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हमारे गौरवशाली इतिहास का एक प्रेरणादायक पृष्ठ

डॉ विवेक आर्य

 

भारत विश्व का संभवत एक मात्र ऐसा देश होगा जहाँ का इतिहास उस देश के इतिहासकारों ने नहीं अपितु विदेशी इतिहासकारों ने लिखा है।  इन पक्षपाती इतिहासकारों ने गौरी , गजनी और अकबर को महान लिखकर भारतीयों को हीन भावना से ग्रस्त करने का प्रयास किया । भारतीय इतिहास में अनेक ऐसे प्रसंग मिलते है जिन्हें पढ़कर पाठक अपने हमारे देशभक्त वीरों पर गर्व करेंगे। उन महान वीरों में से एक हथे नरसिम्हा देव प्रथम। आप ओड़िसा के शासक थे। सन 1243 में बंगाल के मेदिनापुर में आपका बंगाल के शासक तुगहन खान से सामना हुआ। युद्ध रणनीति में कुशल राजा ने अपनी सेनाओं को एक घने जंगल में छिपा दिया और मुसलमानों की सेना की प्रतीक्षा करने लगे। तुगहन खान आश्वस्त हो गया कि नरसिम्हा देव की सेना भाग गई है।  इसलिए उसने अपनी सेना को आराम करने का आदेश दे दिया। छापामार रणनीति का पालन करते हुए तुगहन खान ने आराम करती सेना पर नरसिम्हा देव ने हमला कर दिया। उसकी सेना में भगदड़ मच गई। बड़ी कठिनाई से तुगहन खान ने अपनी भागकर जान बचाई।

सन 1247 में बंगाल सूबे का नया गवर्नर इख़्तियार नियुक्त हुआ। उसने अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए फिर से ओड़िसा पर चढ़ाई कर दी। उसने पूरी का मंदिर घेर लिया। इस बार नरसिम्हा देव ने बड़ी दूर की रणनीति बनाई। उन्होंने अपना संदेशवाहक भेज कर इख़्तियार को सन्देश दिया कि उन्हें अपनी हार स्वीकार है। वे सामूहिक रूप से इस्लाम स्वीकार करने और पूरी के मंदिर को सौंपने के लिए तैयार है। तुर्क सेना यह सुनते ही खुशी के मारे नशे में डूब गई। इतने में पूरी के मंदिर की घंटियां बजने लगी। यह राजा नरसिम्हा देव का गुप्त ईशारा था। ओड़िया सेना ने अप्रत्याशित छापामार हमला कर इख़्तियार और उसकी सेना का बंगाल तक खदेड़ दिया। इस विजय के उपलक्ष में राजा नरसिम्हा देव ने कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण कर इस विजय को चिरस्थायी बनाया। इस मंदिर में राजा नरसिम्हा देव को हाथी पर बैठ कर एक विदेशी मेहमान से जिराफ रूपी उपहार लेते हुए दिखाया गया है।

मुसलमानों ने दो बार एक ही हिन्दू राजा से मुँह की खाई। इतिहास की यह प्रेरणादायक घटना न किसी इतिहास पुस्तक में देखने को मिलती है। न ही इस पर कोई वृत्तचित्र बना है। खेद है ऐसे प्रेरणादायक एतिहासिक घटना के स्थान पर हमें अकबर महान आदि को पढ़ाया जाता है।

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