैंक की निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी, इंदिरा नुई, पेप्सिको की मुख्य कार्यकारी अधिकारी, प्रिया नायर, राजनीति में देखें तो पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर वर्तमान में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ अगणित सफल और देश को गौरव दिलाने वाले महिलाओं के नाम अंकित है।

नारी का एक रूप एक नाम तो नहीं है, वह माँ, बहन, बेटी और पत्नी सभी रूपों में नारी ही है! तो फिर किस नारी पर आक्षेप किया है? उसके किस रूप को नरक का द्वार बताया है। मानव को चारों आश्रम के बिना मोक्ष नहीं मिलता है और गृहस्थाश्रम बिना नारी के संभव नहीं है। जब प्रकृति ने स्त्री पुरुष को एक दूसरे का पूरक बनाया है तो, नारी नरक का द्वार कैसे हो सकती है। कमाल है जिसकी कोख में जन्म लिया, जिस गर्भ में नौ महीने बड़े हुए, जिसका खून रगों में, जिसकी हड्डी-मांस-मज्जा से बने हों। पचास प्रतिशत जीवन का दान नारी ने दिया है, उसको ही नर्क कहते हुए शर्म भी न आयी। नारी तो अनुसूया भी थी, नारी तो सीता और रुक्मणी भी थी। तुलसीदास जी ने जो भी अनुभव किया हो, लेकिन सृष्टि नारी के बिना संभव नहीं है और अगर वह नरक का द्वार है तो फिर सृष्टिकर्त्ता को सिर्फ पुरुष का निर्माण करना चाहिए था जो सीधे स्वर्ग के द्वार पर खड़ा रहता और उसमें ही प्रवेश कर जाता?….राजीव चौधरी

अंधविश्वास निरोधक वर्ष 2018 दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा

 

 

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