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क्या इस्लाम में विचारों का समूह है ?

पिछले कई वर्षों में कई घटनाएँ सामने आई जिसे लेकर विश्व समुदाय मुखर हुआ इसमें अमेरिका का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर, भारत में ताज होटल पर हमला. फ्रांस की पत्रिका चार्ली हेब्दो, पाकिस्तान के एक स्कूल में लगभग 150 बच्चों की हत्या, पाकिस्तान में ही ईस्टर के दिन एक पार्क में 50 से ज्यादा ईसाईयों का कत्ल, इराक में यजीदी समुदाय की बच्चियों के साथ मजहब के नाम पर बलात्कार और उन्हें जबरन सेक्स स्लेव यानि के यौन दासी बनाना. अभी हाल ही में एक घटना ने पुनरू इस ओर मेरा ध्यान आकर्षित किया खबर है कि इराक में इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों ने करमलिस की तरह ही दूसरे गांव के इसाई बाशिंदों से भी कह दिया है कि वे मुसलमान बन जाएं या गांव छोड़ कर चले जाएं. क्या इसी पहचान के लिए जीता है इस्लाम?

इसी साल 13 अगस्त को तुफैल अहमद ने अपनी नई किताब जिहादिस्ट थ्रेट टू इंडिया के विमोचन पर बोलते हुए कहा था कि समस्या यह है कि गैर मुसलमान आज इस बात को नहीं हजम कर पा रहे हैं कि इस्लाम में धर्म और राजनीति को अलग नहीं किया जा सकता है. पश्चिमी जगत के पास वैचारिक युद्धों को लड़ने का अनुभव है, सबसे हालिया युद्ध है, सोवियत समर्थित सशस्त्र साम्यवाद. लेकिन पश्चिमी दुनिया में भी लेखक और प्रोफेसर इस्लाम को सिर्फ ऐसा धर्म बताने पर जोर दे रहे हैं जो सिर्फ एक मस्जिद और किसी व्यक्ति की निजी जिंदगी के आध्यात्मिक दायरे तक सीमित है. मुसलमानों के दिमाग में धर्म और राजनीति के बीच अंतर साफ नहीं है.

क्या इस्लाम विचारों का समूह है ? तुफैल अहमद के इस व्याख्यान के बाद एक प्रश्न को नई राह मिल गयी कि इस्लाम भिन्न-भिन्न विचारों का समूह है या इस समूह के भिन्न-भिन्न विचार है यधपि दुनिया के हर एक धर्म समाज अलग-अलग विचारों और मान्यताओं पर खड़ा है किन्तु वो टकराव बोद्धिक है हिंसात्मक नहीं. अब जैसे विचारों के एक समूह का नाम पाकिस्तान है जो इस्लाम के नाम पर अलग हुआ लेकिन वहां का शिया-सुन्नी हिंसात्मक टकराव किसी से छिपा नहीं है. अफगान तालिबान और पाक तालिबान के नाम पर हिंसा करते चरमपंथी भी इस्लाम में भिन्न-भिन्न विचारधारा रखते है. भले ही तहरीक एक तालिबान, लश्कर ए तय्ब्बा, आई एस. आई एस या बोको हरम आदि सभी चरमपंथी संगठनों का लक्ष्य इस्लाम बताया जाता हो लेकिन इन सभी की विचारधारा अलग-अलग है बस तरीका एक ही है. जब कोई कहता है कि मुस्लिम समुदाय के 56 देश है तब मुझे लगता है यह देश नहीं बल्कि विचारधारा है जो अरब की ईरान से पाकिस्तान की अफगान से सीरिया में भी जारी संघर्ष में शिया-सुन्नी विवाद की गूंज सुनाई देती है लेकिन इस मतभेद के बुनियादी कारण क्या हैं? शायद यही जो अब बलूचिस्तान मांग रहा है? तुफैल कहते है जिस विचार को हम पाकिस्तान के नाम से जानते हैं, वह उसे भी बेहतर समझते हैं. इस्लाम को विचारों के समूह, एक विचारधारा, विचारों की एक व्यवस्था, एक धर्म, एक तरह की राजनीति और विचारों के आंदोलन के तौर पर परिभाषित किया जा सकता है. एक एकेश्वरवादी धर्म के तौर पर, इस्लाम गैर-मुस्लिम समाजों की मुख्याधारा से अलगाव की एक भाषा है.

