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भूत-प्रेत कितना सच, कितनी बीमारी!

वैसे देखा जाये तो भूत-प्रेत नाम कारोबार काफी पुराना है किसी से भूत प्रेत भगाने का टोटका पूछों तो वो आपको हजार टोटके बता देगा. इसके बाद देश में भूत-प्रेत डायन पिचाश पकड़ने छोड़ने वाले लाखों बाबा है. हर किसी के पास अपने टोटके और अपने भूत-प्रेत है.

भूत होता है या नहीं, इसके पक्ष-विपक्ष में तमाम दावे हैं. लेकिन भूत-प्रेत के भूत ने देश में करोड़ों रुपये का कारोबार खड़ा कर दिया है. भूत-प्र्रेत अब आदमी तक सीमित नहीं रहा. भूत भगाने वाले और भूतों से सीधे संवाद करने वाले तांत्रिक  बाबाओं की लंबी जमात देशभर में खड़ी हो गई. अखबार, टीवी चैनल और सार्वजनिक स्थलों पर किस्म-किस्म के एक्सपर्ट बाबा भूत भगाने के पोस्टर लगाए बैठे हैं. मजेदार बात यह है कि इस भूत-प्रेत में सौतन, सास, प्रेमी-प्रेमिका और कारोबार सब शामिल हो गए हैं. बाबा दावा करते हैं कि वे सबकुछ सही कर देंगे. प्रेमी को प्रेमिका दिला देंगे. सौतन से मुक्ति मिल जाएगी. कारोबार दिन और रात बढ़ेगा.

शहर के हर गली-मोहल्ले में लोगों को ठगने के लिए तांत्रिकों की बड़ी फौज मौजूद है. दुनिया में शायद ही कोई ऐसा काम हो जिसे पूरा करने के ये दावे न करते हों. किसी की नौकरी नहीं लग रही या फिर किसी से उसकी प्रेमिका रूठ गई है. ये धोखेबाज तांत्रिक सिर्फ किसी का फोटो देखकर ही आपकी शादी उससे कराने तक की सौ फीसदी गारंटी लेने से भी बाज नहीं रहे हैं. ऑफिसों के भीतर बनाए केबिनों में पसरे अंधेरे के बीच ये धोखेबाज ठगी का ऐसा खेल खेलते हैं कि अच्छे से अच्छा व्यक्ति इनके जाल में फंसकर बर्बाद हो जाता है। पैसा तो जात ही है काम और भी बिगड़ जाता है. ये लोग अंधविश्वास की अजीब दुनिया में ले जाते हैं. इनके धोखे में ज्यादातर युवा फंसते हैं. इनकी बातों को सच मानकर बड़ी मुसीबत खड़ी कर लेते हैं.

यही नहीं पिछले दिनों जब ये सुना तो बड़ा अजीब लगा कि बिहार और झारखंड में कुछ ऐसे जगहें भी हैं, जहां “भूतों-प्रेतों का मेला” लगता है. भले ही आज के वैज्ञानिक युग में इन बातों को कई लोग नकार रहे हों, लेकिन झारखंड के पलामू जिले के हैदरनगर में, बिहार के कैमूर जिले के हरसुब्रह्म स्थान पर और औरंगाबद के महुआधाम स्थान पर भूतों के मेले में सैकड़ों लोग नवरात्र के मौके पर भूत-प्रेत की बाधा से मुक्ति के लिए पहुंचते हैं. यही कारण है कि लोगों ने इन स्थानों पर चैत्र और शारदीय नवरात्र को लगने वाले मेले को भूत मेला नाम दे दिया है.

नवरात्र के मौके पर अंधविश्वास संग आस्था का बाजार सज जाता है और भूत भगाने का खेल चलता रहता है. ऐसे तो साल भर इन स्थानों पर श्रद्धालु आते हैं, लेकिन नवरात्र के मौके पर प्रेतबाधा से मुक्ति की आस लिए प्रतिदन यहां उत्तर प्रदेश, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के लोग पहुंचते रहते हैं.

