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पुस्तकों के प्रचार से क्या होता है..?

विश्व पुस्तक मेला को ज्ञान का कुंभ और पुस्तकों को ज्ञान की गंगा की संज्ञा दी जाती है। दिल्ली में साल दर साल इस ज्ञानकुंभ का आयोजन करने का उद्देश्य देश के युवाओं को ज्ञान-विज्ञान, दर्शन एवं साहित्य से अवगत कराने के साथ ही आधुनिक, तर्कशील और विवेकवान नागरिक बनाना है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में विश्व पुस्तक मेला दर्शन और साहित्य के बजाय धर्मांतरण का अड्डा बनता नजर आ रहा है। प्रकाशन के नाम हिंदी देवनागरी भाषा में मिलेंगे और उनके अंदर पुस्तकें देखें तो इस्लाम एक परिचय, नबियों के किस्से, आओ नमाज सीखें, इस्लाम विरोधी प्रश्नों के उत्तर, मन्सब पैगम्बरी का जैसी ढेरों किताबें देखने को मिलेगी।

अनेकों ईसाई संगठन अपने मत मतांतर से सम्बन्धित पुस्तकें लेकर लोगों को जीसस के चमत्कार बताते मिलेंगे। हालाँकि इनके ज्यादा साहित्य बच्चों के स्टाल में मिलता है इनका उद्देश्य यही होता है कि बाल मन पर ही कब्ज़ा किया जाये। गौतम बुक के स्टॉल पर बौद्ध धर्म के ग्रंथों के साथ नवबौद्ध बैठे मिलेंगे। इसके अलावा विश्व पुस्तक मेला अंधविश्वास, पोगापंथ पाखंड बढ़ाने वाले साहित्य अटा पड़ा मिलता है। विश्लेषणात्मक सोच भारतीय इतिहास हमारे वैदिक साहित्य महापुरुषों के विचारों के प्रति सम्मान की भावना की सीख देने वाले प्रकाशक पुस्तक मेले में आर्य समाज के अलावा दिखाई नहीं देते।

जहाँ विधर्मी समुदाय हमारे ग्रंथो पर हमला भी कर रहे है। नकली मनु स्मृति से लेकर अनेकों ग्रन्थ गलत तरीकों से छापकर बेचे जा रहे है। आप पुस्तक मेले में आकर स्वयं देख सकते है कि इस्लाम के मानने वालों से लेकर ईसाई व कई अन्य पंथ अपनी पुस्तकें निशुल्क वितरित करते मिल जायेंगे। युवा-युवक युवतियों को निशाना बनाया जा रहा होता है, उनके अन्दर हमारे ही ग्रंथो के प्रति नकारात्मक भावों को पिरोने की कोशिश की जा रही होती है। हालाँकि हिन्दू धर्म से जुड़ें अनेकों बाबाओं के स्टाल आपको पुस्तक मेले में देखने को मिलेंगे, किन्तु जब आप देखेंगे कि उन सभी स्टालों पर बाबाओं के कथित चमत्कारों से जुडी पुस्तकें या फिर हमारे ही मिलावटी ग्रन्थ वहां बेचें जा रहे है। कोई आसाराम को निर्दोष बताता मिलेगा तो कोई राधे माँ का गुणगान करता दिख जायेगा। ओशो का अश्लील साहित्य बिकता मिलेगा। किन्तु हिंदी साहित्य हाल में केवल और केवल आर्यसमाज ही राष्ट्रवादी, समाज सुधारक, नवचेतना, सदाचारी, पाखंडों से मुक्ति दिलाने वाला, विधर्मियों के जाल से बचाने वाला साहित्य वितरित करता दिखेगा।

