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लॉक डाउन पर तब्लीगी जमात का पलीता

25 मार्च को जब पीएम नरेंद्र मोदी ने 21 दिनों तक लॉक डाउन की घोषणा की थी। उस समय देश में कारोना संक्रमितों की संख्या महज 600 थी और लॉक डाउन की घोषणा के बाद अनुमान लगाया जा रहा था कि यह संख्या हजार के आस पास सिमट जाएगी। देश की जनता ने भी लॉक डाउन का पालन किया लेकिन मुस्लिम समुदाय का एक हिस्सा इससे बेपरवाह होकर देश की राजधानी के केंद्र निजामुद्दीन में तबलीगी जमात की सभा का आयोजन करता रहा। इस इस्लामिक सभा में देश-विदेश से हजारों मुसलमान शामिल होते हैं। विदेशी जमातियों में आने वाले अधिकांश उन्ही देशों से हैं जहां कोरोना महामारी का प्रकोप बहुत अधिक हुआ है, जैसे चीन, ईरान, इंडोनेशिया, मलेशिया, सऊदी अरब, इंग्लैंड और अनेक अन्य मध्य एवं पश्चिम एशियाई देश। इनमें संक्रमित व्यक्तियों की संख्या अधिक हो सकती थी और वही हो रहा है इस कारण आज यह संख्या कई हजार पहुँच गयी है।

एक अनुमान के अनुसार इस आयोजन में 2000 से अधिक लोग सम्मिलित हुए थे, जिसमें 300 लोगों को बुखार, खांसी, सांस लेने की समस्या और सर्दी-जुकाम होने की पुष्टि हो चुकी थी। चिंता की बात यह है कि इनमें 250 से अधिक की संख्या विदेशी मजहबी प्रचारकों की थी, जो लाक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा रहे थे। इससे साफ पता चलता है कि अगर भारत में कोरोना को हराने की सोची भी जाये तो भी नहीं हरा सकते कारण जमात की एक दूसरे को दिखावे की नमाज से कोरोना को भर पेट चारा जो मिला मिल रहा है। लॉकडाउन पूरा फैल कर दिया, मस्जिदों से रोके तो इक्कठा होकर घरों में नमाज पढने लगे और इस विषम परिस्थिति में देश की एकता पर जितना पलीता लगा सकते थे लगा रहे है।

जब केवल इतने भर से काम नहीं चला तो देश के अलग-अलग हिस्सों में पुलिस बल पर पथराव की घटना सामने आई, मेडिकल टीम पर हमला रहा हो या डॉक्टरों के ऊपर थूकने की घटना रही हो, नर्सों के साथ अश्लील व्यवहार से लेकर तब्लीगी जमात से जुड़े लोगों ने कोई कोर कसर बाकि नहीं छोड़ी। इस संकट के जो मानवीय व्यवहार की अपेक्षा की जा रही थी वह खोखली कल्पना साबित हुई।

गलती तो है जब पूरी दुनिया 15 तारिख से ही जानती थी कि लाँक डाउन होना है तब इतने लोगों को उनके घर पहुँचाने की जिम्मेदारी जमात की होती है,  लेकिन सोच गुमराह किये जाते रहे कि वहाँ सारे आलिम-फाजिल लोग है और मौत तो अल्लाह के हाथ मे है, बोल-बोल कर ख़ुद भी गुमराह हो रहे और अपनी कौम को भी गुमराह कर रहे, नतीजा क्या हुआ? बिमारी और मौत। जब  दस दिन पहले ही अण्डमान मे दस लोग कोरोना से पीड़ित पाये गये थे जो कि मरकज से ही गये थे लेकिन इन्हें मजाक़ लगता रहा क्योंकि इनके पास कोरोना से न डरने वाली तकरीरो की विडियो भेजी जा रही थी कि पांच वक्त के नमाजी को कोरोना नही होता।

असल में तबलीगी जमात की शुरुआत मुसलमानों को अपने धर्म बनाए रखने के लिए की गई। इसके पीछे कारण यह था कि मुगल काल में जब हिन्दुओं इस्लाम धर्म कबूल किया था, लेकिन फिर वो सभी हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज में लौट रहे थे। ब्रिटिश काल के दौरान भारत में आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू बनाने का शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था, जिसके चलते मौलाना इलियास कांधलवी ने तबलीगी का खेल शुरू किया था।

