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मेरे बच्चों को पादरियों से बचाओं

ये खबर अब कोई हैरान करने वाली नहीं है क्योंकि ऐसी खबरें अब भारत के किसी न किसी कोने से हर रोज का किस्सा बना चुकी है। अब झारखंड के खूंटी जिले में बीते साल हुए सामूहिक दुष्कर्म के एक मामले में खूंटी की जिला अदालत ने एक ईसाई पादरी और तीन अन्य लोगों को मंगलवार को दोषी करार दिया। खूंटी जिले के अक्री में 19 जून, 2018 को पांच लड़कियों के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। पांचों लड़कियां सरकारी योजनाओं को लेकर लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए नाटक में हिस्सा लेने अक्री गई थीं। लेकिन पादरी द्वारा इन लड़कियों का अपहरण कर इनके साथ दुष्कर्म किया गया था।

अभी तक जो खबरें आती थी ज्यादातर चर्च और ईसाई शिक्षण संस्थानों के अन्दर से आती थी लेकिन अब वासना के भूखे पादरी चर्च की चहारदीवारी लाँघकर बाहर की दुनिया में भी अपने शिकार तलाश रहे है। एक किस्म से कहें तो भारत में दशकों से चर्च परिसर के भीतर ननों का यौन शोषण हो ही रहा था क्योंकि भारत की ननों की समस्या धुंधली थी। अभी तक कई ननों को लगता है कि शोषण तो आम है, इस समस्या पर ज्यादातर ननें तभी बात करती हैं जब उन्हें यह तसल्ली दी जाए कि उनकी पहचान छुपाई जाएगी।

लेकिन अब जो हो रहा है वह सब भारतीय समाज के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि पिछले कुछ मामले उठाकर देखे जाये है तो सफेद चोंगो के अन्दर दया मानवता की प्रतिमूर्ति बताये जाने वाले पादरियों की जगह हवस के शिकारी दिख रहे हैं। मई 2016  में एक लड़की का सामूहिक बलात्कार किया गया और लड़की गर्भवती हो गई। इस लड़की का बलात्कार पादरी रोबिन वडाकूमचेरिल उर्फ मैथ्यू वडाकूमचेरिल ने कोट्टियूर के सेंट सैबेस्टियन चर्च में किया था। इसके बाद 2018 में केरल के मालंकारा सीरियन ऑर्थोडॉक्स चर्च के चार पादरियों पर 34 वर्षीय विवाहित महिला के चर्च के समक्ष कबूलनामे का इस्तेमाल करके उससे यौन शोषण किया था।

इसके दो महीने बाद पंजाब के जालंधर जिले के एक चर्च पादरी बजिंदर सिंह को महिला से रेप की शिकायत के बाद दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय हवाईअड्डे से गिरफ्तार किया गया था। इस पादरी द्वारा रेप घटना को अंजाम दिया गया था। यही नहीं साल 2017 में पटना में एक पादरी को रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। पटना सिटी के रहने वाले चर्च के पादरी चंद्र कुमार पर दो महिलाओं ने बलात्कार करने का आरोप था। यह पादरी चंद्र कुमार कई महिलाओं का धर्म परिवर्तन करा कर उनका यौन शोषण किया करता था। ऐसी दो महिलाएं जिनका धर्मांतरण कर लगातार 6 महीनों से वो अपनी हवस का शिकार बना रहा था। इससे पहले साल  2014 में केरल के त्रिचूर में सेंट पॉल चर्च के पादरी राजू कोक्कन को 9 साल की बच्ची से रेप के केस में गिरफ्तार किया गया था।