आर्य समाज का इस मेले में जाने और पुस्तकें वितरित करने या प्रचार करने का उद्देश्य यही रहता है कि इस पुस्तक मेले के माध्यम से युवाओं को वह साहित्य उपलब्ध हो जिसकी आज उन्हें और इस राष्ट्र को आवश्कता है। क्योंकि समाज के अतीत, वर्तमान और भविष्य का हमेशा ज्ञान द्वारा मार्गदर्शन होता रहा है और इसमें पुस्तको की सबसे प्रभावशाली भूमिका रही है। मसलन अतीत से लेकर अभी तक ज्ञान की अनवरत बहती धारा का नाम पुस्तक है और इसका संगम वर्तमान काल में पुस्तक मेले हैं। आप सभी को ज्ञात होगा मध्यकाल से लेकर आर्य समाज की स्थापना तक ज्ञान की अनावरत धारा को कुछ लालची और विधर्मी लोगों द्वारा अज्ञानता का कचरा डालकर मेला करने का कार्य वृहत रूप से हुआ, हमारे अनेकों में मिलावट की गयी, स्रष्टि के आदि ग्रन्थ मनुस्मृति को अशुद्ध किया गया और तो और हमारे धार्मिक ग्रन्थ रामायण गीता और महाभारत में भी हमारे महापुरुषों के जीवन चरित्र से लेकर कथानक को अशुद्ध किया गया।

फलस्वरूप समाज अपने विशुद्ध वैदिक ज्ञान से दूर हुआ अज्ञानता को ही सत्य स्वीकार हमने वर्षों की गुलामी की बेड़ियों को अपना हार समझ लिया। इसके पश्चात स्वामी दयानन्द सरस्वती जी आये उन्होंने सर्वप्रथम अपने ग्रंथो की शुद्धि कर मिलावट और अज्ञानता को दूर करने का कार्य किया। हमें अपनी असली सस्कृति और धर्म से परिचय कराया और नया विशुद्ध साहित्य रच हमें एक अस्त्र के रूप में दिया। तो आज हमारा यह फर्ज बनता है कि हम स्वामी द्वारा सहेजा गया ज्ञान पुस्तकों के माध्यम से यह अस्त्र लोगों तक पहुंचाएं।

तब से लेकर आज तक आर्य समाज स्थान-स्थान और समय-समय पर अज्ञानता के रण में ज्ञान के इन अस्त्रों का प्रयोग कर समाज में चेतना जगाने का कार्य कर रहा है। इसी क्रम में वर्षों पहले जब ये एहसास किया गया कि देश भर में लगने वाले पुस्तक मेलों में विधर्मी लोग अभी भी अपनी स्वरचित पुस्तकों के माध्यम से हमारे धर्म और संस्कृति पर हमला कर रहे है। तब यह फैसला लिया गया कि क्यों न हम भी अपने इस ज्ञान के अस्त्रों का प्रयोग पुस्तक मेले के माध्यमों से करें!

तत्पश्चात देश भर लगने वाले पुस्तक मेलों में दिल्ली आर्य प्रतिनिधि सभा ने आर्ष ग्रंथो, विशुद्ध मनुस्मृति से लेकर रामायण और महाभारत सहित वैदिक साहित्य को लेकर भाग लेना शुरू किया। जैसा कि आप सभी भलीभांति परिचित होंगे देश की राजधानी दिल्ली में तो प्रतिवर्ष सत्यार्थ प्रकाश 10 रूपये में उपलब्ध कराया ही जा रहा हैं। साथ ही एक स्टाल शंका समाधान का भी रखा जाता है जिसमें वैदिक विद्वान मेले पधारे लोगों की धर्म, आत्मा,जन्म, पूर्वजन्म से लेकर ईश्वर के निराकार होने और वेदों में गोमांस भक्षण निषेध जैसे सभी विषयों पर शंकाओं का समाधान भी करते है।

एक किस्म से कहें तो आर्य समाज प्रतिवर्ष हिन्दू समाज के जागरण का एक प्रहरी बनकर पुस्तक मेले में जाता हैं। हिंदी, अंग्रेजी,बंगला एवं उर्दू में सत्यार्थ प्रकाश लोगों को उपलब्ध कराता मिलेगा। स्वामी दयानंद जी के अन्य ग्रंथो संस्कारविधि, ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, आर्योद्देश्यरत्नमाला आदि को सस्ते मूल्य पर उपलब्ध कराया जाता है। हम आशा करते है कि भविष्य में भी आर्यसमाज पुस्तक मेलों के माध्यम से वैदिक धर्म के नाद को विश्व के कोने-कोने तक पहुँचायेगा। आप सभी से भी अनुरोध है एक बार पुस्तक मेले में जरुर पधारिये आर्य समाज के स्टाल पर आकर इस वैदिक नाद और अधिक गुंजायमान कीजिए।

 विनय आर्य (महामंत्री) आर्य समाज  

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