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सिर्फ महिला ही जिम्मेदार है?

अस्सी का दशक था मुम्बई में पहला राष्ट्रीय सम्मलेन हुआ था जिसमें महिला शोषण पर खुलकर विमर्श हुआ और रेप के सवाल को मूल मुद्दा बनाया गया था. इसके बाद महिलाओं के अधिकारों को कानून ने लम्बे चोडे रास्ते प्रदान किये. पर शायद वो रास्ते सवेंधानिक कागजों तक ही सिमटकर रह गये जिस कारण समाज की उसी संकरी सोच की गली में महिला अकेली खड़ी दिखाई दे रही है. हाल ही में एक बार फिर रेप की एक और घटना अपने उसी अंदाज में समाज के सामने आ खड़ी हुई और इस बार पीडिता कोई दलित, गरीब अल्संख्यक नहीं बल्कि मलयालम फिल्मों की एक जानी-मानी अभिनत्री है. इस अभिनेत्री का आरोप है कि शुक्रवार की रात चलती गाड़ी में दो ड्राइवरों समेत कुछ लोगों ने उनका यौन शोषण किया जब वो कोच्ची में एक फिल्म की डबिंग निपटाकर त्रिचूर लौट रही थीं.

पहले मुझे लगता था कि कम पढ़ी लिखी, आर्थिक स्तर पर कमजोर, सामाजिक और जातिगत रूप से दबी कुचली महिला ही रेप का शिकार होती है. पर पिछले कुछ समय से ऐसे मामले पढ़कर मेरी सोच धरी की धरी रह गयी जब पता चला कि आज आर्थिक स्तर पर स्वावलंबी, सामाजिक रूप से संम्पन पढ़ी लिखी महिला भी इसका शिकार हो रही है. चाहें इसमें 2013 मुंबई की शक्ति मिल कंपाउंड में एक महिला पत्रकार से हुए सामूहिक बलात्कार का मामला हो या 2009 नोएडा में 24 वर्षीय एमबीए छात्रा से 11 लोगों द्वारा सामूहिक बलात्कार मामला. हालाँकि नोएडा मामले में तो अदालत ने नौ आरोपियों को इस आधार पर बरी कर दिया कि असली गुनाहगारों की पहचान साबित नहीं हो सकी. हो सकता है कल मलयालम अभिनेत्री से रेप करने वाले भी बरी हो जाये पर आज सवाल यह है कि एक महिला के प्रति इतनी क्रूरता क्यों? क्यों आज अचानक उसकी बोद्धिक प्रखरता एक वर्ग को अखरने लगी इस कारण कि वो अपनी मेहनत के बल पर बिना गिडगिडाये, बिना हाथ फैलाये, बिना कोई समझोता किये संघर्ष कर सामाजिक और आर्थिक रूप से सबल हो गयी और आप निर्बल रह गये? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस दौड़ में महिला से पिछड़ने का रंज मनाकर यह साबित करने का प्रयास किया जा रहा है कि कितना भी ऊपर चली जा हम तो एक झटके में अपने नीचे ले आयेंगे! जितना भी आज वो अपने संघर्ष के नये आयाम गढ़ रही है उसके शोषण के उससे ज्यादा रूप बदल-बदलकर सामने आ रहे है.

इस ताजा मामले में अभिनेत्री मंजू वारियर ने पूछा है महिलाएं पुरुषों को जितना सम्मान देती हैं उतना सम्मान पाने की उम्मीद करना महिलाओं का अधिकार है. हर बार कुछ ऐसा होता है तो हम संवाद को कुछ हैशटैग तक सीमित कर देते हैं. फिर कुछ दिन बाद घटना को भुला दिया जाता है. क्या कभी ऐसा शोषण बंद होगा? अगर देखा जाये तो इनका सवाल ठीक है कारण  हर बार यही होता है आज समाज में जितना संवेदनशील लोग जन्म ले रहे है उससे कहीं ज्यादा संख्या क्रूर भोगी खड़े हो रहे है इस बार भी वही कहानी दोराही जाएगी. कम कपडे, अंगो का दिखावा, आधी रात, लड़की अकेली क्यों थी? फिर वही राजनैतिक टिप्पणी विपक्ष का सत्तारूढ़ दल पर टूटना, संसद में शोर और इसके बाद बलात्कारियों के मुंह पर कपडा डालकर मामले पर मिटटी डाल दी जाएगी. अपराधी जेल की बेरग में लेटकर चटकारे लेकर अपनी बर्बरता के किस्से सुनायेंगे तो मानवीय गिरावट राजनीति की भेंट चढ़कर कटघरे में खड़ी नजर आएगी!

हर बार मीडिया और कलम से ये पाप उजागर होते है. हमेशा नैतिक-अनैतिक कृत्यों का समाज को बोद्ध भी कराया जाता है. लेकिन सवाल यह है क्या उस तबके तक यह बात पहुँच पाती है? शायद नहीं! बस कुछ दिन तो चर्चा का विषय बनी रहती है इसके बाद वकील, पुलिस, पीडिता और अपराधी के बीच सुलह की सुबगुआहट सुनाई देने लगती है. यदि भाग्य से न्याय मिल भी जाये तो कौनसा समाज में पीडिता का रुतबा बढ़ जाता है? यदि कोई बुद्धिजीवी महिला इस तरह के मामलों की पैरवी जोर शोर से करने की हिम्मत भी करें तो उसे पत्रकार, जज या वकील की रखेल कहकर कमजोर कर दिया जाता है.

कई बार महिला समाज द्वारा भी अधिकांश झूठे रेप के मामलें दर्ज होते है. मुझे नहीं पता उनका आधार क्या होता है. लेकिन इतना जरुर है कि उन झूठे मामलें से कामवासना के रोगियों को इन्हीं तर्को के दम पर बचाने का कार्य होता है. या कहो इन झूठे मामलों का उदहारण देकर हमेशा सच्चे मामलों को दबाया जाता है. इसमें कहीं न कहीं झूठा मामला दर्ज करने वाली एक महिला को भी जरुर सोचना होगा कि कही उसके इस झूठ से किसी के सच का गला तो नहीं घोटा जा रहा है! इस कारण भी एक ऐसी सोच विकसित कर दी गयी जैसे इस सबके लिए सिर्फ महिला ही जिम्मेदार है.

दामिनी के बाद क्या रेप बंद हुए? उसके बाद तो बुलंदशहर एन.एच 91 पर माँ बेटी को परिवार के सामने रोंदा गया और अब मलयालम अभिनेत्री के साथ आखिर यह कब तक चलेगा? एक महिला ने आपकी जिन्दगी में कौनसा हस्तक्षेप किया जो आप हर रोज उसके जीवन में हस्तक्षेप कर रहे है! बस यही कि उसने जन्म दिया. या यह कि उसने सीने से लगाकर पालन पोषण किया? आखिर वो अपने इस स्नेह अपनी इस ममता का मूल्य कब तक चुकाएगी? कोई निश्चित अवधि, कोई समय, कोई साल, कोई दिनांक ताकि फिर उसे लगे कि चलो इस अँधेरी रात के बाद तो एक उजली सुबह होगी..

Rajeev Choudhary

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