Categories

Posts

क्या सफेद यीशु काले लोगों की फरियाद नहीं सुनता..?

भले ही मुफ्त की चीज लोगों को बड़ी प्यारी लगती हो लेकिन कई बार मुफ्त की चीज भी आफत बन जाती है जिसका खामियाजा पीढ़ियों तक भुगतना पड़ता है। लेकिन हमारे देश के बहुत सारे लोग ऐसे है अगर इन्हें मुफ्त में सांप भी मिल जाये तो इंकार नहीं करेंगे।

मुफ्त की बीमारी के चक्कर में एक बार दक्षिण अफ्रीकी राजनेता डेसमंड टूटू ने लिखा था कि जब ईसाई मिशनरी लोग अफ्रीका आये, तो उनके पास बाइबल थी, जिसे वे मुफ्त में बांट रहे थे, और हमारे पास थी जमीन। उन्होंने कहा कि हम तुम्हारे लिए मुफ्त में प्रार्थना करने आये हैं। हमने अपनी आंखें बंद कर लीं और जब खोलीं, तो हमारे हाथ में बाइबल थी और उनके हाथ में हमारी जमीन।

नतीजन आज अफ़्रीकी लोग किसान से मजदूर बनकर रह गये और बाइबल बाँटने वाले जमींदार। किन्तु फिर भी अफ्रीकी लोग एक मजबूत धारणा और विश्वास के साथ घुटनों के बल बैठकर इस आस में जीवन जी रहे है कि यीशु मसीह उन्हें गरीबी, भुखमरी और पीड़ा से बचाने आएगा। लेकिन किसी को यह सोचने की फुरसत नहीं है कि क्या यह सफेद यीशु बहरा है, या फिर रंग भेद के कारण काले अफ्रीकियों की आवाज अनसुनी कर रहा है?

हाँ अगर उसने अफ्रीकी लोगों को छोड़ दिया, जिन्हें पादरियों ने बाइबल बांटते सभी क्लेशों से बचाने का वादा किया था तो अफ्रीकी समुदाय का कुछ भला जरुर हो सकता है। इसलिए अफ्रीकियों को इस सपने से बाहर आना होगा यीशु उनकी भलाई सोच रहा है। वरना एक दिन उन्हें जागने पर एहसास होगा कि उन्हें एक झूठ बेचा गया था कि वह अफ्रीकियों को इस दुनिया की दुष्टता से बचाने के लिए यीशु आ रहा है। वह न अब आ रहा है और न ही बाद में आएगा।

अफ्रीकियों को समझना होगा कि यीशु के अनुयायी गोरे लोग है और वह यीशु के आने के बाद भी काले लोगों को गुलाम बनाकर जीवन जीते रहे है, वर्षों पहले जब दुनिया एक दूसरे समुंद्री तटों से जुड़ने लगी तब यूरोप के पादरी अफ्रीका समेत अन्य हिस्सों में गये और ईसाइयत का प्याला पिलाने लगे। यूरोपीय लोग जिस धर्म को लेकर अफ्रीका पहुंचे,  उसमें यीशु का वादा  है कि वह सभी माध्यमों से उनकी समस्या हल कर रहा है।

अफ्रीकी समुदाय को समझना होगा उनकी समस्या केवल यीशु है। आज वहां यूरोपीय पादरी जीसस के सामने आकर उन्हें बचाने के लिए घुटने नहीं टेक रहे हैं बल्कि वे अफ्रीका के संसाधनों को लेने में व्यस्त हैं और अफ्रीकी समझ रहे है कि वे लोग यीशु मसीह के प्रचार और सुसमाचार को अफ्रीकी लोगों तक पहुंचा रहे हैं।

लगभग 350 सालों अफ्रीकी अपनी समस्याओं को हल करने के लिए यीशु से प्रार्थना कर रहे है। अभी तक इन  वर्षों से, यीशु ने कोई उत्तर उन्हें नहीं दिया है। शायद वह अफ्रीका से संसाधनों की चोरी करने के लिए यूरोपीय और अमेरिकियों को अधिक आशीर्वाद देने में व्यस्त है।

अब अफ्रीकी लोगों को डराया जा रहा है कि वे नरक जाएंगे और उनके वर्षो से परोसे झूठ पर भरोसा करने करके स्वर्ग जायेंगे। जबकि अफ्रीकियों ने हमेशा पुनर्जन्म में विश्वास किया है, और ईश्वर का विधान भी यही है। हाँ इसके अलावा यदि अफ्रीकियों को स्वर्ग ही जाना है, तो उन्हें उस स्वर्ग का निर्माण अपनी भूमि पर करना होगा, न कि काल्पनिक स्वर्ग के भरोसे जीना होगा।

अफ्रीकी समुदाय को सोचना होगा कि आप इन दिनों यूरोप में कितने चर्चों को देखते हैं? यदि यूरोपीय लोग जो यीशु मसीह को आपके पास लाए थे,  वही अब दूर भाग रहे है तो अफ्रीका क्यों यीशु का ख्याल रखे? प्रश्न यह भी है कि ? यदि यीशु इतना प्रभावी था तो खुद को दुःख, पीड़ा मृत्यु से क्यों नहीं बचा पाया?

अफ्रीका में आज अनेकों स्वास्थ्य और वित्तीय चुनौतियां बनी हुई है। ईसाई धर्म और इस्लाम से पहले अफ्रीका का ऐसा हाल नहीं था उनके अपने धर्म थे जो कई तरह के प्रचलित थे। जिनमें से आज भी कुछ धर्म प्रचलन में है। लेकिन अब इस्लामिक कट्टरता और ईसाई वर्चस्व के दौर के चलते उनका अस्तित्व लगभग खत्म होता जा रहा है। अफ्रीका में वूडू जाति के लोग आज भी प्रकृति के पंचतत्वों पर विश्वास करते हैं। जैसा की भारत की वैदिक परंपरा में माना जाता है। इसलिए अब अफ्रीकियों को अपने भाग्य को अपने हाथों में लें लेना चाहिए। उनके पूर्वजों के प्राचीन तरीकों लिए वापस लौटें और खुद को बचाएं। वरना अफ्रीका को गोरे यीशु के नाम पर तथा इस्लाम वाले अल्लाह के नाम लगातार उनके संसाधनों दुहते रहेंगे। कोई पैगम्बर उन्हें बचाने अफ्रीका नहीं आएगा। हाँ अफ्रीका में पर्याप्त मानव और प्राकृतिक संसाधनहैं अगर वह उन्हें बचा ले तो बचे रह सकते है। वरना श्वेत रंग के यीशु और हरे रंग के झंडो में एक दिन अफ्रीका का भविष्य दफन हो जायेगा।

राजीव चौधरी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *