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रोहिंगा मुसलमान, मानवता का पाठ बंद करे भारत

मंगलवार की दोपहर कुछ लोग दिल्ली के जंतर-मंतर पर प्रदर्शन कर रहे थे। मामला था बर्मा में रोहिंगा मुस्लिमों पर हमले के विरोध में यह एक शांति पूर्ण प्रदर्शन। अबकी बार न तो रोहिंगा मुस्लिमों के पक्ष में मुम्बई के आजाद मैदान में अमर जवान ज्योति पर तोड़-फोड़ की और न ही लखनऊ में महात्मा बुद्ध की मूर्ति खंडित की, शायद सबको ज्ञात होगा पिछली बार 2012 में एक लाख मुस्लिमों ने आजाद मैदान में हिंसा उपद्रव किया था। जिसमें करीब 7 लोग मारे गये थे और बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मी घायल हुए थे। उस दौरान पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को बड़ी संख्या में अपने देश में सुरक्षा की कमी महसूस हुई थी जिस कारण दिल्ली, मुम्बई बेंगलोर आदि बड़े शहरों में रह रहे पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को पलायन करना पड़ा था।

आखिर कौन हैं रोहिंग्या मुसलमान? कहाँ से आये हैं, किधर बसाए गए हैं, भारत को उनसे क्या समस्या है, क्या हमें उनकी मदद करनी चाहिए या फिर ये किसी साजिश के तहत भारत में बसाए जा रहे हैं? सम्भवतः ऐसे तमाम सवाल रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम सुनते ही हमारे जेहन में आ जाते हैं। अब जैसे ही 40 हजार रोहिंग्या मुसलमानों को उनके देश म्यांमार वापस भेजने की बात सरकार की ओर उठाई गयी तो प्रदर्शनकारियों, मानवतावादी सेकुलर लोगों का समूह आँखों में आंसू भरकर सरकार को मानवता का पाठ पढ़ाने आ गया। दरअसल यह लोग पिछले पांच से सात साल में भारत में अवैध रूप से घुसे और देश के विभिन्न इलाकों में रह रहे हैं।

अब भारत सरकार रोहिंगा मुस्लिमों को इनकी पहचान करने और इन्हें वापस म्यांमार भेजने की योजना पर काम कर रही है। म्यांमार की बहुसंख्यक आबादी बौद्ध है। म्यांमार में एक अनुमान के मुताबिक 10 लाख रोहिंग्या मुसलमान हैं। इन मुसलमानों के बारे में कहा जाता है कि वे मुख्य रूप से अवैध बांग्लादेशी प्रवासी हैं। बर्मा सरकार ने इन्हें नागरिकता देने से इन्कार कर दिया है।

मामला सिर्फ नागरिकता तक सीमित रहता तो कोई बात नहीं थी हाल ही में म्यांमार के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या चरमपंथियों ने पुलिस चौकी पर हमला किया था जिसमें सुरक्षाबलों के कुछ  सदस्य मारे गए थे। इस हमले के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने कड़ी निंदा करते हुए बयान जारी किया था कि भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में म्यांमार के साथ मजबूती से खड़ा है। हमले के बाद रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ सैन्य कार्यवाही शुरू हुई थी और रोहिंग्या शरणार्थी संकट उत्पन्न हो गया।

पूरी दुनिया में बौद्ध धर्म अपनी अहिंसा के लिए जाना जाता है फिर भी रोहिंग्या मुस्लिम और म्यांमार के बौ( आपस में सामंजस्य नहीं बैठा पाए? इसके कई कारण हो सकते हैं पहला ये कि किसी भी देश के नागरिक नहीं चाहेंगे कि उनके देश के संसधानों पर किसी और देश के लोग किसी भी रूप में आकर राज करें। दूसरा कारण ये है कि शरणार्थी भी अहिंसक हों, नियम मानने वाले हों, जिस देश में रहे उसकी देशभक्ति करने वाले हों तो फिर भी ठीक है। वरना कोई भी देश अपने देश में देशद्रोहियों का जमावड़ा नहीं लगाना चाहेगा? तीसरा प्रवास की भी समय सीमा होती है यदि कोई जीवन पर्यंत रहना चाहता है उसको उसके मूल निवासियों की सभ्यता और संस्कृति से कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। लेकिन रोहिंगा देश से बढ़कर मजहब को मानते हैं, शायद सबसे बड़ा कारण यही हो सकता है जिससे इतने साल म्यांमार में रहने के वावजूद रोहिंग्या मुस्लिम कभी वहां के मूल निवासियों के साथ समांजस्य नहीं बिठा पाए।