विचार का जन्म कहा से? विचारों के एक आंदोलन के तौर पर इस्लाम की शुरुआत सातवीं सदी में मक्का से हुई, जिसका नतीजा यह हुआ कि अब सऊदी अरब में कोई यहूदी नहीं हैं और वहां सिनेगॉग या चर्च भी नहीं हैं. बाद में विचारों का यह आंदोलन ईरान पहुंचा, वहां इसका परिणाम ये हुआ कि वहां अब पारसी नहीं हैं. विचारों का यह आंदोलन आठवीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप में पहुंचा. परिणाम ये हुआ कि बलूचिस्तान में हिंदू नहीं हैं. अफगानिस्तान में हिंदू नहीं हैं, पाकिस्तान में हिंदू नहीं हैं और लाहौर में कोई सिख नहीं है जबकि वे मूल रूप से उन्हीं शहरों के हुआ करते थे. दरअसल इस्लाम अपने लिए एक क्षेत्र चाहता है. 1947 में इसने हमारे बुजुर्गों के दिमागों को प्रभावित किया और उन्होंने इसे अपने क्षेत्र की जमीन का एक टुकड़ा दे दिया और इस तरह पाकिस्तान बना. अब यह हमारी जमीन का एक और टुकड़ा, कश्मीर हासिल करने के लिए श्रीनगर में लंबे समय से लड़ रहा है. विचारों के आंदोलन के रूप में इस्लाम हमारी ही जिंदगी में कश्मीर से पंडितों को निकालने में कामयाब रहा है. विचारों का यही आंदोलन अच्छी खासी आबादी वाले असम, कैराना, माल्दा या मल्लपुरम में देखा जा सकता है.

क्या इस पहचान के लिए जीता है मुसलमान? अमेरिकन में इस्लामिज्म यानी कट्टर इस्लाम को कुछ ऐसे परिभाषित किया जाता है कि इस्लामी पुनरुत्थानवादी आंदोलन, नैतिक रुढ़िवाद, और जीवन के हर पक्ष पर इस्लामी मूल्यों को लागू करने की कोशिश करता है. इस वजह से कट्टर इस्लाम एक सांस्कृतिक और राजनीति आंदोलन है जो समाज से धर्मनिरपेक्षता, लोकतांत्रिक और बहुसांस्कृतिक मूल्यों को हटाता है ताकि इस्लामी प्रभुत्व के लिए रास्ता तैयार किया जा सके. कट्टर इस्लाम लोगों की जिंदगियों पर ऐसी धार्मिकता लागू करता है जो दिखे. कोई महिला बुर्का पहनती है तो पहने, लेकिन समस्या उस विचार से है जिसके चलते वो ऐसी ही पोशाक चुनती है. बाद में यही विचार महिलाओं की आजादी, गैर-मुसमलानों के अधिकार, व्यक्तिगत आजादी और स्वतंत्र प्रेस की बुनियादों पर चोट करते हैं. कट्टर इस्लाम एक तरीका है जिससे इस्लाम अपने लक्ष्य हासिल करता है और जिहादवाद कट्टर इस्लाम का हथियारबंद संस्करण है. एक समय, ओसामा बिन लादेन ने अमेरिका की तुलना ऑक्टोपस से की थी और कहा था कि उसने दुनिया को अपनी बाहों में जकड़ रखा है. पहले तो मैं जानवरों की दुनिया से माफी मांगता हूं और फिर कहता हूं कि कट्टर इस्लाम एक अमीबा है जो खुद अपने जैसे अमीबा बनाता रहता है….लेख राजीव चौधरी

 

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