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जेएनयू शिक्षण संस्थान या देशद्रोह का अड्डा?

दिल्ली की जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी फीस विवाद गहराता जा रहा है। जहां कुछ लोग यूनिवर्सिटी को बंद करने की सलाह दे रहे हैं वही कई लोग इसकी फीस वृद्धि को गलत बता रहे हैं। तो कई लोग इस तर्क के आधार पर इसे सही बता रहे हैं कि केवल 10 रुपये में कोई कैसे हॉस्टल में रह सकता है। उनके तर्क के अनुसार अगर हॉस्टल फीस को 10 से बढ़ाकर 300 रुपये किया गया है तो इसमें इतनी हाय-तौबा मचाने की क्या जरूरत है। यह कोई बड़ी बात नहीं है, क्योंकि कई सालों से हॉस्टल फीस में कोई वृद्धि नहीं हुई थी। जबकि छात्र हॉस्टल फीस में बढ़ोतरी के खिलाफ पिछले कई दिनों से प्रदर्शन कर रहे हैं।

पिछले दिनों जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फीस की वृद्धि गई थी जिसे अगले शैक्षणिक वर्ष से लागू करने का ऐलान किया गया है। उसमें जेएनयू के छात्रावासों में रहने वाले छात्रों के लिए फीस लगभग 27,600-32,000 रुपये वार्षिक से लगभग 55,000-61,000 रुपये वार्षिक तक होने का अनुमान है। हालांकि अब इसमें कुछ कटौती का ऐलान किया गया है।

इसी कशमकश का नतीजा है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय ने एक बार फिर मीडिया के साथ ही आम लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। जेएनयू के छात्रों का संसद मार्च हुआ यह मार्च रात को जाकर तब खत्म हुआ जब पुलिस ने हिरासत में लिए गए छात्रों को रिहा किया। छात्रों की ओर से कहा गया कि हमारा विरोध खत्म नहीं हुआ है लेकिन पुलिस द्वारा हिरासत में लिए गए छात्रों को रिहा किए जाने के बाद हम वादे के अनुसार कैंपस लौट रहे हैं। इस विरोध का भविष्य क्या होगा यह बाद में तय किया जायेगा।

असल में आज जेएनयू की बात आते है दिमाग में सबसे पहले चरित्रहीनता और राष्ट्रद्रोह की बातें तैरने लगती हैं। वर्षों तक अच्छी शिक्षा के लिए ख्याति बटोरने वाला जेएनयू आज लोगों की नजर में लाल सलाम, देशद्रोह का अड्डा बना हुआ है। तो इस बढ़ी फीस के विरोध में मार्च करने वाले छात्र लोगों की नजर में कोई खास महत्व नहीं रखते लोगों को लगता है अगर फीस 300 से बढाकर तीन हजार भी कर दी जाये तो हमें इससे कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला। जेएनयू की ये छवि क्यों बनी इसके लिए मीडिया जिम्मेदार है या छात्र?  इसकी थाह में जाना आज बेहद जरुरी है।

जेएनयू का पिछले कुछ सालों यदि अतीत देखा जाये तो लाल इंटों वाली, बिना पलस्तर की उन बिल्डिगों के पीछे जो जो हुआ उसे लेकर इतनी चर्चा हुई कि आज लोगों को जेएनयू शिक्षण संस्थान से ज्यादा सेक्स और राजनीति का अड्डा नजर आता है। इसकी शुरुआत हुई साल 2009 में जब जेएनयू में साबरमती और ताप्ती हॉस्टल में रैगिंग को लेकर बवाल हुआ था। इस घटना से पहले तक जेएनयू की काफी इमेज सुरक्षित थी।

इसके बाद साल 2010 में छत्तीसगढ़ के दांतेवाडा जिले में माओवादियों द्वारा किये हमले में सीआरपीएफ के 76 जवान शहीद हो गये। इस घटना के बाद देशभर में गुस्से की तीव्र लहर दौड़ उठी थी तो वहीं कहा जाता है जेएनयू’ में इस हमले के बाद जल्लोष शुरू हुआ था। इंडिया मुर्दाबाद, माओवाद जिंदाबाद’ के नारे यहाँ के कुछ छात्र दे रहे थे। इससे जेएनयू का माहौल काफी गरम हुआ था।

इसके बाद जैसे देश में मोबाइल क्रांति का दौर आया तो इसी दौरान जेएनयू से एक सेक्स टेप वायरल हुआ था। कथित तौर पर जेएनयू के एक छात्र और छात्रा ने वहां के हॉस्टल में शारीरिक संबंध बनाये थे और उनका ये वीडियो कैंपस में वायरल हो गया। इसके बाद इंटरनेट पर जेएनयू सेक्स टेप  सर्च लिस्ट में ऊपर आने लगा। एक प्रसिद्ध यूनिवर्सिटी, जहां से स्कॉलर निकलते हैं और जहां पर लोग पढ़ना चाहते हैं, वहां से ऐसा टेप सामने आने से लोगों के लिए आश्चर्य और घृणा की बात बन गई।

