शब्द में अपार शक्ति होती है। शब्द अक्षर से बनता है और अक्षर का अर्थ ही होता है जिसका क्षय या क्षरण न हो। मुंह से निकली बात सबसे दूर तक यानि क्षितिज तक जाती है। इसका कभी अंत नहीं होता। जिसमें अनंत और अखंडशक्ति है, उसे अमर होना ही चाहिए। ‘बातहिं हाथी पाइए, बातहिं हाथी पांव’ कहा गया है। एक राजा का मरणासन्न हाथी था। उसने राज्य में मुनादी करायी कि उसका हाथी जिसके भी खेत में सुबह को हुआ करे या प्रातः पाया जाये, वह तत्काल राजा को सूचना दे। पर ‘खबरदार कोई भी राजा को हाथी की मौत की खबर न दे, अन्यथा उसे मृत्यु दण्ड दिया जायेगा। हाथी को तो कभी मरना ही था, सो वह एक ईख के खेत में मर गया। खेत वाले के बेटे ने जाकर राजा से कहा, ‘‘राजन् जी। सप्रणाम निवेदन है कि आपका हाथी मेरे खेम में पड़ा है। पर, वह न हिल-डुल रहा है न खा-पी रहा है और न सांस ले रहा है।’’ राजा उसका आशय समझ गया। राजा ने लड़के के वाकचातुर्य पर रीझ कर उसे अपना मंत्री बना लिया। बात का एक प्रसंग ठीक इसका उल्टा भी है- एक राजा के एक पुत्र का निधन हो गया। औपचारिकता का निर्वाह करने के लिए पड़ोसी राजा के पुत्र ने आकर मृतक के पिता को इन शब्दों में सांत्वना प्रदान की, ‘‘चाचाश्री! पिताजी के बाहर होने के कारण इस बार शोक-संवेदना के लिए मुझे ही आना पड़ा है। पर चिंता न करें, अगली बार ऐसे मौके पर पिताजी ही आएंगे।’’ सोच सकते हैं, इस लड़के की भरी सभा में कितनी दुर्गति हुई होगी। इसी प्रकार एक दुकान पर एक दम्पत्ति ने बरफी खायी। बरफी काफी स्वादिष्ट लगी, सो पति ने दुकानदार से काह, ‘तुम्हारी बरफी बहुत सुन्दर है।’ दुकानदार ने पलटकर उसकी पत्नी की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘आपकी पत्नी बहुत स्वादिष्ट है।’’ दोनों के बीच वबाल होते-होते बाल-बाल बचा। शब्द प्रयोग का एक और उदाहरण देखिए-‘पानी का कम प्रयोग कीजिए’ और ‘कम पानी का प्रयोग कीजिए’ वाक्यों में यूं विशेष अंतर नहीं लगता पर दोनों में जमीन-आसमान जैसा अन्तर है। पहले वाक्य में पानी के प्रयोग की मनाही की गयी है, जबकि दूसरे में मात्र पानी की मात्रा कम करने की नसीहत दी गई है। इन चन्द उदाहरणों से भाषा की शक्ति का अनुमान लगाया जा सकता है। भाषाविद् जानते हैं कि हर शब्द का एक स्थायीमान होता है। जैसे 3333 में 3 का ही अंक है, पर इकाई पर रखे अंक तीन (3) की कीमत जहां मात्र ‘तीन’ है वहीं हजार पर रखे अंक तीन (3) की कीमत ‘तीन हजार’ (3000) है। नौकर के नाम के बाद यदि ‘जी’ लगाया तो वह काम करना बंद कर देगा और स्वामी के नाम के बाद यदि ‘जी’ नहीं लगाया तो स्वामी या सेवायोजक नौकर को नौकरी से निकाल देगा।
शब्द की इतनी अधिक शक्ति सम्पन्नता के कारण ही शब्द को ‘ब्रह्म’ कहा गया है। ब्रह्म सृजन भी करता है, सहारा भी देता है और संहार भी करता है।
-ओम प्रकाश मंजुल
-कायस्थान, पूरनपुर, पीलीभीत-262122