अर्थ -(मातरिशवन ) वायुवत गमनागमन करने वाले जीवात्मन् (यावत मात्रम ) जितने काल तक (उषस: प्रतीकम) उषा देवी का दर्शन होवे और (सुपर्णय: वसते) उड़ने वाले पक्षी उसके मुख को आछादित करने लगे (तावत) तब तक (अवरः ब्राह्मणः) ब्राह्मणों का एक वर्ग (निषीदन) बैठकर (यज्ञम् आयन) यज्ञवेदी के समीपस्थ हो (उपदधाति) वैश्वानर सूक्त का पाठ या ईश्वर स्तुति करता हैं इस मन्त्र का अभिप्राय जानने के लिये इसी सूक्त के सत्रहवें मन्त्र को जानना आवश्यक हैं जंहाँ अलंकारिक रूप में अग्नि और वायु का संवाद दिया हैं – यत्रा वदेत अवरः परश्च यज्ञन्यों: कतरो नौ वि वेद आ शेकुरित्स धमदं सखायो नक्षन्त यज्ञं क इदं वि वोचत्।। ऋ १०. ८८. १७
यत्र जिस समय (अवरः) पृथ्वी में स्थित अग्नि और (परः) आकशस्थ वायु (वदेते) आपस में विवाद करते हैं (नौ) हम दोनों में (कतरो यज्ञन्य:) यज्ञ में मुख्य कौन हैं जो (वि वेद) यज्ञ के तत्वों, रहस्यों को विशेष रूप से जानता हैं। (सख्याय सधमादं आ शेकु:) जहाँ ऋत्विक मित्रवत् यज्ञ को पूर्ण विधि – विधान से करने में समर्थ हैं यह (क इदं वि वोचत्) कौन निर्णय करेगा ? यज्ञ में जो घृत , समग्री की आहुतियाँ दी जाती हैं अग्नि उन्हे सूक्ष्म कर आकाश में फैला देता हैं और वायु उस सुगन्धित द्रव्य को देशान्तर में ले जाता हैं। यही कारण हैं कि यज्ञ से दूर – देशस्थ प्राणियों को भी लाभ मिलता हैं। इन दोनों में मुख्य कौन हैं , इसका निर्णय उन्नीसवें मन्त्र में दिया हैं। संक्षेप में कहें तो अग्नि की प्रधानता हैं। वायु में यह सामर्थ्य नहीं हैं कि वह पदार्थ को सूक्ष्म कर उसकी शक्ति को कई गुणा बढा सके। अग्नि द्वारा ही आहुति आदित्य (सूर्य तत्व) को प्राप्त होती हैं जिससे वर्षा होती हैं। वर्षा से अन्न और अन्न से प्रजा की वृद्धि होती हैं इसलिए यज्ञ में अग्नि की प्रधानता हैं यह सिद्ध हुआ। वायु उसका सहयोग हैं। यहाँ अग्नि से अभिप्राय ‘ सूर्य ‘ जानना चाहिये।
हे मातरिशवः वायो। जब तक उषा देवी का आगमन न होवे और इस उषा देवी के आछादन करने के लिये पक्षी आकाश में उड़ने न लगें , तब तक एक अवर होता छोटा ऋत्विक (ब्राह्मण:) वेदवित् (निषीदन) यज्ञ-स्थल के निकट बैठ कर (उप दधाति) यज्ञ की साज सज्जा , सामग्री का संकलन और वैश्वानर सूक्त का पाठ करता हैं। इसीलिये यज्ञ से पहले ईश्वर , स्तुति , प्रार्थना ,उपासना के मन्त्रों का विधान ‘ संस्कार-विधि ‘ में स्वामी दयानन्द जी ने किया हैं। प्रातः काल यज्ञ उषा के आगमन पर करना चाहिये यह इस मंत्र से प्रमाणित हुआ। उषा सूर्योदय से १० -१५ मिनट पहले आती हैं यह पहले कहा जा चुका हैं। इसीलिये शाश्त्रों में सूर्योदय होते समय अथवा सूर्योदय होने के पश्चात् यज्ञ करने का विधान किया हैं- उदिते जुहुयात्। अनुदिते जुहुयात्।। अध्युषते जुहुयात्।। तैतरिय ब्रा०२.१.१ महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने भी सत्यार्थप्रकाश के तृतीय समुल्लास में कहा हैं – दूसरा अग्निहोत्र कर्म -दोनों सन्धिवेला अथार्त सूर्योदय के पश्चात् और सूर्योस्त के पूर्व अग्निहोत्र करने का विधान किया हैं। सूर्योदय के पश्चात् और सूर्यास्त से पूर्व यज्ञ क्यों किया जाये इसके लिये निम्न कारण हैं –
१. ब्रह्ममुहर्त में सन्ध्योपासना करने का समय हैं। इसी भाँति सूर्यास्त के पश्चात जब आकाश में तारे दिखने लगे तब तक सन्ध्योपासना करनी चाहिये। इसे बह्म यज्ञ कहते हैं। इस समय देवयज्ञ करने से सन्ध्योपासना में व्यवधान होगा क्योकि ब्रह्मयज्ञ भी आवश्यक हैं।
२. प्रातः काल के मन्त्रो में सूर्यो ज्योतिज्योर्ति:सूर्य: स्वाहा बोलकर आहुति दी जाती हैं। तब सूर्योदय हुआ ही नहीं हैं तब ऐसा मन्त्र बोलना निष्प्रोयोजन ही माना जायेगा। मंत्रो के उच्चारण करने का यही प्रायोजन हुआ कि जैसा कर्म किया वैसा ही मुख से बोले और उसका अर्थविचार कर जीवन में धारण करे। सायंकालीन मन्त्रो में अग्निज्योर्तिज्योर्तिग्नि: सूर्य: स्वाहा बोलकर आहुति दी जाती हैं। वह इसलिये कि सूर्यास्त के पश्चात भी उसकी ज्योति आकाशस्थ बनी रहती है और उसकी ऊर्जा रात्रि में भी पृथ्वी को कुछ उष्णता प्रदान करती रहती है।
३ सूर्योदय के पश्चात और सूर्योस्त से पूर्व अग्निहोत्र करने का यह भी लाभ हैं कि कीट-पतंगे वर्षा ऋतु में प्राय: यज्ञाग्नि में जल का मर न जायें। इनका आकर्षण अंधकार में अग्नि को देखकर ही होता हैं। सूर्य के प्रकाश में वे आते ही नहीं।
४. सबसे महत्त्वपूर्ण कारण यह हैं कि सूर्य की किरणों में वृक्ष वायु में से कार्बन डाय आक्साइड का ग्रहण कर उसे अपना भोजन बना लेते हैं। और ऑक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। इसीलिये यज्ञशाला के चारों ओर वृक्षावलि , गुल्म,लता आदि से आछादित करने का विधान या परिपाटी देखी जाती है। यज्ञ में वट , गूलर , पीपल , आम आदि की समिधाओं का भी यही प्रयोजन हैं कि उनमें कार्बन की मात्रा कम होती हैं। यज्ञशाला से उतिथत सुगन्धित वायु से पोधों कार्बन डाय आक्साइड का आचूषण कर उसे और भी शुद्ध – पवित्र बना देते हैं। ऐसा वायु दूर देशस्थ लोगो को भी आरोग्य प्रदान करता हैं।
५. भोपाल गैस काण्ड के पश्चात् यज्ञ पर प्रयोग किये गये और यह पाया गया कि सूर्योदय होते समय जो और यज्ञ किया जाता हैं उसमें पर्यावरण को शुद्ध करने की क्षमता अधिक होती हैं। इस विषय में और अधिक अनुसंधान करने की आवस्यकता हैं।