विश्व के सभी विद्वान महापुरुष ऋषि, संन्यासी, योगी, सभी एक स्वर से यह स्वीकार करते है कि विश्व के पुस्तकालयों में सबसे पुराना ग्रंथ वेद है। जैसे घर में वृद्ध का आदर होता है। उसी भांति सृष्टि के ज्ञान में वयोवृद्ध होने के कारण वेद के निर्देश सभी के लिए कल्यण का कारण है। वेद के अतिरिक्त अन्य जितने भी तथाकथित धर्मग्रंथ कहे जाते है। 1. वे सभी व्यक्तियों की गाथाओं से भरे हैं। २. पक्षपात और देशकाल के प्रभाव से युक्त है। 3. विज्ञान और सृष्टिक्रम की प्रत्यक्ष बातों के अनुरुप नहीं है। विरोधाभास है। ४. मानव मात्र के लिए समान रुप से कल्याणकारी मार्ग का निर्देशन नहीं करते। ५. विशिष्ट व्यक्तियों द्वारा मजहब वर्ग विशेष के लिए बनाए गए हैं।
किन्तु वेद इन सभी बातों से ऊपर उठकर है।
1. प्रत्येक मनुष्य को चाहे वह किसी भी जाति वर्ग मजहब सम्प्रदाय को हो सबको समान समझकर सही मार्ग का निर्देश करता है। २. वेद सत्य को सर्वोपरि मानता है। ३. विज्ञान, युक्ति, तर्क और न्याय के विपरीत उसमें कुछ भी नहीं है। ४. वेद मे किसी देश व्यक्ति काल का वर्णन न होकर ऐसे शाश्वत मार्ग का निर्देशन है। जिससे मस्तिष्क की सारी उलझी हुई गुत्थियाँ सुलझ सकती है। ५. वेद लोकिक, पारलौकिक, उन्नति के लिए समान रुप से प्रेरणादायी है। वेद की शिक्षाएँ प्रत्येक मनुष्य के चहुँमुखी विकास के लिए है। इसीलिए आधुनिक युग के महान द्रष्टा और ऋषि महर्षि दयानंद जी ने कहा था वेद सब सत्य विद्याओं का पुस्तक है और यह भी बताया कि प्रत्येक श्रेष्ठ बनने के इच्छुक व्यक्ति को वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना परम धर्म समझकर सुख-शांति और आनंद के मार्ग पर चलने का यत्न करना चाहिए।
मनुष्य जो इस भूमि का भोक्ता है निरन्तर अशांति, चिंता और पीड़ा के ग्रस्त में गिरता जा रहा है। धर्म के नाम पर अधर्म के प्रसार ने विचारकों के मतिष्क में धर्म के प्रति तीव्र घृणा भर दी है। ऐसी विषय स्थिति में संसार को विनाश और असमय मे मृत्यु से बचाने के लिए लुप्त होती हुई महान ज्ञान राशि वेद का पुनरुद्धार कर महर्षि दयानंदजी ने मानवता को अमर संजीवनी प्रदान की धर्म को जीवन का अनिवार्य अंग बताया और स्पष्टतया यह घोषणा की कि जीवन का उत्थान निर्माण और शांति आनंद का सबसे बढ़िया मार्ग केवल वेद की ऋचाओं में वर्णित है।
आज युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है कि संसार के मस्तिष्क, बुद्धिजीवी, राजनीतिज्ञ यह अनुभव करें कि विज्ञान और भौतिकता का यह प्रवाह संसार से सत्य और शांति, आनंद को सर्वथा ही समाप्त कर देगा। अत: इस पर हम सभी गंभीरता से सोचे और विचारें वेद के अनुसार-1. यह शरीर ही सब कुछ नहीं इसमें जो जीवन तत्व आत्मा है। उसकी भूख, प्यास, की चिंता किये बिना मनुष्य कभी भी मनुष्य नहीं बन सकता है। 2. संसार में एक ईश्वर है, एक धर्म है सत्य। वह सत्य सृष्टिक्रम विज्ञान सम्मत और मानव मन को आनंद देने वाला है। मनुष्य की केवल एक जाति है। मनुष्य के बीच कोई भी जाति-वर्ण-वर्ग देश की दीवार खड़ी करना घोर उपराध है। जो भी इन तथ्यों पर विचार करेंगे वे निश्चित रुप से इस निष्कर्ष पर पहुँचेंगे कि केवल वेद में ही ऐसा ज्ञान है। जो उक्त मान्यताओं को पुष्ट करता है।