हैदरनगर स्थित देवी मां के मंदिर में करीब 2 किलोमीटर की परिधि में लगने वाले इस मेले में भूत-प्रेत की बाधा से मुक्ति दिलाने में लगे ओझाओं की मानें तो प्रेत बाधा से पीड़ित व्यक्तियों के शरीर से भूत उतार दिया जाता है और मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित एक पीपल के पेड़ से कील के सहारे उसे बांध दिया जाता है.

बताया जाता है यहां के ओझा प्रेतात्मा से पीड़ित लोगों को प्रेत बाधा से मुक्ति दे पाते हैं. खाली मैदान में महिलाएं गाती हैं तो कई महिलाओं को ओझा बाल पकड़ कर उनके शरीर से प्रेत बाधा की मुक्ति का प्रयास करते रहते हैं. कई महिलाएं झूम रही होती हैं तो कई भाग रही होती हैं, जिन्हें ओझा पकड़कर बिठाए हुए होते हैं. इस दौरान कई पीड़ित लोग तरह-तरह की बातें भी स्वीकार करते हैं. कोई खुद को किसी गांव का भूत बताता है तो कोई स्वयं को किसी अन्य गांव का प्रेत बताता है.

असल में मनोचिकत्सक और मेडिकल साइंस के अनुसार अनुसार मानव शरीर में 23 गुणसूत्र होते हैं. ये सभी डीएनए से बने होते हैं. डीएनए आनुवांशिक लक्षणों को पीढ़ी-दर पीढ़ी आगे ले जाते हैं. इन गुणसूत्रों पर 64 कोडोन्स होते हैं. यह सभी कोडोन्स 13.4 ट्रिलियन कोशिकाओं को नियंत्रित करते हैं. प्रत्येक कोड का एक निश्चित क्रम होता है. ऐसे में यदि एक कोड बदल जाए तो व्यक्ति अपनी पहचान खोने लगता है. कोड बदलते ही उसकी खास पहचान बिगड़ती है. आदमी खुद का अस्तित्व खो देता है. वह अजीब बातें करता है. उसे अपने अस्तित्व की छाया दिखने लगती है. इसे ही लोग भूत-प्रेत या ऊपरी हवा समझने लगते हैं. इसी प्रक्रिया में हार्मोन्स के स्राव के भी बदलाव होता है. इससे व्यक्ति का व्यक्तित्व भी परिवर्तित होना शुरू हो जाता है.

ये तो थी साइंस अब यदि साइक्लोजी मनोविज्ञान की बात करें तो कोई न कोई इन्सान किसी न किसी प्रभावित जरुर होता है. तब वह उसके जैसा बनना चाहता है. कोई फिल्म देखकर नायक से प्रभावित होता है तो कोई विलेन से प्रभावित हो जाता है. किसी की बचपन से कथित चमत्कारी शक्तियों में कल्पना होती है. कई बार इन्सान इतना काल्पनिक हो जाता है कि वह यथार्थ को भूलकर कल्पना की गहराई में डूब जाता है. वह खुद कोई दूसरा समझने लगता है. उसे यथार्थ की दुनिया बेकार लगने लगती है और अपनी काल्पनिक दुनिया सच्ची, तब वह ऐसी हरकते शुरू कर देता है. अपना नाम, अपना स्थान सब कुछ वही बताने लगता है जैसी कल्पनाओं में वह डूबा होता है. जिन लोगों की इच्छा शक्ति कमजोर होती है, उन पर ही भयभीत करने वाली बातें हावी होती हैं. उनके सामने उसी तरह की संरचनाएं बनने लगती हैं. फिर वे इसी तरह के मायाजाल में फंसने लगते हैं. कुछ स्वार्थी लोग ऐसे मामलों का फायदा उठाकर भूत-प्रेत और जादू-टोना के नाम पर धन ऐंठते हैं जिसे भूत-प्रेत चुड़ैल आदि का नाम देकर खूब धन बटोरते है..राजीव चौधरी

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