तब से तब्लीगी जमात के नाम पर हर साल लाखों की संख्या में मुसलमान तबलीगी समारोहों में भाग लेते हैं, और लाखों लोग पूरे देश में फैल जाते हैं मजहब की कसमें दिलाते हैं. पिछले पच्चीस से तीस वर्षों में यह संख्या कुछ हजार से बढ़कर करोडो में पहुँच गयी है और इस में इजाफा ही होता चला जा रहा है। इन का मुख्य केंद्र भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश है मगर अब कुछ विदेशो में भी इस का विस्तार हो चूका है। पिछले पच्चीस, तीस साल में जितना प्रचार में इजाफा हुआ है, उतना ही इन देशो में आतंकवाद अत्याचार, उत्पीड़न, अन्याय और भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है। ऐसा क्यों है? इसका जवाब प्रचार करने वालों के पास भी नहीं है। बस कह देते है इसकी वजह भी अमेरिका और इजरायल की साजिश है।

इस प्रचार में मुख्य समस्या यह दिखती है कि उनका सारा जोर इस्लाम की हिदायत पर होता है। समस्याओं का सामना करने की बजाय उनके पास हर समस्या का एक सरल सा जवाब है कोई बीमार है, किसी को जुकाम है किसी के पेट में दर्द है इनके पास एक जवाब है कि मजहब से दूरी और मजहब दुरी का मतलब दो, तीन बातें हैं नमाज पढ़ना, कुरान की तिलावत करना, दाढ़ी रखना, सलवार टखने ऊपर बांधना, बुरका पहनना आदि। अन्य धर्मों के लोगों को काफिर बताना इसके बाद ये कहते है सब अल्लाह के सहारे छोड़ दो, जो भी होगा अल्लाह करेगा बस हम नमाज पढ़ते रहे।

मगर इन को कौन समझाए के यहाँ इंसान को सिर्फ नमाज के लिए पैदा नहीं किया है, न सिर्फ दाढ़ी टोपी बुर्के के प्रचार के लिए पैदा किया गया। करते क्या है एक आम सीधे साधे मुसलमान को पकड़ते है उसे कट्टर बना देंगे। जैसा कि वसीम रिजवी ने कहा है। इससे ज्यादा इनका कोई काम नहीं है, कोई बताये अभी तक कितनी जमाते लादेन के घर गयी? कितनी जमातें बगदादी को अल्लाह का रास्ता समझाने गयी ? तहरीक ए तालिबान के कितने आतंकियों को समझाया? पता नहीं इनके पास जाने हिम्मत ही नहीं होती या जरूरत महसूस नहीं करते।

दूसरा अभी तक कितनी तबलीगी जमाते देश में संकट के समय में काम आई, समाज सेवा का काम किया हो। किसी सडक के गड्ढे में दो टोकरा मिटटी डाली हो उल्टा आज जब देश पर संकट है तब भी लोगों को समझाने के बजाय उल्टा अपने लोगों को ही कोरोना वायरस संक्रमित करते भारत भर घूम रहे है।

लेकिन इससे अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि ये लोग आम आदमी कोढ़ी बना देते हैं यानी उसे ऐसा कर देते है कि देश व राष्ट्र के किसी काम का नहीं रहता। हर बंदे के हाथ में तस्बीह देकर मस्जिद में बिठा देते हैं। इस दुनिया में जो कुछ हो रहा है उसे छोड़ो, इस्लाम की चिंता करो।

असल में तब्लीगियो ने आम आदमी को अपने जिम्मेदारियो सांसारिक दायित्वों से अनजान कर देश व राष्ट्र का बेड़ा गर्क कर दिया है। वे हर किसी को अपने साथ प्रचार में ले जाने की जिद पर हैं। खुद तो अपनी जिम्मेदारियों से बचते है और दूसरे को भी इसी राह पे लगाने की कोशिश करते है। सवाल यह है कि अगर कोई व्यक्ति अपना घर बार, पत्नी बच्चे छोड़कर साल भर, तीन महीने या चालीस दिन के लिए दूसरों को सीधा रास्ता दिखाने निकल पड़े और इस बीच अपने घर वाले भटक जाएं तो क्या तीर मारा। पत्नी बीमार बच्चे को ले कर कहाँ मारी मारी फिरे होगी, जिसे पता ही नहीं कि अपने शहर अस्पताल किधर है और जिसे आप पुरुष चिकित्सक से मिलने नहीं देते कि वह नाम हराम है।

तबलीगयों से आखिर में यही कहना चाहूगा के कि आप अपनी सारी जिम्मेदारियां पूरी करते हुए समाज में हो रहे अन्याय के खिलाफ संगठित तरीके से संघर्ष करे। इससे बढ़कर न तो धर्म की सेवा कर सकते हैं और न ही बढ़कर कोई पूजा हो सकती है। वरना चुपचाप मस्जिद के किसी कोने में बैठकर तस्बीह घुमा घुमा कर अपनी जन्नत पक्की करते रहें और बाकी लोगों को नाकारा न बनाये खास तौर से समाज लोगो को मजहब के नाम पर बर्बाद न करें, उन्हें समाज देश में अपना योगदान करने दें।

ल्रेख..राजीव चौधरी

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