अत: धरती को स्वर्ग बनाने के लिए वेद का प्रचार प्रसार और उस पर आचारण करना परम आवश्यक है। वेद मनुष्य मात्र के लिए ऐसा मार्ग बताता है जिस पर चलकर जन्म से मृत्युपर्यन्त उसे कोई भी कष्ट न आए आनन्द और शांति जो मनुष्य की स्वाभाविक इच्छाऐं है उनको प्राप्त कर दुखों से छुटकारा पाने का सच्चा और सीधा मार्ग वेद के पवित्र मंत्रों में स्पष्ट रुप से वर्णित है। वेद का प्रथम आदेश है कि प्रत्येक मनुष्य कम से कम 100 वर्ष तक सुखी होकर जिए यजु. 40/2 के मंत्र में है। किन्तु मनुष्य 100 वर्ष या उससे अधिक सुखमय जीवन में जिएँ तो कैसे? वेद कहता है यजु. 40/1 के मंत्र में बताया गया है। धन के अच्छे उपयोग के लिए सामवेद 3/8/8 में बताया गया है।
सफल जीवन के लिए कौन से कर्म उपयोगी है यह वेद में अनेक स्थलों पर बताया गया है। जो यजुर्वेद के 25/15 में व 17/46 में है। व्यक्ति का प्रथम काम तो अपने शरीर को स्वस्थ रखना है। जैसे विश्व में योग क्रांति के सूत्रपात योग ऋषि स्वामी रामदेवजी योग द्वारा विश्व के मानव को स्वस्थ होना बता रहे है।
स्वामी दयानंदजी ने अंहिसा का अर्थ-वैर का त्याग किया है? मैं तो किसी का शत्रु नहीं परन्तु यदि कोई मुझसे शत्रुता करता है तो मुझे बताना चाहिए कि इस विशाल दुनिया में जीने का मुझे भी अधिकार है। इसी आशय की प्रार्थना यजु. के 36/18 के मंत्र में है।
पारिवारिक जीवन पति-पत्नी का व्यवहार संतान का माता-पिता के प्रति व्यवहार भाई बहनों में आपस का व्यवहार आदि अथर्ववेद के 3/30/2-3 के मंत्र में है। ईश्वर की गरिमा के संबंध में वेद मंत्र बहुमूल्य शिक्षा देता है। अथर्ववेद 10/8/32 और ऋग्वेद में 1/153/20 के मंत्र में है।
वेद के शब्दों में परमदेव परमात्मा का काव्य ने बुढ़ा होता है न मरता है। इसी तथ्य को प्रकट करते हुए सामवेद में 3-10-3 में कहा है। वेद का संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए एक ही आदेश है कि वह मनुष्य बने यह ऋग्वेद में 10/53/6 में है। आज कोई कम्यूनिस्ट बनता है तो कोई ईसाई। कोई मुसलमान। कोई बोद्ध-कोई सिख, कोई हिन्दू, कोई जैन, कोई पारसी आदि। किन्तु संसार में केवल वेद ही एकमात्र ऐसा धर्मग्रन्थ है। जो उपदेश देता है कि और कुछ नहीं तू मनुष्य बन क्योंकि मनुष्य बनने पर तो सारा संसार ही तेरा परिवार होगा इस उपदेश का सार यह भी है कि वेद संसार के सभी मनुष्यों की एक ही जाति मानता है। मनुष्य जाति, मनुष्य-मनुष्य के बीच की सारी दीवारें मनुष्य को मनुष्य से अलग कर विवाद, युद्ध-द्वेष, ईर्ष्या, वैमनस्ता आदि उत्पन्न करती है। वेद शांति के लिए इन सभी दिवारों को समाप्त करने का आदेश देता है। सभी में मित्रता का आदेश देता है। वेद कहता (मित्रस्य-चक्षुषां समीक्षा रहे) सबको मित्र की स्नहे सनी आँख से देख) कितनी उदात भावनाएँ है। प्राणी मात्र से प्यार का कितना सुन्दर उपदेश है।
एकता और सह अस्तित्व के मार्ग पर चलने की प्रेरणा करता हुआ वेद कहता है। तुम्हारी चाल, तुम्हारी वाणी, तुम्हारे मन सभी एक समान हो इस उपदेश पर चलें तो फिर धरती कैसे स्वर्ग न बने।