मानवता के नाते शरणार्थी को शरण देनी चाहिए लेकिन यहाँ मामला सिर्फ शरणार्थी का नहीं है मैं बे हिचक कहता हूँ इस्लामिक शरणार्थियों अकेले नहीं आते उनके साथ आता उनका मजहब, उनकी अन्य मतां से नफरत, हिंसा और कट्टर मानसिकता जो किसी भी अन्य समाज से घुलने-मिलने को तैयार नहीं होती।

यूरोपीय देशो ने हाल में सीरियाई मुस्लिम शरणार्थियों को शरण दी थी क्या नतीजा निकला? जर्मनी में जर्मन युवतियों के साथ नववर्ष पर सामूहिक दुष्कर्म, फ्रांस में हमले, ब्रिटेन में आतंकी हमले नतीजा आज पूरा यूरोप आतंक के साये में जी रहा है। शायद आप सभी को याद होगा, भारत में बोध-गया मन्दिर में एक बम विस्फोट हुआ था और तब हमलावर ने हमला करने का कारण बताया था कि बौद्ध धर्म को मानने वाले म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की खातिर उसने बौद्ध मंदिर पर हमला किया है। बस यहां से शुरुआत होती है इनके मजहबी पाखंड की, म्यांमार में कुछ हो रहा होगा तो आतंक भारत में फैलाया गया और भारत का राजनैतिक सेकुलिरिज्म  ‘‘आतंक का कोई मजहब नहीं होता’’ उच्चारित करके सो जाता है।

वर्ष1990 कश्मीर दंगें में एक ओर जहां कश्मीरी पंडित अपने ही देश में शरणार्थी बनने को मजबूर हैं, मुस्लिम वोट बैंक के लिए नेताओं ने साजिश के तहत उनको कभी कश्मीर में वापस बसने नहीं दिया। कश्मीर में से लगभग सारे के सारे हिन्दू या तो मार दिए गए या फिर भगा दिए गए। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत कोई भी भारतीय जो कश्मीर का निवासी नहीं है, वहां जमीन नहीं ले सकता है लेकिन नेताओं ने रोहिंग्या मुसलमानों को जम्मू-कश्मीर में बसने दिया गया क्यों?

हालाँकि यह अभी तक साफ नहीं है कि भारत इन रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार में भेजेगा या फिर बांग्लादेश में। रोहिंग्या मुसलमानों को निर्वासित करने का मुद्दा भारत के सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच चुका है जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है रोहिंगा मुस्लिमों की पैरवी जाने-माने वकील प्रशांत भूषण कर रहे हैं।

अब जब भारत सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को वापस भेजने का मन बना ही लिया है तो इसमे मानवाधिकार संगठनों को आपत्ति है, यही मानवधिकार संगठन उस समय घास चरने चला जाता है जब कश्मीरी पंडितों को मारकर अपने ही घरों से बेदखल कर दिया जाता है, इराक में यजीदी महिलाओं पर मजहबी अत्याचार होता है या फिर पाकिस्तानी सेना बलूचों पर जुल्म करती है। करांची और सिंध में जबरदस्ती हिन्दू लड़कियों को उठा लिया जाता तब न तो ये मानवता के दलाल दिखाई देते हैं न ही विकसित देशों के राजनेता जिन्हें बस दूसरे देशों में ही शरणार्थी ठिकाने लगाने होते हैं। कुछ लोगों को इससे भी आपत्ति है कि भारत ने 1950 मे तिब्बती शरणार्थियों को अपनाया, 1971-72 में बंगलादेशी हिन्दू शरणार्थियों को अपनाया तो रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों वापस भेजा जा रहा है? भारत में कितने लोग गरीबी रेखा ने नीचे रह रहे हैं, कितने लोगों को एक समय का खाना भी नसीब नहीं हो रहा? अशिक्षा से हमारा मुल्क अभी भी लड़ रहा है। क्या ऐसे में ये गैर-जिम्मेदार शरणार्थी हमारे देश की समस्याएं और नहीं बढ़ाएंगे?

-राजीव चौधरी

 

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