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शाहीन बाग में विरोध है या एक षड्यंत्र

फारसी भाषा में शाहीन उस चिड़ियाँ का नाम है जो अपने शिकार को उड़ते हुए खाती है। आजकल दिल्ली का शाहीन बाग एक जंग का अखाडा बना हुआ है। दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन का हाल कुछ ऐसा ही है, जहां हो रहे प्रदर्शन की वजह से हर दिन लाखों लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। नोएडा और दिल्ली को जोड़ने वाले इस धरने के कारण लाखों लोगों को हर दिन दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। जिस दूरी को लोग आधे घंटे में तय करते थे अब उसी के लिए लोगों को तीन से चार घंटे का समय देना पड़ रहा है। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर विपक्ष लगातार भ्रम फैलाने की कोशिश कर रहा है। विपक्षी नेता अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे हुए हैं और इस पूरे प्रकरण में सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को उठाना पड़ रहा है।

प्रदर्शन में टेंट तम्बू से लेकर एक बड़ा मंच है। जहाँ से धरने पर बैठे लोगों को बार-बार सड़क पर डटे रहने की सलाह दी जा रही है। बताया जा रहा है प्रदर्शन में खाने पीने का भरपूर सामान है जिसे देखकर धरना कम पिकनिक का अड्डा ज्यादा नजर आता है। एक तरफ कहा जाता है भारत का मुसलमान गरीब है, दूसरी ओर शाहीन बाग में प्रदर्शन स्थल के बाहर जितनी भी दुकाने हैं उनसे किराया नहीं लिया जा रहा है। जबकि उन दुकानों का किराया एक से डेढ़ लाख रुपए के बीच है। यह देखकर साफ हो जाता कि यह कोई प्रदर्शन नहीं बल्कि प्रदर्शन की आड़ में चल रहा एक कारोबार है। प्रदर्शन में गले ना उतरने वाली सबसे बड़ी बात तो ये हैं कि धरना करने वाले लोग खुद को संविधान का प्रेमी और लोकतंत्र का रक्षक बता रहे हैं। लेकिन क्या बीच सड़क पर धरना देकर आम लोगों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर देने से क्या संविधान की रक्षा हो जाती है?

आजादी के तराने गूंज रहे है इन्कलाब जिन्दाबाद, भारत किसी के बाप का नहीं, हमें चाहिए आजादी आदि नारे सुनकर एक बारगी तो लगता है जैसे मंच पर बस महात्मा गाँधी और जिन्ना के आने भर की देरी हो। प्रदर्शन में शामिल एक महिला मीडिया को बता रही है कि बहुत हो गया कभी अखलाक तो कभी जुनेद, फिर धारा 370 और राम मंदिर अब सहन नहीं होगा। भला इस धरने में धारा 370 का क्या लेना, राम मंदिर इसमें कहाँ से आ गया?

नागरिकता कानून तो बहाना लगता है वरना फिलिस्तीन का हिसाब बंगाल में माँगा जा रहा है, कश्मीर का हिसाब जेएनयु में माँगा जा रहा है, अखलाक, राम मंदिर और धारा 370 का गुस्सा दिल्ली के शाहीन बाग में दिखाया जा रहा है।जेएनयु में छात्रों का आपसी विवाद होता है तो मुम्बई में इसका विरोध करने वालों के हाथों में फ्री कश्मीर का पोस्टर होता है। देखकर लगता है कि सब बड़ा प्रीप्लान किया जा रहा है। इस सबके पीछे बैठे वामपंथी बौद्धिक समूह और मीडिया के लोग इस खेल को बड़ी सावधानी से खेल रहे है, रामचन्द्र गुहा जैसे कांग्रेसी इतिहासकार धरने पर आकर मजबूती प्रदान कर रहे है।

नागरिकता कानून के विरोध में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का बेहताशा प्रयोग किया जा रहा है। चाहें विरोध लखनऊ में हो या दिल्ली के शाहीन बाग से लेकर सीलमपुर तक हर जगह एक नई सोची समझी देशभक्ति देखने को मिलेगी। इसके अलावा पुलिस पर पथराव होता है तो पथराव में शामिल लोगों को मासूम प्रदर्शनकारी बताया जाता है। अगर कोई प्रदर्शनकारी चोटिल हो जाता है तो कई चैनल है जो बताते कि अब्दुल अपनी दिहाड़ी मजदूरी करके वापिस लौट रहा था, पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। कय्यूम घर से ये कहकर निकला था कि अम्मी मैं पारले का बिस्किट लेने जा रहा हूँ लेकिन वह पुलिस की कारवाही में घायल हो गया। ऐसी न जाने कितनी कहानियाँ हर रोज प्रकाशित हो रही है। एक ऐसा माहौल तैयार हो रहा है जिसे देखकर लगता है कि सरकार वाकई जुल्म कर रही है।

चित्र साभार गूगल
चित्र साभार गूगल

मतलब नागरिकता कानून के नाम पर शाहीन बाग में चल रहे प्रदर्शन को लेकर ये लोग कोई अवसर नहीं जाने दे रहे हैं। कई दिन पहले कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान गये वहां से लौटकर इसी धरने में पहुंचकर संवेधानिक पद पर बैठे प्रधानमंत्री मोदी को कातिल बताया। पूरे विपक्ष की ओर से इस ओछी राजनीति के मुजरे पर वाह वाह होना अपने आप में सब कुछ कह जाता है। स्वार्थ की चासनी में लिपटी गंदी राजनीति इसके बावजूद हो रही है कि जब किसी भारतीय नागरिक से नागरिकता संशोधन कानून का कुछ लेना-देना तक नहीं है।

लगता है कुछ भी अपने आप नहीं हो रहा है सब कुछ कराया जा रहा है, जैसे वामपंथी और मुस्लिम संगठन एक होकर लोकतंत्र को गटकने की फिराक में हो? नागरिक कानून के नाम पर पहले देश भर में हिंसा आगजनी का माहौल तैयार किया गया। जब वह असफल होता दिखा तो दिल्ली के शाहीन बाग में चल रहा धरना प्रदर्शन इसी गेम का हिस्सा है, अगर यह जरा भी सफल रहा तो ऐसे प्रदर्शन देश भर में देखने को मिल सकते है। हाल ही मैं वीडियो आपने देखी होगी कि शाहीन बाग प्रदर्शन स्थल पर महिलाएं शिफ्ट में आती हैं और उन्हें 500 से 700  रुपए दिए जाने की बात हो रही हैं। वहीं, प्रदर्शन स्थल के बाहर जितनी भी दुकाने हैं उनसे किराया नहीं लिया जा रहा है। जबकि उन दुकानों का किराया एक से डेढ़ लाख रुपए के बीच है. स्वयं सोचिए इतनी बड़ी रकम कौन खर्च कर रहा है?

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