इसके अलावा साल 2018 में पोक्सो कोर्ट, बोकारो की अदालत ने दुष्कर्म का प्रयास करने के आरोपी पादरी सुलेमान टोपनो को तीन वर्ष के सश्रम कारावास तथा 20 हजार रुपया जुर्माना की सजा सुनायी थी तो कुछ समय पहले एक नन ने 7 पेजों के अपने पत्र में कहा था कि बिशप फ्रैंको मुलक्कल साल 2014 से 2016 के बीच उसका शारीरिक उत्पीड़न किया। साथ ही यह भी बताया कि वह किस-किस के पास मदद के लिए गई, लेकिन उसकी मदद के लिए कोई भी आगे नहीं आया. इसके बाद पीड़िता नन ने वेटिकन सिटी के पोप जो दुनियाभर में सबसे बड़े ईसाई धर्मगुरू हैं। उनसे इस मामले में दखल देकर न्याय की गुहार लगाई थी लेकिन पॉप ही क्या करता क्योंकि इससे कुछ दिनों पहले ईसाईयों के सर्वोच्च धर्मगुरु पॉप के ‘लव लेटर्स’ सामने आये थे एक शादीशुदा महिला अन्ना-टेरेसा ताइमेनिका और पोप जान पॉल द्वितीय के बीच करीबी रिश्तों का खुलासा करने वाले लव लेटर्ससे अखबारों की सुर्खिया बने हुए थे।

पर इसके बावजूद भी पॉप अपने लम्पट पादरियों के कारनामों के कारण दुनिया भर में माफी मांगते फिर रहे है। अधिकांश ऐसा माना जाता रहा है कि जब मनुष्य का मन भोग.विलास से भर उठता है तो वह अध्यात्म की और रुख करता है, उससे जुड़ता है। उसमे राग, मोह, भोग आदि चीजों का त्यागकर एक सरल जीवन जीता है जिसके भारत देश में बहुत सारे उदहारण सुनने देखने को मिलते है। लेकिन यदि ईसाइयत के अन्दर चर्चों के पादरियों को झांककर देखे तो लगता है जैसे इनके जीवन का उद्देश्य पूजा उपासना और आम जन को सही राह दिखाने के बजाय सिर्फ यौन शोषण ही मुख्य उद्देश्य रह गया हो।

पिछले दिनों बीबीसी की एक रिपोर्ट केरल की रहने वाली गीता शाजन चर्च से अपनी बेटी को सुरक्षित रखने की प्रार्थना कर रही थी। क्योंकि उनकी छोटी बेटी नन बनने के लिए पढ़ाई कर रही थी। गीता और उनके पति शाजन वर्गीस कोच्चि स्थित वांची स्क्वायर खड़े थे। वहां नन और ईसाई समाज के कुछ लोग एक नन से बलात्कार के अभियुक्त बिशप की गिरफ्तारी की मांग करते हुए धरना प्रदर्शन कर रहे थे। तब गीता ने कहा था एक मां के तौर पर मैं अपनी बेटी के भविष्य को लेकर बहुत चिंतित हूं. एक समय में चर्च को सबसे सुरक्षित जगह मानती थी लेकिन लगता है कि यह सुरक्षित जगह नहीं है। अकेले भारत में ही नहीं, विश्व के कई देशों में पादरियों का काला चेहरा उजागर हुआ है। जर्मन केथोलिक चर्च में 1946 से 2014 के बीच यौन उत्पीड़न के 3677 मामले दर्ज हुए तो आस्ट्रलिया में 1980 से 2015 के बीच करीब 4,500 लोगों ने यौन शोषण होने की शिकायत दर्ज कराई थी।

असल में केरल समेत देश में ननों के उत्पीड़न से जुड़े बहुत से ऐसे मामले हैं, जो वर्षों से चर्च के दबाव में दबे पड़े हैं। ठीक से छानबीन होने पर इनकी सचाई देश के सामने आ सकती है। कुछ समय पहले ही कोल्लम जिले के पठनपुरम में 55 वर्षीया नन सुसन का शव कुएं से बरामद किया गया था यदि चर्च के अंदर इस तरह महिलाओं का उत्पीड़न चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब भारत से धर्मांतरण की सिमटती दुकान के साथ-साथ चर्च में सिर्फ पादरी रह जाएंगे, नन एक भी नहीं मिलेगी।

राजीव चौधरी 

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