इन दो घटनाओं के बाद लोगों की नजरों में जेएनयू छवि बदलने लगी थी। देश की आम जनता ने इस बात को बिलकुल किनारे कर दिया यह घटनाएँ महज एक अपराध थी कि किसी ने जवानों के बलिदान का जश्न मनाया या किन्हीं दो छात्र छात्रा का वीडियो बनाया गया और उसे वायरल किया गया। जनता की नजर में ये घटनाएँ नैतिक अपराध बन गयी थी। ये वो दौर था जब एमएमएस खूब बनते थे और फैलाये जाते थे। कैमरे वाले फोन तब सबके हाथों में नहीं पहुंचे थे और न ही इंटरनेट इतना सस्ता था।

इसके बाद दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया रेप के रूप में जघन्य कांड हुआ और दिल्ली के अन्य छात्र छात्राओं के साथ जेएनयू के छात्र-छात्राएं भी सड़कों पर उतरे। टीवी और सोशल मीडिया पर पुलिस और नेताओं से झगड़ती लड़कियां लोगों को नजर आईं। भले ही निर्भया के लिए लोगों के मन में सम्मान था पर एक पितृसत्तात्मक समाज को चिल्लाती-लड़कियां पसंद नहीं आईं। जेएनयू की लड़कियों को एक ‘महिला’ नहीं समझा गया और उन्हें एक पतित नारी के तौर पर देखा जाने लगा। क्योंकि इससे पहले जेएनयू वीडियो देश में घूम चुकी थी। उन्हें इस नजरिए से देखा गया कि जेएनयू की लड़कियां तो कम कपड़े पहनती हैं। सिगरेट भी पीती है और पुरुषों से झगड़ती भी है। उनके पुरुष मित्र भी है और वो उन्हें छोड़ भी देती है ऐसी न जाने कितनी कहानियां धीरे-धीरे सोशल मीडिया पर फैलने लगीं।

इसके बाद एक ऐसी घटना घटी की जेएनयू का पूरा चेहरा ही बदल गया। साल 2014 में एक लड़के और लड़की के खुलेआम प्रेम का प्रदर्शन को जब हमारे समाज ने इसे भारतीय संस्कृति एवं नैतिकता से जोड़ा तो इस पर शर्मिदा होने के बजाय उस जोड़े के पक्ष में जेएनयू के छात्र-छात्राएं उठ खडे हुए और किस ऑफ लव प्रोटेस्ट के नाम सड़कों पर प्रेमी-प्रेमिकाएं एक दूसरे को चूमते नजर आए।

इस घटना ने भी जेएनयू के छात्र-छात्राओं की इमेज को पब्लिक के दिमाग में धूमिल किया। जेएनयू जो मुक्त विचारधारा के लिए जाना जाता था वह खुलकर वामपंथ के लाल किले के रूप में परिवर्तित हो गया। 2014 में ही नरेंद्र मोदी की सरकार बनने के बाद वामपंथ ने खुलकर खेलना शुरू किया और जेएनयू को एक विश्वविद्यालय के बजाय अपने राजनितिक अड्डे के तौर पर इस्तेमाल करने लगा। इसके बाद साल 2016 में अफजल गुरु की फांसी की बरसी जेएनयू में मनायी गयी। देश विरोधी प्रदर्शन के दौरान जेएनयू के छात्र-छात्राओं पर टीवी चैनलों ने ‘टुकड़े टुकड़े गैंग’ होने का तमगा लगा दिया।

 

उसी साल जेएनयू के 11 अध्यापकों ने दि डेन ऑफ सेसेशनिसम एंड टेरोरिजम नाम से दौ सौ पृष्ठों का एक डाक्यूमेंट तैयार किया। इसमें कथित तौर पर बताया गया था कि कैसे जेएनयू में सेक्स और ड्रग्स की भरमार है। इंडिया टुडे की इस रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर अमिता सिंह ने कहा कि जेएनयू के मेस में सेक्स वर्कर्स का आना सामान्य बात है।

इस रिपोर्ट के आने के बाद जनता की सारी कल्पनाओं पर मुहर सी लग गई। इसके बाद कन्हैया कुमार फिर शेहला राशिद, उमर खालिद इत्यादि की तमाम तरह की तस्वीरें वायरल हुई और जेएनयू की शाख देशभर में गिर गयी। इसी दौरान सोशल मीडिया पर यहाँ तक कि खबरें चली कि मकान मालिक जेएनयू के छात्र छात्राओं को किराये पर कमरें देने से इंकार कर रहे है। कहने को अतीत में भले ही जेएनयू से कितने सरकारी अधिकारी और रिसर्चर निकले भले हो, इकॉनमिक्स में नोबल प्राइज लाने वाला इस संस्थान से निकला हो या यहाँ से देश के कई बड़े नेता निकले हो। लेकिन यह बीते दौर की बात हो गयी आज वर्तमान में लोगों के जेहन में जेएनयू की इमेज में किसी पोर्न साइट और देशद्रोह के अड्डे से कम नहीं है। इसी का परिणाम है कि फीस वृद्धि के विरोध में सडक पर चिल्लाते छात्र छात्राएं लोगों की संवेदना नहीं बटोर पा रहे है।

राजीव चौधरी

जेएनयू शिक्षण संस्थान या देशद्रोह का अड्डा?

 

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