मनुष्य मात्र की एकता के लिए वेद का यह भी आदेश है कि हमारे बीच में कोई देश जाति वर्ग, मजहब की दीवार मध्य न हो सभी कुछ हम मिलकर आपस में बाँटकर उपभोग करें तो फिर अभाव कैसे रहे? अशांति और द्वेष के वर्तमान वातावरण में मनुष्य एवं समस्त प्राणीमात्र के कल्याण के लिए आज यह परमावश्यक है कि सभी विचारक विद्वान और राजनीतिज्ञ वेद के महत्व को समझे और उसके आदेश पर आचरण करें।
वेद के मार्ग पर चलने से ही यह धरती स्वर्ग बन सकती है। यह एक ऐसा सत्य है जिसे सभी को स्वीकार करना ही होगा। आईये हम सभी वेद को जानने और उस पर आचरण करने का वृत्त ले वेद ज्ञान का अथाह भंडार है। उसे जानने की भावना हमारे हृदय में उत्पन्न हो सके। प्रभु हमें शक्ति और प्रेरणा दे कि हम सत्य ज्ञान वेद को जो हीरे मोती जवाहरत में भरा पड़ा है। जन-जन को बतायें व उसे हम स्वयं लुटे व औरों को लुटाये हम सत्य ज्ञान वेद को जनमानस तक पहुँचाकर शांति और आनंद का साम्राज्य सर्वत्र विस्तृत कर सके। इसलिए प्रतिदिन वेद का स्वाध्याय करें। वेद के आदेशों पर खुद चलेंगे। व वेद का संसार में प्रसार-प्रसार करें। म. प्र. व भारत के प्रत्येक मंदिरों में वेदों की स्थापना कीजिए व मंदिरों में रात्रि 8 बजे वैदिक पाठशालायें खोलीयें वेद का प्रचार-प्रसार ही संसार को शांति और आनंद के मार्ग पर चला सकता है। वेदों के ज्ञान से आंतकवाद का सफाया जड़मूल से समाप्त किया जा सकता है। क्योंकि आंतकी बनाने हेतु लोभ, लालच, एवं धर्मान्धता के पाठ युवा पीढ़ी को पढ़ाया जाता है। इससे वे आंतकी बनते हैं। वेद ज्ञान से वैदिक विचारधारा होने पर युवा पीढ़ी लोभ, लालच एवं पाखंडता, धर्मान्धता, से परे होकर गलत कार्य करने हेतु यदि कोई एक करोड़ रुपये के धन का भी लालच दिया जावे तो भी वैदिक विचारधारा वाली युवा पीढ़ी को करोड़ों रुपये की ढेरी को एक ठोकर में उड़ाने की क्षमता पैदा हो जाती है।
लोभ-लालच एवं धर्मान्धता के नाम पर दिये हुए धन से चाहे वह करोड़ों रुपयों में होवे गलत कार्य के लिए लोभ लालच नहीं करेगें एवं राष्ट्रीयता व परोपकार्य की भावना जागेगी। आंतकी विचारधारा द्वारा अपनी जान जोखिम में डालकर दुसरे की जान लेना लेकिन वैदिक विचारधारा द्वारा अपनी जान जोखिम में डालकर दुसरे की जान बचाना। यह जमीन आसमान का अंतर है। वैदिक विचार मंच चाहता है संसद द्वारा एवं विधानसभाओं द्वारा पाश्चात्य सभ्यता की गुलामी के समय की दोषयुक्त शिक्षा प्रणाली को बदलकर वैदिक विचारधारा के अनुकूल शिक्षा प्रणाली को देश के सभी शासकीय, अशासकीय विद्यालयों मे लागू की जावे। विधानसभा एवं संसद में गायत्री मंत्र और शांतिपाठ अवश्य किया जावे। दुर्भाग्य से हम आज उस परमात्मा के, उस पवित्र वेद ज्ञान से दूर हो गये हैं। इसी कारण विश्व दुखभय चिंता एवं रोग से ग्रस्त होकर अशांत है वेदों की दर्शन शास्त्रों एवं उपनिषदों की शिक्षा विद्यालयों में अनिवार्य की जावे वैदिक विचारमंच द्वारा मंदिरों में प्रात:काल गांव वालों के स्वयं द्वारा यज्ञ एवं वेद स्थापना कर रात्रि 1 घंटा हेतु वैदिक पाठशाला खोली जा रही है। उनमें पूर्ण रुप से वैदिक विचार मंच को शासन द्वारा सहयोग दिया जावे।